मनुष्य को पाप से नफ़रत करनी चाहिए, पापी से नहीं – मदर टेरेसा

अपने स्वागत में दिये भाषणों में मदर टेरेसा ने स्पष्ट कहा है कि "शब्दों से मानव-जाति की सेवा नहीं होती, उसके लिए पूरी लगन से कार्य में जुट जाने की आवश्यकता है।"

मनुष्य को पाप से नफ़रत करनी चाहिए, पापी से नहीं – मदर टेरेसा

भारत के ग़रीबों की सेवा और देखभाल में अपना जीवन समर्पित करने वाली मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त को मेसेडोनिया देश के एक अल्बेनीयाई सुदृढ़ परिवार में हुआ था। जन्म के एक दिन बाद ही उन्हें बैप्टाइज किया गया था, यह इसाईयों में एक धार्मिक प्रक्रिया होती है । इसलिए वो अपना जन्मदिन 27 अगस्त को मानती थीं। मदर टेरेसा का असली नाम एग्नेस था। वो अपने नाम से संत थेरेस ऑस्ट्रेलिया और टेरेसा ऑफ अविला को सम्मान देना चाहती थीं इसलिए उन्होंने अपना नाम बदल कर टेरेसा नाम चुन लिया।

भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त नवीन चावला ने मदर टेरेसा के जीवन से जुड़ी आँखों देखी घटना पर एक किताब लिखी है। मदर टेरेसा से नवीन चावला की पहली मुलाकात 1975 में हुई थी जब वो दिल्ली के उपराज्यपाल किशन चंद के सचिव हुआ करते थे।उस समय मदर ने अपनी एक संस्था का उद्घाटन करने के लिए उपराज्यपाल को आमंत्रित किया था।

नवीन चावला ने लिखा है कि – “मैंने एक चीज़ नोट किया कि मदर टेरेसा की साड़ी वैसे तो बहुत साफ़ थी, लेकिन उसको जगह जगह रफ़ू किया गया था ताकि ये न दिख सके कि वो फटी हुई है।”मैंने किसी सिस्टर से पूछा कि मदर की साड़ी में इतनी जगह रफ़ू क्यों किया गया है? उन्होंने बताया कि हमारा नियम है कि हमारे पास सिर्फ़ तीन साड़ियाँ होती हैं. एक हम पहनते हैं. एक हम रखते हैं धोने के लिए और तीसरी हम रखते हैं ख़ास मौकों के लिए. तो मदर के पास भी सिर्फ़ तीन ही साड़ियाँ हैं. तो ये ग़रीबी अपनी पसंद से ओढ़ी गई थी न कि किसी मजबूरी की वजह से.”

मदर टेरेसा का कहना था कि मनुष्य को पाप से नफ़रत करनी चाहिए, पापी से नहीं

नवीन चावला ने एक हृदय विदारक क़िस्सा का ज़िक्र करते हुए बताया कि- “एक बार मैंने उनसे पूछा कि आपने अपने जीवन में सबसे दुखदाई प्रसंग कौन सा देखा है ?

“मदर ने कहा एक बार मैं और मेरे साथ एक सिस्टर कोलकाता में सड़क पर जा रहे थे। मुझे एक ढलाव पर हल्की सी आवाज़ सुनाई दी। जब हम पीछे गए तो हमने देखा वहाँ एक महिला कूड़े के ढेर पर पड़ी हुई थी। उसके ऊपर चूहे और कॉकरोच घूम रहे थे। वो मरने के कगार पर थीं। मदर ने उसे उठाया और अपने साथ ले गईं। उन्होंने उसे साफ़ किया। उसकी साड़ी बदली और डिसइंफ़ेक्ट किया। फिर मदर ने पूछा किसने तुम्हारे साथ ऐसा किया? महिला ने जवाब दिया मेरे अपने बेटे ने।”

नवीन बताते हैं, “मदर ने उस महिला से कहा तुम उसे माफ़ कर दो क्योंकि ये अब पलों की बात है। तुम्हारी आत्मा अपने भगवान के साथ मिलेगी। आप अपने भगवान से प्रार्थना करिए। मैं अपने भगवान से प्रार्थना करूँगी। आप अपने भगवान के पास हल्के हृदय के साथ जाइए। उसने कहा माँ मैं उसे माफ़ नहीं कर सकती। मैंने उसके लिए इतना कुछ किया। उसे पाला-पोसा, पढ़ाया-लिखाया। अंत में जब मैंने अपनी प्रॉपर्टी उसके नाम कर दी तो वो मुझे अपने हाथों से यहां छोड़ कर गया।”

“मदर ने फिर ज़ोर दिया। इसके बाद दो चार मिनट तक वो औरत कुछ नहीं बोली। फिर उसने अपनी आँखें खोली। मुस्कराई और बोली मैंने उसे माफ़ कर दिया। इतना कहने के बाद वो महिला सदा के लिए शांत हो गई। जब मदर मुझे ये क़िस्सा सुना रही थीं तो उनके चेहरे पर उदासी तो थी ही लेकिन वो ये भी कहना चाह रही थीं कि कोई किसी के साथ ऐसा किस तरह कर सकता है?”

महज़ 18 वर्ष की उम्र में घर का त्याग कर दिया
मदर टेरेसा ने 18 साल की उम्र में घर के साथ साथ देश भी छोड़ दिया था। घर त्यागने के बाद वो सिस्‍टर ऑफ लोरिटो से जुड़ गई थीं और इसके लिए वो आयरलैंड गई थीं। इसके बाद वो जब तक जिंदा रही, अपने घर वालों से नहीं मिलीं। आयरलैंड में ही उन्होंने अंग्रेजी सीखने के लिए मेहनत की और फिर जनवरी 1920 में भारत आ गई। यहां पर स्नातक के बाद उन्होंने ईसाई मिशनरीज के लिए काम करने का फैसला कर लिया। 1931 में वो नन की कड़ी ट्रेनिंग लेकर कोलकाता के स्कूलों में काम करना शुरू कर दिया ।

नोबेल पुरस्कार में मिली राशि को दान कर दिया
मदर को भारत में मानव-कल्याण कार्यों के लिए 1970 में शांति का नोबेल पुरस्‍कार दिया गया। नोबेल पुरस्कार के साथ मिली राशि 1,38,42,912 रुपए को मदर टेरेसा ने बच्‍चों के मदद के लिए दान कर दिया था। वह तीसरी भारतीय नागरिक हैं जो संसार में इस पुरस्कार से सम्मानित की गयी थीं। मदर टेरेसा के हेतु नोबल पुरस्कार की घोषणा से जहां विश्व की पीड़ित जनता में प्रसन्नता का संचार हुआ, वहीं प्रत्येक भारतीय नागरिकों ने अपने को गौरवान्वित महसूस किया।

पुरस्कार व सम्मान

  • 1931 में उन्हें पोपजान तेइसवें का ‘शांति पुरस्कार’ और धर्म की प्रगति के ‘टेम्पेलटन फाउंडेशन’ पुरस्कार दिया गया।
  • विश्व भारती विद्यालय ने उन्हें अपनी सर्वोच्च पदवी ‘देशिकोत्तम’ पदवी से सम्मानित किया।
  • अमेरिका के कैथोलिक विश्वविद्यालय ने उन्हें ‘डॉक्टरेट’ की उपाधि से विभूषित किया।
  • 1977 में ब्रिटेन द्वारा ‘आईर ऑफ़ द ब्रिटिश इम्पायर’ की उपाधि प्रदान की गयी।
  • भारत सरकार द्वारा १९६२ में उन्हें ‘पद्म श्री’ की उपाधि मिली।
  • बनारस हिंदू विश्विद्यालय ने उन्हें ‘डी-लिट’ की उपाधि से विभूषित किया।
  • 1980 में भारत सरकार द्वारा उन्‍हें भारत के सर्वोच्‍च पुरस्‍कार ‘भारत रत्‍न‘ से सम्‍मानित किया गया।
  • 09 सितम्बर 2016 को वेटिकन सिटी में पोप फ़्रांसिस ने मदर टेरेसा को ‘संत’ की उपाधि से विभूषित किया।