प्रेम को परिभाषित करती ‘पैंतालीस का प्रेम’ कहानी

कथाकार कविता विकास की कहानी 'पैंतालीस का प्रेम' पर समीक्षा।

प्रेम को परिभाषित करती ‘पैंतालीस का प्रेम’ कहानी

विजय केसरी:

कविता विकास की सद्य प्रकाशित ‘पैंतालीस का प्रेम’ कहानी प्रेम को एक नए नजरिए से परिभाषित करती हैं। प्रेम जैसे विषय को लेकर लिखी गई, यह एक उत्कृष्ट कहानी है। आज के भागम भाग भरी जिंदगी में लगभग लोग अपने अपने काम के पीछे इस तरह दौड़ते चले जा रहे हैं, बस ! भागम भाग ही जिंदगी का पर्याय बन गया हो। इस भागम भाग में पति पत्नी के रिश्ते के बीच के ‘प्रेम’ सब पीछे छुटते चले जा रहे हैं । लोगों के पास जीवन जीने के हर तरह के साजो सामान उपलब्ध होते चले जा रहे हैं, लेकिन उनके अपने दांपत्य जीवन के प्रेम कहीं गुम होते चले जा रहे है। पति – पत्नी के बीच जो प्रेम रहना चाहिए, वह प्रेम धीरे धीरे कर लोप होता चला जा रहा है । परिणाम यह हो रहा है कि पति – पत्नी एक कमरे में साथ रहकर भी दोनों एक दूसरे से अंजान बने होते हैं। कई बार तो कितने दिनों तक दोनों के बीच बातचीत तक नहीं हो पाती है । फलस्वरुप दांपत्य जीवन का प्रेम और वास्तविक खुशी दूर होती चली जा रही है। इस विकट परिस्थिति में ‘पैंतालीस का प्रेम’ कहानी पति – पत्नी के बीच फिर से प्रेम को पुनर्जीवित करती नजर आती है ।
प्रेम के संदर्भ में कई कहानियां प्रचलित है। हर कालखंड में प्रेम कहानियां दस्तक देती रहती हैं। ये कहानियां समाज को प्रेम से सराबोर कर एक अमिट पहचान देकर चली जाती हैं। इन कहानियों के प्रेम के रूप अलग-अलग जरूर होते हैं, इसके बावजूद हर एक कहानी में प्रेम ही आधार स्तंभ होते हैं। बस ! इसे समझने भर की जरूरत होती है। हर एक कहानी टूटे रिश्ते में फिर से बाहर ला देती है। फिर लोग इस बेशकीमती दौलत प्रेम से खुद को क्यों दूर करते चले जा रहे हैं ? यह अहम सवाल । कथाकार कविता विकास की कहानी ‘पैंतालीस का प्रेम’ उदासीन लोगों में फिर से प्रेम जगाने की कोशिश करती हैं। यह कहानी उसकी उदासीनता पर सवाल भी उठाती है। कहानी की पठनीयता ऐसी कि पढ़ना शुरू किया तो खत्म कर ही छोड़ा। कहानी छोटी जरूर है, लेकिन समाज के यथार्थ से रूबरू भी कराती हैं। प्रेम की कोई उम्र नहीं होती है। प्रेम किसी भी उम्र में हो सकती है । बस ! जरूरत है, प्रेम रूपी उसे खाद और पानी देने की ।‌ ‘पैंतालीस का प्रेम’ एक ऐसी ही कहानी है, जिसमें नीला नाम की एक पैंतालीस वर्ष की शादीशुदा युवती को आशीष नाम के तीस वर्षीय युवक से ना चाहते हुए भी प्रेम हो जाता है। यह प्रेम मन को स्पर्श करता है। मन को आनंदित करता है। प्रेम मन उठता है और मन में समा जाता है। प्रेम में कहीं कोई विकार नहीं । प्रेम अपने सौंदर्य को अनुभव करता है। ‘पैंतालीस का प्रेम’ कहानी इसी सौंदर्य के इर्द-गिर्द घूमता है।…नीला की शादी के पच्चीस वर्ष से अधिक समय बीत गए चुके हैं । नीला बचपन से ही सुंदर और हंसमुख रही है। उसकी खूबसूरती का यह आलम था कि लड़कियां भी उससे ईर्ष्या किया करती थी।‌ जो लड़कियों उसके साथ घूमा करती, कहती कि ‘तुम्हारे साथ घूमने से लोग तुम्हें ही देखते हैं। ‘
नीला की शादी विनीत नाम के एक युवक से हुई थी। विनीत बड़े ही शांत स्वभाव का इंसान है। वह पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ अपने ऑफिस में काम करता है। वह समय से घर आ जाता है। घर में जो बना होता, खाता और सो जाता । जबकि विनीत कुछ साल पहले ऐसा ना था। विनीत बहुत ही रोमांटिक हुआ करता था। वह अपनी पत्नी के लिए बराबर गजरा लाकर देता । कई बार वह खुद से नीला के बालों में गजरा लगा देता। वह नीला से बेहद प्यार करता। अपने प्यार को प्रदर्शित भी करता रहता। नीला के सौंदर्य की तारीफ करता रहता। वह, उसके रूप और संघर्ष पर पंक्तियां भी दर्ज करता रहता। जैसे-जैसे शादी की उम्र बढ़ती गई, विनीत के व्यवहार में फर्क आता गया। अब वह पहले की तरह अपनी पत्नी के लिए ना गजरा लापता और ना उसके रूप की तारीफ करता । ना ही उसके सौंदर्य पर पंक्तियां दर्ज करता।‌ बस ! वह समय से ऑफिस जाता, समय से घर आता । समय से सो जाता। नीला, उससे क्या चाह रही है ? वह इस बात से खुद को अनजान करता चला जा रहा है । विनीत एक उदासीन इंसान में तब्दील हो चुका है। ‌ विनीत की उदासीनता धीरे-धीरे बढ़ती चली जा रही है । नीला अब यह भूल चुकी है कि वह कभी बेहद सुंदर और आकर्षक थी। एक समय लोग उसको देखने के लिए दीवाने रहते थे । कभी विनीत उसके सौंदर्य पर पंक्तियां भी दर्ज करता रहा था।
इसी बीच उसी के सामने वाली बिल्डिंग में एक तीस – बत्तीस वर्ष का युवा फॉरेस्ट ऑफिसर आशीष बनर्जी किराए में रहने आता है। उस बिल्डिंग में लगभग सभी कामकाजी लोग ही रहते हैं,जो सुबह ही अपने अपने ऑफिस के लिए निकल पड़ते हैं । दूध का भगोना देने के लिए आशीष बनर्जी ने नीला के घर के दरवाजे पर दस्तक देता है। कहानीकार कविता विकास, आशीष बनर्जी की ये पंक्तियां बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत करती हैं,,.. ‘मैं आशीष बनर्जी सामने वाली बिल्डिंग में शिफ्ट किया हूं । मेरे फ्लैट में सभी कामकाजी हैं। सो नौ बजते बजते सभी निकल जाते हैं । शाम चार बजे दूध वाला आएगा, प्लीज आप यह भगोना रख लीजिए, दूध ले लीजिएगा।’ यह कहकर आशीष बनर्जी ने दूध का भगोना नीला को थमा दिया। नीला चाह कर भी कुछ ना नहीं कह सकी। यह दूध का भगोना देने और दूध लेने के क्रम में आशीष बनर्जी का नीला के यहां आना जाना होता रहा । दोनों के बीच कई तरह की बातें होने लगी । जिसमें आशीष, नीला की खूबसूरती का बखान करने में कोई भी कमी नहीं करता। आशीष की उसके रूप सौंदर्य की प्रशंसा भरी बातें सुनकर बहुत ही अच्छा लगता। वह तो विनीत की उदासीनता में भूल चुकी थी कि उसका रूप और सौंदर्य अभी भी विद्यमान है। आईने में खुद को देखती और आशीष के लिए साज शृंगार भी करने लगी। नीला यह जानती है कि रविवार को आशीष नहीं आता है। इसके बावजूद उसका ध्यान बाहर दरवाजे पर जरूर होता। शायद दरवाजे पर आशीष दस्तक दे दे और उसकी एक झलक मिल जाए। ‌
नीला यह समझ नहीं पा रही है कि उसके साथ क्या हो रहा है ? यह कैसा प्रेम है ? क्या यही है ? पैंतालीस की उम्र ? चाहे जो कुछ भी हो, नीला को आशीष से मिलना, आशीष के मुंह से उसके रूप सौंदर्य की तारीफ सुनना, बड़ा अच्छा लगता। नीला उससे मिलने के लिए बेचैन हो उठती । आशीष की अनुपस्थिति में मुस्कुराती, गुनगुनाती। ‘पैंतालीस का प्रेम’ कहानी की सबसे रोमांटिक दृश्य का वर्णन करते हुए कहानीकार दर्ज करती हैं।… ‘एक दिन सवेरे जब आशीष दूध का भगोना देने आया, तब वह नहा कर निकली थी, सफेद साड़ी में, गीले बालों के साथ, जैसे ही उसकी नजर पड़ी, वह देखता ही रह गया। नीला ने जब भगोना उसके हाथ से लिया, तब उसकी तंद्रा टूटी, आशीष कह उठा, ‘आप तो गुलाब पर पड़ी शबनम की मोती सी लग रही है, गजब की सुंदर। ‘ अपनी तारीफ सुने नीला को एक अरसा बीत गया था। आशीष ने जब उससे यह बात कही, तब वह प्रेम रस में पूरी तरह तरबतर हो गई। आशीष की बातों ने नीला के मुरझाए प्रेम को फिर से हरा-भरा कर दिया। आगे आशीष, नीला को दूध का भगोना देते हुए कहता है, ‘मां कहती थी कि सुबह-सुबह सुंदर चीज देखने से सारे दिन ताजगी बनी रहती है। मां ने गलत कहा नहीं था।’ यह सुनकर नीला के गालों में लालिमा छा गई। वह मुस्कुरा कर आशीष को देखती रही। तब तक देखती रही, जब तक आशीष नजरों से ओझल नहीं हो गया।
नीला को इस बात का भी ध्यान है कि उसकी उम्र पैतालीस तक पहुंच गई है। लेकिन आशीष की बातों में उसे फिर से बीस साल की छुई मूवी बना दिया है। नीला के स्वभाव बहुत बदलाव आ चुका है। वह पहले जैसी उदास नहीं रहती। अब वह गुमसुम भी नहीं रहती है। अब वह बनने और संवरने लगी है। नीला के स्वभाव में आए इस अप्रत्याशित बदलाव को उसका पति विनीत महसूस कर रहा है। एक रात विनीत ने चुटकी लेकर नीला से कहा, ‘आशीष तो तुम्हारा दीवाना हो गया है’। विनीत से यह बात सुनकर नीला को बुरा भी नहीं लगा। इधर विनीत भी नीला के प्रति अपने उदासीन भाव को समझ भी रहा है। लेकिन वह अपने ऑफिस और घर के कार्यों में ऐसा उलझा हुआ है कि वह अपनी पत्नी के साथ रहकर भी उससे दूर । कथाकार कविता विकास ने नीला और विनीत के बीच संबंधों पर एक मार्मिक बात दर्ज किया है, ‘विनीत के घर पर होने से नीला को एक तनाव सा महसूस होता है। अकेलापन अच्छा लगता है।’ ऐसा नहीं है कि नीला में आए इस आकस्मिक बदलाव को विनीत ने महसूस ना किया हो। कथाकार इस कहानी के माध्यम से कहना चाहती हैं कि आज लोग नौकरी, व्यवसाय में मशगूल होते चले जा रहे हैं। एक के बाद एक नई गाड़ियां और नए आलीशान घर जरूर खरीद ले रहे हैं, लेकिन पति को पत्नी के लिए समय नहीं है। पति को अपनी पत्नी से बातचीत तक करने की फुर्सत नहीं है। क्या गाड़ियों, पैसों और नए-नए बिल्डिंग से पत्नी के प्रेम को पूरा किया जा सकता है ? नहीं । यह तो स्त्री पुरुष के मिलन से ही संभव हो सकता है। यहां नीला एक प्रतीक के रूप में है। जो समाज का सच है। अगर नीला को घर में ही प्रेम मिला होता, तब वह आशीष में प्रेम क्यों खोजती। विनीत एक कामकाजी पुरुष है।‌ विनीत की उदासीनता ने नीला को भी उदासीन बना कर रख दिया है। दोनों साथ रह कर भी साथ नहीं है। इस मर्म और समाज के सच को समझने की जरूरत है । आज पति पत्नी दोनों अच्छी नौकरियों में है। दोनों थके हारे घर आते हैं । घर आने के बाद दोनों लैपटॉप में व्यस्त हो जाते हैं। दोनों की उम्र यूं ही बीत जाती है । जब ख्याल आता है, तब तक उम्र काफी बीत चुकी होती है। उन दोनों के दांपत्य जीवन से एक बड़ी जरूरी चीज छूट गई होती है।वह जरूरी चीज थी,.. आपस के प्रेम। इस प्रेम के लेन देन को यह कहानी बहुत ही मार्मिक ढंग से समझाती है।
कहानी आगे बढ़ती है। एक दिन आशीष बनर्जी अपनी शादी का कार्ड नीला के हाथों में थमा कर यह कहता है, ‘आप दोनों को मेरी शादी में जरूर आएंगे।’ नीला, आशीष से प्रेम भरी कुछ बातें सुनने आई है। बदले में आशीष ने उसके प्रेम पर राख उड़ेल कर चला गया हो । नीला ने खुद को संभाल के आशीष को बधाई दिया। आशीष, नीला की नजरों से दूर हो चुका था। नीला के चेहरे की रौनक गायब हो चुकी है। जैसे उसके पैर से जमीन कहीं दूर खिसक गई हो । इस घटना के बीते दो दिन से हो गए । विनीत ने ऑफिस से आते समय नीला के लिए एक गजरा खरीद लिया। शाम के छः बजे हैं। नीला अपने कमरे में साफ सफाई में लगी हुई है। अचानक विनीत ने उसे पीछे से आकर थाम लिया और प्रेम से कहा, ‘चलो,..तैयार हो जाओ। आज बाहर चलते हैं। दिन भर काम में लगी रहती हो’। इस अप्रत्याशित प्रेम भरे हमले को तो वह जाने कब से भूल चुकी थी। विनीत ने बिना समय गवाएं नीला के बालों में गजरा टांग देता है। पिछले कई वर्षों से नीला इसी अप्रत्याशित प्रेम के लिए भूखी थी। विनीत के प्रेम भरी बातों ने नीला के प्रेम को फिर से हरा भरा कर दिया । कहानी के अंत में कहानीकार कविता विकास दर्ज करती है, ‘आशीष का उसके मोहल्ले में आना उसके जीवन में बाहर लाने के लिए ही था। ऐसा बहार जो अब कभी पतझड़ नहीं झेलेगा। आखिर एक दूसरे में आकर्षण खोजने का मूल मंत्र आशीष ने दे दिया था’। ‘पैंतालीस का प्रेम’ कहानी के माध्यम से कहानीकार कविता विकास ने समाज जिस यथार्थ और विषय को सामने रखा है, उस पर गंभीरतापूर्वक विचार करने की जरूरत है। इस विषय हर उस दंपति को विचार करना चाहिए जो जीवन के आपाधापी में कहीं अपने प्रेम को तो नहीं खो दे रहे हैं। निश्चित तौर पर ‘पैंतालीस का प्रेम’ प्रेम को परिभाषित करती एक उत्कृष्ट कहानी है।