हनुमान जी के भक्त प्रभु राम और शिव जी के भी कृपापात्र होते हैं

6 अप्रैल, चैत्र पूर्णिमा,राम भक्त हनुमान जी की जयंती पर विशेष

हनुमान जी के भक्त प्रभु राम और शिव जी के भी कृपापात्र होते हैं

विजय केसरी:

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के अनन्य भक्त हनुमान जी का प्रादुर्भाव आज से अन्ठावन हजार एक सौ सोलह वर्ष पूर्व हुआ था। लोक मान्यताओं के अनुसार त्रेतायुग के अंतिम चरण, चैत्र पूर्णिमा, मंगलवार की सुबह में हुआ था। हिन्दू धर्म शास्त्रों में वर्णन है कि  हनुमान जी का जन्म झारखंड प्रांत के  गुमला जिले के आंजन नाम के छोटे से गांव पहाड़ी गुफा में हुआ था। भक्त हनुमान जी के विषय में हमारे शास्त्रों में वर्णन है कि वे भगवान शिव जी के ग्यारहवें रुद्रावतार हैं। भक्त हनुमान की आराधना से भक्तों के समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही साधकों को हनुमान जी के संग भगवान राम और शिव की भी कृपा प्राप्त होती हैं।
रामचरितमानस में वर्णन है कि भगवान राम जब माता सीता की खोज में जंगलों में भटक रहे थे, तभी उनका भक्त हनुमान से मिलन हुआ था।  देखते ही देखते भक्त हनुमान राम के हृदय में बस गए थे और हनुमान के हृदय में राम बस गए थे। भगवान राम ने हनुमान जी को अपने छोटे भाइयों के समान ही दर्जा प्रदान किया था। जब राम लंका विजय कर अयोध्या लौटे थे, तब उनके साथ वानर सेना सहित काफी संख्या में लंका से अतिथि आ गए थे।  वे सब काफी दिनों तक अयोध्या में रह गए थे।  जब भगवान राम ने सबों को विदा किया था,तब विदाई लेकर एक -एक कर अतिथि जा रहे थे। राम ने हनुमान को भी विदाई देना चाहा तब  हनुमान ने  विदाई के स्वरूप में उनके ही चरणों में रहने का वरदान प्राप्त किया था। इसीलिए भगवान राम, सीता, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न की तस्वीर में एक साथ, हनुमान जी श्री राम के चरणों में बैठे दिखते हैं।
 हिंदू धर्मशास्त्र के अनुसार भक्त हनुमान का जीवन राम की भक्ति में बीत रहा है । चूंकि हनुमान जी की मृत्यु का कोई भी उल्लेख किसी भी शास्त्र में नहीं मिलता है ऐसी मान्यता है कि भक्त हनुमान को  अमरता का वरदान प्राप्त हुआ था। इसलिए आज भी वे इस धरा पर मौजूद है। वे राम की भक्ति में लीन है। आज हनुमान की पूजा पूरे विश्व भर में होती है। जहां भी हनुमान जी को मानने वाले भक्त निवास करते हैं किसी न किसी रूप में प्रतिदिन हनुमान जी को याद कर ही  लेते हैं । ऐसी लोक मान्यता है कि संकट के समय जो  भी भक्त – साधक उन्हें याद करते हैं, उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो विपत्ति से लड़ने की ताकत मिल जाती है। संत तुलसीदास ने हनुमान चालीसा के चालीस पदों में हनुमान जी का संपूर्ण जीवनी  बखान किया है। हनुमान के भक्त हनुमान जी को कई नामों से पुकारते हैं। हनुमान अपने हर नाम में  गहरे अर्थ के साथ बंधे हुए हैं। हनुमान, बजरंगबली, पवन पुत्र, मारुति नंदन, अंजनी पुत्र, केसरी नंदन, कपीश, शंकर सुवन आदि विविध हनुमान के ही नाम है। इनके हर नाम में गहरा अर्थ बता छुपा हुआ है । इसे इनके नामों के उच्चारण से ही समझा  जा सकता है। पवन पुत्र अर्थात पवन के पुत्र।  अंजनी पुत्र अर्थात  माता अंजनी के पुत्र। संत तुलसीदास ने हनुमान चालीसा में दर्ज किया है कि ‘बल बुद्धि विद्या देऊ मोहि, हरहु क्लेश विकार’। अर्थात हे नाथ ! तुम मुझे बल, बुद्धि, विद्या प्रदान कीजिए और हमारे अंदर जो क्लेश विद्यमान  हैं, उसे हर लीजिए। जो भी भक्त हनुमान जी की पूजा पवित्र मन से करते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। हमारे मनीषियों का कथन है कि नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करने से इसके भक्त इसी धरा में रहकर स्वर्ग के समान सुख प्राप्त करते हैं। वे मोक्ष गामी होते हैं।
 हनुमान की भक्ति से भक्तों के अंदर कोई डर – भय नहीं रहता हैं। वे धीरे – धीरे माया के सभी बंधनों से मुक्त हो जाते हैं। भक्त निर्भय हो जाते हैं। भक्त यह जान जाते हैं कि इस धरा पर उनका आना एक अवसर है । जाना भी एक अवसर है । उन्हें मृत्यु भय से मुक्ति मिल जाती है। वे अपना संपूर्ण जीवन भयमुक्त होकर जीते हैं। उनमें अहंकार लेश मात्र नहीं होते हैं। वे खुद भी प्रसन्न रहते हैं और अपने आसपास के लोगों को भी प्रसन्नता प्रदान करते है।

संत तुलसीदास आगे हनुमान चालीसा में लिखते हैं कि ‘कुमति निवार सुमति के संगी, कंचन बरन बिराज सुबेसा’। इनकी भक्ति से जितने भी तरह के कुमति हैं, सब दूर हो जाते हैं और भक्त सुमति के संग हो जाते हैं। भगवान राम की आराधना जो भी भक्त करते हैं, उन्हें भक्त हनुमान की भी कृपा प्राप्त होती हैं। जैसे ही भक्तगण राम शब्द का उच्चारण करते हैं। हनुमान जी तत्क्षण प्रसन्न हो जाते हैं। संत तुलसीदास ने रामचरितमानस में वर्णन किया है कि जहां भी राम कथा का आयोजन होता है। भक्त हनुमान वहां किसी न किसी रूप में कथा सुन रहे होते हैं। अर्थात जो भी भक्तगण भगवान राम की कथा में सम्मिलित होते हैं, वे बड़े भाग्यशाली होते हैं। भक्तों के मध्य ही अजर, अमर, अविनाशी भगवान राम के अनन्य भक्त हनुमान भी सम्मिलित होते हैं। इसलिए रामकथा के भक्तों को कथा समाप्ति के बाद उस धरती को जरूर प्रणाम करना चाहिए। जहां पर यह कथा हो रही होती है।
भगवान राम के अनन्य भक्त हनुमान की कथा, भक्ति और वीरता से ओतप्रोत है। माता सीता का पता लगाने के कार्य के लिए एक से एक वीर वानर  वहां मौजूद थे। लेकिन यह अवसर राम ने सिर्फ हनुमान को ही दिया था। यह हनुमान की भक्ति का सर्वोत्तम सोपान था।  हनुमान जब लंका पहुंचते हैं। माता जानकी को सबूत के रूप में अंगूठी देते हैं। माता को अशोक वाटिका में इस रूप में देखकर उन्हें अपार कष्ट होता है । वे भाव विह्वल हो गए थे। वे चाहते तो उसी पल माता सीता को अशोक वाटिका से लेकर राम के समक्ष प्रस्तुत हो सकते थे। लेकिन यह आदेश भगवान राम ने उन्हें नहीं दिया था । उन्हें सिर्फ माता सीता का ही पता लगाना था।
भक्त हनुमान की सूचना पाकर लंकाधिपति रावण उसे पकड़ने की कोशिश बहुत करते हैं। लेकिन हनुमान को पकड़ नहीं पाते हैं। अंततः ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर हनुमान जी को पकड़ने में सफल होते हैं। भक्त हनुमान ने  ब्रह्मास्त्र का मान  टूटने नहीं दिया और उन्होंने स्वयं को लंकापति के सुपुर्द कर दिया था। ऐसा कर हनुमान ने धर्मा की रक्षा की थी।  लंकापति के दरबार में हनुमान ने जब यह कहा था कि हे रावन ! अगर तुम मेरे पैर को जमीन से हटा दोगे तो मैं अपनी हार स्वीकार कर लूंगा। भक्त हनुमान ने यह कह कर सबों को चौंका दिया था। हनुमान को स्वयं से भी ज्यादा आस्था भगवान राम के प्रति थी। उन्हें पक्का विश्वास था कि जिनके सिर पर भगवान राम की कृपा होगी, उसका बाल भी बांका नहीं हो सकता है। रावण चाह कर भी हनुमान के पैर  को जमीन से हिला तक नहीं पाए थे।  यह राम नाम की विजय पताका था, जिसे लंका विजय के पूर्व ही पूरे लंका में लहरा दिया गया था। लंकापति रावण की हार तो उसी समय हो गई थी।  लंकापति के सैनिकों ने हनुमान के पूंछ में कपड़ों को बांधकर आग लगा दी थी। रावण को विश्वास था कि पूंछ में आग लगते ही हनुमान का अंत हो जाएगा। लेकिन हनुमान का बाल भी बांका नहीं हुआ था बल्कि लंका नगरी ही कालीमा युक्त हो गई थी।  रावण अपने अहंकार के कारण यह सब कुछ कर रहा था। उसे नीति – अनीति से कोई मतलब नहीं रह गया था । त्रिकालदर्शी होने के बावजूद रावण के सभी  नेत्र अहंकार के कारण बंद हो गए थे। इसलिए हमारे शास्त्रों का कथन है कि व्यक्ति कितना भी ताकतवर, ज्ञानवान, धनवान और राज सिंहासन का अधिकारी हो जाए लेकिन अहंकार को कभी भी अपने ऊपर चढ़ने ना दें। अन्यथा रावण के समान ही उसका सर्वनाश हो जाएगा। ईश्वर ने अगर किसी को धन दिया है, तो उसका खर्च सत्कर्म की ओर करें। ताकत दी है, तो  सज्जन की अत्याचारी से रक्षा करें। राज सिंहासन पर बैठाया है, तो प्रजा की भलाई करें।
संत तुलसीदास लिखते हैं कि ‘विद्यावान गुनी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर’। अर्थात भक्त हनुमान सभी विधाओं में निपुण हैं और भगवान राम के कार्य करने के लिए आतुर भी है । इस पद से हम सबों को शिक्षा मिलती है कि हर व्यक्ति को विद्या ग्रहण के प्रति निष्ठावान होना चाहिए और अपने आराध्य के प्रति समर्पित भी होना चाहिए। आगे संत तुलसीदास दर्ज करते हैं कि ‘संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा’। अर्थात भक्त हनुमान की आराधना से भक्तों के सभी कष्ट मिट जाते हैं।  ‘जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा, तुलसीदास सदा हरग चेरा, कीजै नाथ हृदय मंह डेरा। उपरोक्त सारगर्भित पंक्तियां सभी भक्तों को तार देती हैं। बस इन पंक्तियों को अपने दैनंदिन जीवन में उतारने की जरूरत है।