भारतीय संविधान विश्व का सबसे लम्बा लिखित संविधान है
(26 जनवरी, गणतंत्र दिवस के 75 वें वर्ष में प्रवेश पर विशेष) भारतीय संविधान निर्माण की गौरवमयी गाथा
भारत के संविधान निर्माण की गौरवमयी गाथा सदा देशवासियों का मस्तक ऊंचा करती रहेगी । वहीं इसके निर्माण का इतिहास त्याग, बलिदान, समर्पण और बंधुत्व से ओतप्रोत है । हर भारतीय को भारत के संविधान के निर्माण के इतिहास से परिचित होना चाहिए । यह भारत को एक पूर्ण गणतांत्रिक देश के रूप में प्रतिष्ठित करता है । भारत का संविधान देश के समस्त नागरिकों को एक सूत्र में बांधता है। हम सब हर गणतंत्र दिवस पर अपने अपने सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों पर झंडोत्तोलन कर अपने दायित्व का निर्वहन करते हैं । यह अच्छी बात है। हम सबको यह जानना चाहिए कि भारत के संविधान निर्माण की कहानी त्याग, बलिदान, समर्पण और बंधुत्व से ओतप्रोत कैसे है। इसे हर भारतीय को जानना चाहिए। संविधान निर्माण सभा के माननीय सदस्यों ने दिन रात एक कर भारतीय संविधान की रचना की थी।
संविधान सभा की पहली बैठक दिसंबर 1946 को हुई
भारत का संविधान, भारत का सर्वोच्च विधान है, जो संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित हुआ था। यह विधान 26 जनवरी 1950 से प्रभावी हुआ था । 26 नवम्बर, भारतीय संविधान सभा के लिए जुलाई 1946 में तिथि तय हुई थी। संविधान सभा की पहली बैठक दिसंबर 1946 को हुई थी। इसके तत्काल बाद देश आंतरिक तौर पर दो भागों , भारत और पाकिस्तान में बंट गया था। संविधान सभा भी दो हिस्सों में बंट गई थी। एक भारत की संविधान सभा और दूसरी पाकिस्तान की संविधान सभा। संविधान लिखने वाली सभा में 299 सदस्य थे, जिसके अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे। संविधान सभा ने 26 नवम्बर 1949 में अपना काम पूरा कर लिया था। 26 जनवरी 1950 को यह संविधान लागू हुआ। इसी दिन की याद में हम हर वर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं।
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संविधान में कुल 395 अनुच्छेद हैं
भारतीय संविधान को पूर्ण रूप से तैयार करने में 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन का समय लगा था। डॉ भीमराव अंबेडकर को भारतीय संविधान का प्रधान वास्तुकार या निर्माता कहा जाता है। इस संविधान का मूल आधार भारत सरकार अधिनियम 1935 को माना जाता है। यह विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लम्बा लिखित संविधान है। इसमें वर्तमान समय में भी 395 अनुच्छेद, तथा 12 अनुसूचियाँ हैं । ये 25 भागों में विभाजित है। परन्तु इसके निर्माण के समय मूल संविधान में 395 अनुच्छेद जो 22 भागों में विभाजित थे और इसमें केवल 8 अनुसूचियाँ थीं। संविधान में सरकार के संसदीय स्वरूप की व्यवस्था की गई है, जिसकी संरचना कुछ अपवादों के अतिरिक्त संघीय है। केन्द्रीय कार्यपालिका का सांविधानिक प्रमुख राष्ट्रपति हैं। धारा 79 के अनुसार, केन्द्रीय संसद की परिषद् में राष्ट्रपति तथा दो सदन है, जिन्हें राज्यों की परिषद राज्यसभा तथा लोगों का सदन लोकसभा के नाम से जाना जाता है।
भारतीय संविधान की शक्ति मन्त्रिपरिषद में निहित है
राष्ट्रपति की सहायता करने तथा उसे परामर्श देने के लिए एक रूप होता है, जिसका प्रमुख प्रधानमन्त्री होते हैं। राष्ट्रपति इस मन्त्रिपरिषद की सलाह के अनुसार अपने कार्यों का निष्पादन करते हैं। इस प्रकार वास्तविक कार्यकारी शक्ति मन्त्रिपरिषद में निहित है । जिसका प्रमुख प्रधानमन्त्री है , जो वर्तमान में नरेन्द्र मोदी हैं। मन्त्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोगों के सदन (लोक सभा) के प्रति उत्तरदायी है। प्रत्येक राज्य में एक विधानसभा है। उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश और तेलंगाना में एक ऊपरी सदन है, जिसे विधानपरिषद कहा जाता है और उसका प्रमुख राज्यपाल होता है। संविधान के अनुसार प्रत्येक राज्य का एक राज्यपाल होगा तथा राज्य की कार्यकारी शक्ति उसमें निहित होगी। मन्त्रिपरिषद, जिसका प्रमुख मुख्यमन्त्री है, राज्यपाल को उसके कार्यकारी कार्यों के निष्पादन में सलाह देती है। राज्य की मन्त्रिपरिषद राज्य की विधान सभा के प्रति उत्तरदायी होती है। संविधान की सातवीं अनुसूची में संसद तथा राज्य विधायिकाओं के बीच विधायी शक्तियों का वितरण किया गया है। अवशिष्ट शक्तियाँ संसद में विहित हैं। केन्द्रीय प्रशासित भू-भागों को संघराज्य क्षेत्र कहा जाता है।
संविधान के निर्माण में 389 सदस्यों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद जुलाई 1945 में ब्रिटेन ने भारत संबन्धी अपनी नई नीति की घोषणा की तथा भारत की संविधान सभा के निर्माण के लिए एक कैबिनेट मिशन भारत भेजा, जिसमें तीन मंत्री थे। 15 अगस्त 1947 को भारत के आज़ाद हो जाने के बाद संविधान सभा की घोषणा हुई थी। इसने अपना कार्य 9 दिसम्बर 1947 से आरम्भ कर दिया। संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे। जवाहरलाल नेहरू, डॉ भीमराव अम्बेडकर, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल और मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे। इस संविधान सभा ने 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन में कुल 114 दिन बहस की। संविधान सभा में कुल 12 अधिवेशन किए तथा अंतिम दिन 284 सदस्यों ने इस पर हस्ताक्षर किया। संविधान बनने में 166 दिन बैठक की गई। इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतन्त्रता थी। भारत के संविधान के निर्माण में संविधान सभा के सभी 389 सदस्यों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा ने पारित किया और इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था। इस संविधान में सर्वाधिक प्रभाव भारत शासन अधिनियम 1935 का है। इस में लगभग 250 अनुच्छेद इस अधिनियम से लिये गए हैं।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना विश्व में सर्वश्रेष्ठ है
संविधान के उद्देश्यों को प्रकट करने हेतु, एक प्रस्तावना प्रस्तुत की जाती है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना अमेरिकी संविधान से प्रभावित तथा विश्व में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। प्रस्तावना के नाम से भारतीय संविधान का सार, अपेक्षाएँ, उद्देश्य उसका लक्ष्य तथा दर्शन प्रकट होता है। प्रस्तावना यह घोषणा करती है कि संविधान अपनी शक्ति सीधे जनता से प्राप्त करता है इसी कारण यह ‘हम भारत के लोग’ – इस वाक्य से प्रारम्भ होती है। केहर सिंह बनाम भारत संघ के वाद में कहा गया था, ‘संविधान सभा भारतीय जनता का सीधा प्रतिनिधित्व नहीं करती। अत: संविधान विधि की विशेष अनुकृपा प्राप्त नहीं कर सकता, परंतु न्यायालय ने इसे खारिज करते हुए संविधान को सर्वोपरि माना है’। जिस पर कोई प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है। भारत के संविधान की प्रस्तावना इसकी आत्मा है। संविधान को पढ़ने से पूर्व संविधान की प्रस्तावना को पढ़ना अनिवार्य है।
प्रस्तावना इस प्रकार है:
यह संघ राज्यों के परस्पर समझौते से नहीं बना है राज्य अपना पृथक संविधान नहीं रख सकते है, केवल एक ही संविधान केन्द्र तथा राज्य दोनो पर लागू होता है। भारत में द्वैध नागरिकता नहीं है। केवल भारतीय नागरिकता है। भारतीय संविधान में आपातकाल लागू करने के उपबन्ध है । 352 अनुच्छेद के लागू होने पर राज्य-केन्द्र शक्ति पृथक्करण समाप्त हो जायेगा तथा वह एकात्मक संविधान बन जायेगा। इस स्थिति में केन्द्र-राज्यों पर पूर्ण सम्प्रभु हो जाता है। संविधान की प्रस्तावना के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि एक संघ में दो विधान नहीं हो सकते हैं। इसके बावजूद जम्मू कश्मीर में एक अलग विधान और एक अलग झंडा था । जिसे वर्तमान की केंद्र सरकार ने धारा 370 और 35a को लोकसभा द्वारा निरस्त कर इस दाग को हमेशा हमेशा के लिए मिटा दिया । आइए हमसे मिलकर गणतंत्र दिवस आपसी भाईचारे और बंधुत्व के साथ मिलजुल कर बनाएं।