चित्रगुप्त पूजा जीवन में नैतिक मूल्यों को बनाए रखने का संदेश देती है
(23 अक्टूबर, कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया, चित्रगुप्त पूजा पर विशेष)

कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया के दिन मनाया जाने वाला चित्रगुप्त पूजा मनुष्य को अपने जीवन में नैतिक मूल्यों को बनाए रखना का संदेश देती है। कई योनियों में जन्म लेने के बाद उसका जन्म सबसे उत्तम योनी मनुष्य योनि होता है । हिंदू धर्म ग्रंथो के अनुसार चौरासी लाख योनियों में सबसे उत्तम योनी मनुष्य योनि को माना गया है। देवता गण भी इस योनि को प्राप्त करने के लिए ललायित रहते हैं। जब-जब सृष्टि में धर्म की हानी हो जाती है। अधर्म काफी बढ़ जाता है। आसुरी शक्तियां साधु संतों पर घोर अत्याचार करने लगती हैं, तब - तब सृष्टि के नियंता भगवान विष्णु मनुष्य के रूप में अवतार लेकर अधर्म का नाश कर धर्म को पुनः प्रतिष्ठित करते हैं। त्रेता में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम और द्वापर में भगवान कृष्ण मनुष्य के रूप में अवतार लेकर अधर्म का नाश कर धर्म को प्रतिष्ठित किए थे। जब से सृष्टि का निर्माण आदि शक्ति स्वरूपा ने किया तब से धर्म और अधर्म के बीच लड़ाइयां चल ही रही हैं। आगे चलकर हमारे ऋषि मुनियों ने यह बताया कि धर्म और अधर्म मनुष्य के भीतर उसके कर्मों के अनुरूप नियमित रूप से चलता रहता है। अब यह मनुष्य पर निर्भर करता है कि वह धर्म अथवा अधर्म को अंगीकार करें । धर्म, सत्य का प्रतीक है । वहीं अधर्म, असत्य का प्रतीक है । भगवान चित्रगुप्त, मनुष्य के धर्म और अधर्म दोनों कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। मनुष्य के मृत्यु के उपरांत उसे उसके कर्मों के अनुसार फल देते हैं । इसलिए मनुष्य को जो यह सबसे उत्तम योनी मिला है, धर्म का मार्ग अपनाकर सदा सदा के लिए जीवन मरण के आवागमन से मुक्त होकर मोक्ष तक को प्राप्त कर सकता हैं।
चित्रगुप्त पूजा हम सबों को भगवान चित्रगुप्त की आराधना करने का संदेश देती है। उनकी आराधना का तात्पर्य यह है कि हम सब अधर्म से सदा दूरी बनाए रखें और धर्म का मार्ग पर चलते रहे । धर्म का मार्ग ही सबसे उत्तम मार्ग होता है। हम सब यह सोचने की भूल कर बैठते हैं कि हम जो कर्म कर रहे हैं, कोई उसे देख नहीं रहा है। लेकिन सृष्टि के नियंता भगवान ब्रह्मा ने भगवान चित्रगुप्त को उत्पन्न कर मनुष्य के कर्मों का लेखा-जोखा रखने की जवाबदेही दे दिया था। हमारे हर अच्छे और बुरे कर्मों का लेखा-जोखा भगवान चित्रगुप्त रखते हैं। इसलिए यह कभी न भूलें कि हम अधर्म कर बच जाएंगे । हमें कोई देखने वाला नहीं है। मनुष्य को यह जानना चाहिए कि हर प्राणी के अंदर चित्रगुप्त विद्यमान होते हैं। चित्रगुप्त के बिना जीव की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। यह मनुष्य पर निर्भर करता है कि खुद के अंदर विद्यमान उस चित्रगुप्त से कब साक्षात्कार कर पाता है। चित्रगुप्त के साक्षात्कार का मतलब है, धर्म के मार्ग का अनुसरण करना।
हिंदू धर्म ग्रंथो के अनुसार भगवान चित्रगुप्त का जन्म ब्रह्मा जी के चित्त से हुआ था। भगवान चित्रगुप्त को देवताओं के लेखपाल और यम के सहायक के रूप में पूजा जाता है। भगवान चित्रगुप्त मुख्य रूप से लेखा-जोखा रखने का कार्य करते हैं। इसलिए इनका मुख्य कार्य लेखनी से जोड़कर देखा जाता है। वैसे तो भगवान चित्रगुप्त जी की पूजा ज्यादातर व्यापारी वर्ग के लोग करते हैं, लेकिन कायस्थ कुल के लोगों को भगवान चित्रगुप्त का वंशज माना जाता है. इसी वजह से कायस्थ परिवार के लोग भगवान चित्रगुप्त जी का पूजन और उनके साथ कलम-दवात का पूजन इस दिन विशेष रूप से करते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान चित्रगुप्त की उत्पत्ति सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा की काया से हुई थी। काया से ही कायस्थ शब्द बना । एक मान्यता के अनुसार कायस्थ वंश के लोग भगवान चित्रगुप्त को अपना वंशज मानते हैं। आगे की कथा यह है कि जब भगवान यमराज ने जीवों का लेखा-जोखा रखने में असमर्थता व्यक्त की, तब ब्रह्मा जी ने बारह हजार वर्षों तक ध्यान किया। इस ध्यान से उनकी काया से एक तेजस्वी पुरुष प्रकट हुआ, जिसके हाथों में कलम और दवात थी। यही पुरुष भगवान चित्रगुप्त कहलाए। चूंकि वे ब्रह्मा जी के शरीर से उत्पन्न हुए थे, इसलिए उन्हें कायस्थ भी कहा जाता है, और कायस्थ समुदाय उन्हें अपना आदि-पुरुष मानते हैं।
हिंदू धर्म से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार भगवान चित्रगुप्त को देवताओं के लेखपाल और यम के सहायक के रूप में पूजा जाता है। चित्रगुप्त जी का कार्य मनुष्य के अच्छे और बुरे कर्मों का लेखा-जोखा रखना है। माना जाता है कि मनुष्य को उनके कर्मों के अनुसार ही फल की प्राप्ति होती है और उनके जीवन व मृत्यु की अवधि का हिसाब-किताब भी कर्मों के अनुसार ही लिखा जाता है। ये लेखा-जोखा भी भगवान चित्रगुप्त जी ही रखते हैं। इसलिए भगवान चित्रगुप्त मुख्य रूप से यमदेव के सहायक देव के रूप में जाने जाते हैं। जगत के सभी प्राणियों को भगवान चित्रगुप्त की आराधना करनी चाहिए । भगवान चित्रगुप्त सिर्फ कायस्थ समुदाय के देवता नहीं हैं, अपितु सृष्टि के हर प्राणियों के देव के रूप में पूजे जाते हैं। इसलिए जगत के हर प्राणियों को उनकी आराधना करनी चाहिए।चित्रगुप्त पूजा का मुख्य उद्देश्य भगवान चित्रगुप्त का सम्मान करना है, जो सभी प्राणियों के कर्मों का हिसाब रखते हैं। वे जीवन और मृत्यु के बाद आत्माओं के भाग्य का निर्णय करते हैं, यह देखते हुए कि व्यक्ति के कर्मों का फल क्या होना चाहिए। इसलिए, भक्त इस पूजा के माध्यम से अपने कर्मों का लेखा-जोखा ठीक रखने के लिए आशीर्वाद मांगते हैं, ताकि मृत्यु के बाद उन्हें सद्गति प्राप्त हो सके।
भगवान चित्रगुप्त मुख्य रूप से लेखा-जोखा रखने का कार्य करते हैं। इसलिए इनका मुख्य कार्य लेखनी से जोड़कर देखा जाता है। यही वजह है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीय के दिन चित्रगुप्त जी के प्रतिरूप के तौर पर कलम का पूजन भी किया जाता है। माना जाता है कि भगवान चित्रगुप्त की पूजा करने से बुद्धि, वाणी और लेखनी का आशीर्वाद मिलता है। कायस्थ कुल के लोगों को भगवान चित्रगुप्त का वंशज माना जाता है। इसी वजह से कायस्थ परिवार के लोग भगवान चित्रगुप्त जी का पूजन और उनके साथ कलम का पूजन इस दिन विशेष रूप से करते हैं। चूंकि भगवान चित्रगुप्त का जन्म कलम और दवात के साथ हुआ था। इसलिए मनुष्य को कलम और दवात की महता को कभी भी नहीं भूलना चाहिए। कलम मनुष्य की सोच को प्रकट करता है। दवात में भरे स्याही से आकर प्राप्त होता है। इसलिए कलम और दवात मनुष्य के जीवन का अभिन्न हिस्सा होता है। चूंकि भगवान चित्रगुप्त मनुष्य के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं और मनुष्य को उसके कर्मों के आधार पर फल देते हैं । इसलिए मनुष्य को हर पल यह भी सावधानी रखनी चाहिए कि उसकी कलम से कोई गलती न हो जाए । कलम वही सार्थक है, जो खुद को रौशन प्रदान करें और जगत को भी रौशन न करे। जब न्याय की बात हो तो कलम हमेशा सत्य की राह पर चले और असत्य का सदा प्रतिकार करे। तभी कलम की सार्थकता है । अन्यथा अगर कलम को कुमार्ग अथवा असत्य की ओर चल पड़ी तो यह मनुष्य की सबसे बड़ी भूल होगी । इसलिए जगत के हर एक मनुष्य को अपनी कलम को हमेशा को कुमार्ग से बचाने का प्रयास करना चाहिए । सच्चे अर्थों में भगवान चित्रगुप्त की आराधना का यही उद्देश्य है।