भाई बहन के पवित्र रिश्ते पर आधारित 'भाई दूज' का त्योहार

भारत वर्ष में भाई-बहन के रिश्ते पर आधारित भाई दूज के अलावा कई और त्यौहार हैं, जो भाई-बहन के बीच बनी दूरी को बिल्कुल निकट ला देती है ।

भाई बहन के पवित्र रिश्ते पर आधारित 'भाई दूज' का त्योहार

भारतीय लोक जीवन और संस्कृति का एक मधुर व अनुपम त्योहार भाई दूज है । यह त्यौहार हर वर्ष दीपावली के ठीक तीसरे दिन अर्थात कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीय को भाई दूज के रूप में मनाया जाता है । यह त्यौहार भाई-बहन के रिश्ते को और भी  मजबूत सूत्र से बांध देता है।  एक ही माता-पिता की संतान होने का भाई-बहन दोनों को गौरव प्राप्त होता है। दोनों के बीच भाई बहन का प्रेम बना रहे, यह संदेश निहित है, भाई दूज त्यौहार में। ये  दोनों भाई-बहन आपस में सदा एक दूसरे के सहभागी और सुख दुःख के साथी बन रहें, संभवत इसी दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर हमारे ऋषि मुनियों ने भाई बहन पर आधारित इस अनूठे त्योहार की शुरुआत की थी । भाई-बहन एक ही माता-पिता के संतान होने के बावजूद पुत्र घर का कुल दीपक होता है। वहीं पुत्री दूसरे घर की बहू बनकर ससुराल को रौशन करती है। भाई बहन के बीच बनी यह दूरी को भाई दूज का त्यौहार बिल्कुल आमने-सामने लाकर रिश्ते को और भी प्रकार बना देता है। यही भारतीय संस्कृति की गौरवशाली परंपरा रही है, जिसका निर्वहन हजारों वर्षों से होता चला रहा है । हमारे ऋषि मुनियों ने भाई बहन के दोनों कुलों में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहे, इस निमित्त  त्योहारों का ऐसा ताना-बाना बुना कि हजारों बरसों बाद भी आज के आधुनिक दौर में करोड़ों परिवार संयुक्त रूप से  साथ-साथ रह रहे हैं।

   भारत वर्ष में भाई-बहन के रिश्ते पर आधारित भाई दूज के अलावा कई और त्यौहार हैं, जो भाई-बहन के बीच बनी दूरी को बिल्कुल निकट ला देती है । रक्षा बंधन के त्यौहार में बहन अपने भाई की कलाई में राखी बांधकर स्वयं की रक्षा की कामना करती हैं । भाई, बहन की इस कामना  का निर्वाह जीवन के अंतिम क्षणों तक करता रहता है ।‌ झारखंड में प्रचलित एक त्यौहार करमा है । यह त्यौहार भी भाई-बहन के रिश्ते पर आधारित है।‌ बहनें दिन भर निर्जला उपवास कर करम गोसाई के डाल के समक्ष भाई की लंबी उम्र की कामना करती हैं। चूंकि आज भाई दूज का त्यौहार है।  इसलिए इस त्यौहार को थोड़ा और विस्तार देना चाहता हूं। ताकि समाज के हर वर्ग के लोग जान सके की एक ही माता-पिता की संतान पुत्र - पुत्री होने के बावजूद उनके बीच जो भाई-बहन का रिश्ता बनता है, वह कितना निश्चल और पवित्र होता है। भाई दूज का त्यौहार भाई-बहन के बीच अटूट बंधन का प्रतीक है। दीपावली के भव्य उत्सव के ठीक दो दिन बाद यह अनोखा त्योहार परिवारों को प्रेम की एक सुंदर परंपरा में पिरोता है। भाई दूज का मुख्य आकर्षण आरती और टीका समारोह होता है। इस त्यौहार में बहन पवित्र ज्योति से अपने भाई की आरती कर  माथे पर टीका लगाती हैं। बहन इस आरती और टीका के माध्यम से परमपिता परमेश्वर से यह कामना करती है कि मेरा भाई सदा स्वस्थ रहे।  निरोग रहे। और खुश रहे। भाई दूज का त्यौहार भारतीय संस्कृति के हृदयस्पर्शी पर्व के रूप में जाना जाता है। ससुराल में सौ  काम होने के बावजूद एक बहन, भाई को आरती और तिलक करने के लिए सुबह से इंतजार करती रहती है। भाई, बहन के हाथों आरती और तिलक लगवा कर स्वयं को धन महसूस करता  है।  यह पल मर्म को छू जाता है । भाई-बहन दोनों के आंखों में खुशी के अश्रु टपक पड़ते हैं। 
  भाई दूज पर्व का इतिहास मुख्य रूप से यमराज और यमुना की पौराणिक कथा से जुड़ा है। मृत्यु के देवता यमराज को अचानक अपनी बहन की याद आई और वे यम द्वितीया के दिन उनसे मिलने गए। अपने भाई यमराज को देखकर यमुना बहुत खुश हुईं और उन्होंने भाई यमराज का गर्मजोशी से स्वागत किया, उनके माथे पर तिलक लगाया, उन्हें मिठाई खिलाई और उपहार दी। यमराज अपनी बहन के आदर-सत्कार से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने यमुना से वरदान मांगने को कहा। तब यमुना ने यह वरदान मांगा कि जो भी भाई इस दिन अपनी बहन के घर आएगा और बहनें अपने भाई का तिलक करेंगी, तो उस भाई की आयु में वृद्धि होगी। इसी घटना के बाद से कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज का त्योहार मनाने की शुरुआत हुई, जिसे यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है।एक अन्य कथा के अनुसार, राक्षस नरकासुर का वध करने के बाद भगवान कृष्ण अपनी बहन सुभद्रा से मिलने गए थे। सुभद्रा ने अपने भाई का स्वागत फूलों और मिठाइयों से किया, उनके माथे पर तिलक लगाया और माला भी पहनाई।यह दिन भाई-बहन के बीच के प्रेम का प्रतीक बन गया और तभी से भाई दूज का त्योहार मनाया जाने लगा। 
 भाई दूज त्यौहार की मुख्य सामग्री  टीका, मिठाई, कलावा, दीपक, धूप, चावल, नारियल या सूखा नारियल, रुमाल, रोली, मौली होती है। ये सामग्रियां बहने बहुत ही श्रद्धा के साथ खरीदती हैं। भाई दूज के दिन भाई-बहन दोनों को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर यमुना नदी अथवा निकट के तालाब व  ताजे पानी में यमुना का जल मिलाकर स्नान करना चाहिए। भाई बहन दोनों को यमुना माता का भी ध्यान करना चाहिए।  इसके साथ यह भी संकल्प लेना चाहिए कि जलाशयों की पवित्रता बनी रहे। अगर बहन विवाहित है, तो भाई अपनी बहन के घर जाकर भाई दूज मनाए। भाई को आरती और तिलक करने से पूर्व बहन को चाहिए कि बहुत ही प्रसन्न मन से आरती की थाली सजाएं और इस थाली में कुमकुम, सिंदूर, चंदन, फूल, फल, मिठाई, अक्षत व सुपारी रखें। फिर एक चौकी पर अपने भाई को बड़े ही प्यार से बिठाएं। इसके बाद भाई की आरती उतारें और उनके माथे पर घी का टीका लगाएं। तब भाई को मुंह मीठा कराएं। इस आरती और तिलक के बाद  भाई को अपनी बहन को कुछ न कुछ उपहार जरूर देना चाहिए। भाई द्वारा मिले इस उपहार से बहने बहुत खुश होती हैं। इससे उनके बीच  प्रेम और बढ़ जाता है।  अगर बहाने ससुराल में हो तो भाई के इस उपहार से ससुराल में उसका कद और बढ़ जाता है। भाई को इस दिन अपनी बहन के हाथों से बने भोजन का सेवन जरूर करना चाहिए।
   भाई बहन का यह पवित्र त्यौहार भाई दूज देश के विभिन्न प्रांतों में नए-नए तरीके से मनाए जाने की परंपरा है। यह परंपरा बरसों से चली आ रही है। इस परंपरा का निर्वहन आज भी उसी रूप में होता चला रहा है। यह भारतीय रीति रिवाज का अनोखा संगम है। बिहार में भाई दूज पर एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है। यहां बहनें इस त्योहार पर अपने भाइयों को डांटती हैं, उनसे लड़ाई करती हैं और फिर मांफी मांगती हैं। इसके बाद तिलक लगाकर उनकी पूजा करती हैं। पश्चिम बंगाल में इसे फोटा पर्व के नाम से जाना जाता है। इस दिन बहनें व्रत रखती हैं। भाइयों का तिलक करती हैं और भाई बहन को उपहार देते हैं। महाराष्ट्र में इसे भाऊ बीज के नाम से जाना जाता है। यहां बहनें भाइयों को तिलक लगाकर उनके उज्जवल भविष्य की कामना करती हैं। नेपाल में इस पर्व को भाई तिहार के नाम से जाना जाता है। इस दिन बहनें सात रंग से बना टीका भाइयों को लगाती हैं और ईश्वर से उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। विभिन्न प्रान्तों में रीति रिवाज में भिन्नता जरूर दिखाई पड़ती है, लेकिन मूल तत्व है, भाई-बहन के बीच यह प्रेम सदा बना रहे।