मन में उम्मीदों के दीप जलाती ‘कविताएं’
21 मार्च, 'विश्व कविता दिवस' पर विशेष
विजय केसरी:
मन के भाव-तत्व का आईना होती हैं, कविताएं। मन में उम्मीदों की दीप जलाती हैं,कविताएं । कविता मन से निकलती हैं, और मन तक पहुंच जाती हैं। यही कविता की खूबसूरती है। कविता बड़ी सी बड़ी बातों को कम से कम शब्दों में बयां कर जाती हैं। कविता शोर से शांति की ओर ले जाती हैं। उम्मीदों के दीप जलाती हैं, कविताएं। ना उम्मीदों को दूर भगाती हैं, कविताएं। कविताएं, प्रेमी-प्रेमिकाओं के मन में प्रेम का दीप जलाती हैं। दोस्त और दुश्मनी के फर्क को मिटती हैं, कविताएं। कविता मनुष्य के भावाव्ययक्ति का दर्पण होती हैं। जब मनुष्य के मन में भाव प्रवेश कर जाते हैं, तभी कविताएं जन्म लेती है। कुछ कुछ शब्द मिलकर कविता का रूप अख्तियार करती हैं।
कविता मनुष्य के मनोदशा का भी दर्पण होती हैं। मनुष्य जिन परिस्थितियों में पलता है, बढ़ता है, समाज को देखता है, अनुभव प्राप्त करता है, अपने बड़े बुजुर्गों से सीखता है, ये सारे अनुभव उनकी कविताओं में उभरकर सामने आते हैं। कविता समाज का दर्पण भी होती हैं। समाज जिन सामाजिक, राजनीतिक ,आर्थिक परेशानियों से गुजरता है, कविता उन तमाम पक्षों को लेकर समाज के बीच उपस्थिति होती हैं। यही कविता का यथार्थ है। एक कवि जो प्रकृति के नजदीक रहता है, प्रकृति के अनुभवों,चिड़ियों की चहचहाहट, हवाओं का बहना, हवाओं से टकराती वृक्षों के पत्तों की आवाजों सुनकर कविता रच लेता है।
भक्ति काल में संत कबीर दास, संत रहीम, रैदास, संत तुलसीदास, संत नरहरी दास आदि संत कवियों ने समाज में जो देखा, जिसकी उन सबों ने आवश्यकता महसूस की, उनके काव्य की पंक्तियों में दोहा रूप में उपस्थित होते चले गए थे। इन संतों की काव्य पंक्तियां सकल समाज के लिए अनुकरणीय बन गई । मानो संतो की ये पंक्तियां अमरता का वरदान लेकर पैदा हुई थीं। वर्षों बाद भी उनकी ये कालजई पंक्तियां लोगों का मार्ग प्रशस्त कर रही हैं। आज भी लोग इन पंक्तियों को पढ़कर कुछ न कुछ सीखते रहते हैं। वे अपने जीवन में उतारने का संकल्प लेते रहते हैं।
कविताएं मर्म को छूती हैं, चूंकि कविताएं मन से ही निकलती हैं। कविता स्वर को प्राप्त कर संगीत के साथ मिलकर जब गीत बन जाती हैं, सुनने वालों को दीवाना बना देती हैं। कविता अपने विविध रूपों में रहकर रस, गंध और स्पर्श का भी आनंद कराती हैं। कविता हर मनुष्य के अंदर विद्यमान होती हैं। कविता मनुष्य के सुख -दुख में छाया की तरह जुड़ी रहती हैं। मनुष्य के संघर्ष के समय जब कविताएं आकार लेती हैं, तब इन कविताओं में मनुष्य के संघर्ष से जूझने की शक्ति निहित होती है ।
देश की आजादी के समय स्वाधीनता सेनानी कवियों ने देश को गुलामी से मुक्त कराने से संबंधित कविताओं को रच कर स्वाधीनता संग्राम को एक नई गति प्रदान किया था। ये कविताएं सदा सदा के लिए अमर बन गई। इन कविताओं का स्वाधीनता सेनानियों पर ऐसा असर हुआ था कि वे हंस-हंस के फांसी के फंदे से झूलने के लिए तैयार हो गए थे। हजारों लाखों ऐसे स्वाधीनता सेनानी, जो विलासिता का जीवन जी रहे थे, इन कविताओं से प्रेरणा पाकर स्वाधीनता सेनानी बन गए थे। वे सब कुछ त्याग कर स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े थे । देश की आजादी के बाद आजादी की रक्षा के लिए सत्ता की राजनीति से दूर रहे थे । यह सब कविताओं से उपजे भाव की शक्ति थी।
विश्व कविता दिवस हर वर्ष प्रतिवर्ष 21 मार्च को मनाया जाता है। यूनेस्को ने इस दिन को विश्व कविता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा वर्ष 1999 में की थी। कविता दिवस घोषणा का उद्देश यह था कि कवियों और कविता की सृजनात्मक महिमा को सम्मान दिया जाए। तबसे हर वर्ष 21 मार्च को विश्व कविता दिवस मनाया जाता है। विश्व के लगभग देशों में कविता दिवस पर विभिन्न तरह के काव्य गोष्ठियां आयोजित की जाती हैं। विश्व कविता दिवस पर कवियों को सम्मान पत्र भी प्रदान किया जाता है। इन काव्य गोष्ठियों में कवियों को बुलाकर उनकी कविताएं सुनी जाती हैं। विश्व भर में किस तरह की कविताएं रची जा रहे हैं ? इस विषय पर भी चर्चा होती हैं।
भारतवर्ष में कविता लेखन का प्रारंभ तेरहवीं शताब्दी से समझा जाता है। हर भाषा की तरह हिंदी कविता भी पहले इतिवृत्तात्मक थी। यानि किसी कहानी को लय के साथ छंद में बांध कर अलंकारों से सजा कर प्रस्तुत किया जाता था। भारतीय साहित्य के सभी प्राचीन ग्रंथ कविता में ही लिखे गए हैं। इसका विशेष कारण यह था कि लय और छंद के कारण कविता को याद कर लेना आसान था। जिस समय छापाखाना का आविष्कार नहीं हुआ था और दस्तावेज़ की अनेक प्रतियां बनाना आसान नहीं था, उस समय महत्वपूर्ण बातों को याद रख लेने का यह सर्वोत्तम साधन था। यही कारण है कि उस समय साहित्य के साथ साथ राजनीति, विज्ञान और आयुर्वेद को भी पद्य में ही लिखा गया था। भारत की प्राचीनतम कविताएं संस्कृत भाषा में ऋग्वेद में हैं, जिनमें प्रकृति की प्रशस्ति में लिखे गए छंदों का सुंदर संकलन हैं। जीवन के अनेक अन्य विषयों को भी इन कविताओं में स्थान मिला है। काव्य वह वाक्य रचना है, जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो अर्थात् वह जिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है। रसगंगाधर में ‘रमणीय’ अर्थ के प्रतिपादक शब्द को ‘काव्य’ कहा है। ‘अर्थ की रमणीयता’ के अंतर्गत शब्द की रमणीयता भी समझकर लोग इस लक्षण को स्वीकार करते हैं। परन्तु’अर्थ’ की ‘रमणीयता’ कई प्रकार की हो सकती है। इससे यह लक्षण बहुत स्पष्ट नहीं है। साहित्य दर्पणाकार विश्वनाथ का लक्षण ही सबसे ठीक जँचता है। उसके अनुसार ‘रसात्मक वाक्य ही काव्य है’। रस अर्थात् मनोवेगों का सुखद संचार की काव्य की आत्मा है।
काव्यप्रकाश में काव्य तीन प्रकार के कहे गए हैं, ध्वनि, गुणीभूत व्यंग्य और चित्र। ध्वनि वह है, जिसमें शब्दों से निकले हुए अर्थ की अपेक्षा छिपा हुआ अभिप्राय प्रधान हो। गुणीभूत ब्यंग्य वह है जिसमें गौण हो। चित्र या अलंकार वह है जिसमें बिना ब्यंग्य के चमत्कार हो। इन तीनों को क्रमशः उत्तम, मध्यम और अधम भी कहते हैं। काव्यप्रकाशकार का जोर छिपे हुए भाव पर अधिक जान पड़ता है, रस के उद्रेक पर नहीं। काव्य के दो और भेद किए गए हैं, महाकाव्य और खंड काव्य। महाकाव्य सर्गबद्ध और उसका नायक कोई देवता, राजा या धीरोदात्त गुंण संपन्न क्षत्रिय होना चाहिए। उसमें शृंगार, वीर या शांत रसों में से कोई रस प्रधान होना चाहिए। बीच बीच में करुणा; हास्य इत्यादि और रस तथा और और लोगों के प्रसंग भी आने चाहिए। कम से कम आठ सर्ग होने चाहिए। महाकाव्य में संध्या, सूर्य, चंद्र, रात्रि, प्रभात, मृगया, पर्वत, वन, ऋतु, सागर, संयोग, विप्रलम्भ, मुनि, पुर, यज्ञ, रणप्रयाण, विवाह आदि का यथास्थान सन्निवेश होना चाहिए। काव्य दो प्रकार का माना गया है, दृश्य और श्रव्य। दृश्य काव्य वह है जो अभिनय द्वारा दिखलाया जाय, जैसे, नाटक, प्रहसन, आदि जो पढ़ने और सुनेन योग्य हो, वह श्रव्य है। श्रव्य काव्य दो प्रकार का होता है, गद्य और पद्य। पद्य काव्य के महाकाव्य और खंडकाव्य दो भेद कहे जा चुके हैं। गद्य काव्य के भी दो भेद किए गए हैं- कथा और आख्यायिका।
उपरोक्त साहित्यिक व बौद्धिक विवेचना के अध्ययन से प्रतीत होता है कि कविता एक ऐसी विधा है, जिसके माध्यम से समाज में जनक्रांति लाई जा सकती है। समाज को एक नई दिशा दी जा सकती है। कविता, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, पथिक, वैचारिक आदि नवजागरण में अपने महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रहती है। मन से जो बातें निकली। सब बातें कविता हो नहीं सकती। कविता जिसके अंदर एक गहरा अर्थ समाहित हो। पंक्तियां कुछ विचारने की ओर इंगित करती हैं, सच्चे अर्थों में वही कविता है।