14 दिसंबर देश के जाने-माने अभिनेता राज कपूर की 100 वीं जयंती पर विशेष
राज कपूर का संपूर्ण जीवन भारतीय फ़िल्म उद्योग को समर्पित रहा था।
भारतीय फिल्म उद्योग के जाने-माने अभिनेता, निर्माता,निर्देशक का संपूर्ण जीवन भारतीय फिल्म इंडस्ट्रीज को समर्पित रहा था। उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में जो कार्य किया, सदा याद किया जाता रहेगा। वे जितने महान अभिनेता, निर्माता और निर्देशक थे, उतने ही सहज और सरल प्रकृति के व्यक्ति थे । भारत के आम आदमी की दैनंदिन की समस्याओं को अपने फिल्मों में स्थान दिया था। उन्हें अभिनय और कला की बड़ी अच्छी समझ थी। 14 जनवरी, 1924 को पाकिस्तान में उनका जन्म हुआ था । 2 जून 1988 में उसकी मृत्यु हो गई थी। वे इस धरा पर मात्र 64 वर्षों तक जीवित रहे थे। उन्होंने अपने यादगार अभिनय और एक सफल निर्देशक के रूप में कार्य कर स्वयं को कालजई बना दिया था। राज कपूर साहब की मृत्यु के 36 वर्ष बीत जाने के बाद भी उनकी फिल्में राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़े ही चाव के साथ देखी जाती हैं ।
यह राज कपूर के लिए सौभाग्य की बात थी कि उनका जन्म एक कलाकार के घराने में हुआ था । देश के बंटवारे के समय राज कपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर भारत आ गए थे। जबकि पृथ्वीराज कपूर ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत फैसलाबाद और पेशावर के थिएटर से की थी। अर्थात भारत आने के बावजूद वे थिएटर और फिल्म से सीधे जुड़ गए थे। राज कपूर को बचपन से ही एक फिल्मी माहौल मिला था। अभिनय करना उन्हें बहुत अच्छा लगता था। वे बड़ी छोटी उम्र में ही अपने पिता पृथ्वीराज कपूर की उंगली पड़कर अभिनय के क्षेत्र में प्रवेश कर गए थे। पृथ्वीराज कपूर भारतीय फिल्म इंडस्ट्रीज के एक महानतम अभिनेता के रूप में जाने जाते हैं। राज कपूर को उनके पुत्र होने का गौरव प्राप्त था।
भारतीय फिल्म उद्योग के जनक दादा साहब फाल्के ने सन 1912 में मुंबई में भारतीय फिल्म उद्योग की नींव रखी थी। आगे चलकर सोहराब मोदी, पृथ्वीराज कपूर, राज कपूर आदि ने भारतीय फिल्म उद्योग के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। आज भारतीय फिल्म उद्योग सालाना एक हजार से अधिक फिल्मों का निर्माण करता है। भारत में बनी फिल्में विश्व के कई देशों में बड़े ही उत्सुकता के साथ देखी जाती हैं । आज भारतीय सिनेमा जिस मुकाम पर पहुंचा है, उसको पहुंचाने में दादा साहब फाल्के, सोहराब मोदी, पृथ्वीराज कपूर, राज कपूर आदि के अवदान को कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता है।
राज कपूर साहब बचपन से ही एक फिल्मी माहौल में पले बढ़े थे। शुरुआती दिनों में उनके पिता पृथ्वीराज कपूर को भी यह उम्मीद नहीं थी कि आगे चलकर राज कपूर अभिनय के क्षेत्र में राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक ऊंचा मुकाम बनाएगा। सिने प्रेमियों को यह जानना चाहिए कि राज कपूर साहब देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समाजवाद से बहुत प्रभावित थे । उनकी फिल्मों में समाजवाद का पुट मिलता है। उन्होंने अपनी शुरुआती फिल्मों से लेकर प्रेम कहानियों को मादक अंदाज में पर्दे पर पेश कर हिंदी फिल्मों के लिए जो रास्ता तय किया था । आगे चलकर इसी रास्ते पर कई फिल्मकार चले । राज कपूर साहब अपने समय के सिनेमा के सबसे बड़े शोमैन के रूप में जाने जाते थे । जब उनकी एक फिल्म ' आवारा' हिट हो गई थी। तब वे ही देखते हुए राष्ट्रीय - अंतरराष्ट्रीय अभिनेता का रूप में जाने-जाने लगे थे। उनकी फिल्में सोवियत संघ और मध्य पूर्व देशों में बड़े ही उत्साह के साथ देखी जाती थी।
राज कपूर साहब की लोकप्रियता का आलम यह था कि देश के महान स्वाधीनता सेनानी, सत्य अहिंसा के पुरोधा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बाद राज कपूर साहब तीसरे ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोग जानते थे। राज कपूर साहब भारतीय फिल्म उद्योग के पहले और आखिरी शोमैन थे। उनके जाने के बाद भी यह खिताब देश की जनता और सिने प्रेमियों ने किसी को नहीं दिया। राज कपूर ने फिल्म 'श्री 420' में मुंबई की जो मूल तस्वीर पेश की थी, वह अपने आप में एक बेमिसाल था। यह फिल्म आज भी फिल्म निर्माताओं को अभी भी आकर्षित करती है। राज कपूर की फिल्मों की कहानी आमतौर पर उनके जीवन से जुड़ी होती थी। दिलचस्प बात यह है कि ज्यादातर फिल्मों में वे खुद नायक होते थे। वे अपने किरदार में इस तरह घुल मिलकर अभिनय करते थे कि दर्शकों को ऐसा लगता था कि राज कपूर साहब खुद परेशानियों और झंझावातों के बीच जी कर संघर्ष रत हैं। एक तरह से राज कपूर साहब अपने अभिनय के बल पर जनता की आवाज बन चुके थे।
राज कपूर ने 1935 में मात्र ग्यारह वर्ष की उम्र में फिल्म 'इंकलाब' में एक बाल कलाकार के रूप में अभिनय किया था। वे सीधे फिल्म के हीरो नहीं बन गए थे। राज कपूर साहब अपने पिता के साथ एक सहायक के रूप में लंबे समय तक काम किया था। यहां तक कि उन्होंने फिल्म निर्माण के दौरान एक साधारण फिल्म के यूनिट के कार्यकर्ता के रूप में भी काम किया था। पृथ्वीराज कपूर ने राज कपूर को फिल्म निर्माण की बारीकियों की सीख का निर्माण के दौरान दिया था । राज कपूर ने बड़ी शिद्दत के साथ फिल्म निर्माण की बारीकियां की सीख ली थी। उन्हें काम दिया गया था , उन्होंने पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ किया था । राज कपूर बचपन से ही फिल्म निर्माण की बारीकियों को सीखना चाहते थे'। आगे चलकर यही सीख उन्हें काम आई। तब वे एक के बाद एक बेहतरीन फिल्में देश को दे पाए थे।पृथ्वी राज कपूर यह नहीं चाहते थे कि उनके नाम पर उनके बेटे राज कपूर को फिल्म में अभिनय करने का अवसर मिले बल्कि राज कपूर अपने अभिनय के बल पर फिल्में करें। इसी का परिणाम यह हुआ कि लंबे समय तक राज कपूर बाल कलाकार से लेकर युवा होने तक छोटे और मोटे रौल करते रहे थे। राज कपूर का फिल्मी सफर हिंदी सिनेमा की वीनस माने जाने वाली सुप्रसिद्ध अभिनेत्री मधुबाला के साथ आरंभ हुआ था। 1946 में प्रदर्शित केदार शर्मा की एक फिल्म 'नीलकमल' तथा मोहन सिन्हा के निर्देशन में बनी फिल्म 'चित्तौड़ विजय', 'दिल की रानी' तथा 1948 में केलकर द्वारा निर्देशित फिल्म 'अमर प्रेम' ने राज कपूर को एक हीरो के रूप में स्थापित कर दिया था। तीनों फिल्मों की कहानी अलग-अलग पृष्ठभूमि पर बनी थीं । तीनों फिल्मों में हीरो के किरदार अलग-अलग थे। इन तीनों फिल्मों में राज कपूर साहब ने जीवंत अभिनय कर सिने प्रेमियों के दिल में अपनी एक खास जगह बना ली थी।
राज कपूर अपने जमाने की मशहूर नायिका नरगिस के अतिरिक्त मधुबाला के साथ ही सबसे अधिक फिल्मों में नायक की भूमिका अदा की थी। 1948 में प्रदर्शित 'आग' पहली फिल्म थी, जिसमें राज कपूर एक अभिनेता के साथ-साथ निर्माता निर्देशक के रूप में भी सामने आए थे। 'आग' के प्रदर्शन के साथ ही राज कपूर की छवि एक विवाद ग्रस्त व्यक्तित्व के रूप में बन गई थी। चूंकि 'आग' फिल्म स्थापित परंपराओं का अनुकरण नहीं करती थी। यह फिल्म अपनी अलग पहचान नहीं बना सकी। 'आग' के बाद 1949 में राज कपूर 'बरसात' फिल्म में अभिनेता के साथ-साथ निर्माता निर्देशक के रूप में भी पुनः उपस्थित हुए ।इस फिल्म ने सफलता का एक नए मापदंड कायम कर दिया था।
राज कपूर का फिल्मी करियर बहुत ही लंबा है। उन्होंने अपने 64 साल के जीवन काल में कई सुपरहिट फिल्मों को भारतीय सिने प्रेमियों के बीच प्रस्तुत किया था। कुछ फिल्में छोड़कर शेष फिल्में आज भी सिने प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करती रहती हैं । राज कपूर की फिल्म 'मेरा नाम जोकर' में उन्होंने जो जीवंत अभिनय किया, इसे कदापि भूलाया नहीं जा सकता है। राज कपूर ने 'संगम' फिल्म में ऐसा अभिनय नहीं किया कि लोग सिनेमा हॉल में देखकर रो पड़ते हैं। 1966 में राज कपूर तथा वहीदा रहमान अभिनीत 'तीसरी कसम' प्रतिशत हुई थी । यह हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु रचित कहानी पर केंद्रित थी । यह फिल्म रिलीज होने के बाद फ्लॉप हो गई थी । बाद में यह फिल्म हिट हुई थी । यह फिल्म भारत के ग्रामीण परिवेश पर आधारित थी। इस फिल्म में राज कपूर ने जिस अंदाज में अभिनय किया था, लगता ही नहीं कि यह अभिनय है।
इस वर्ष राज कपूर साहब के जन्म शताब्दी वर्ष पर उनके परिवार के लोगों ने मुंबई में एक बड़े समारोह का आयोजन किया है। इस दिन देश के लगभग 160 सिनेमाघरों में राज कपूर साहब की विभिन्न फिल्मों को प्रदर्शित किया जाएगा । राज कपूर साहब को फिल्म के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए फिल्म का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया था ।