गोवर्धन पूजा भारतीय लोक जीवन में गाय की महता को दर्शाता है

(22 अक्टूबर, कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा,गोवर्धन पूजा  पर विशेष)

गोवर्धन पूजा भारतीय लोक जीवन में गाय की महता को दर्शाता है

कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा अर्थात दीपावली के दूसरे दिन मनाया जाने वाला यह पर्व गोवर्धन पूजा के नाम से जाना जाता है। आदिकाल से गाय भारतीय लोक जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग रहा है । चूंकि भारत एक कृषि प्रधान देश के रूप में संपूर्ण विश्व में विख्यात है। कृषि कार्य में गौ वंश की उपयोगिता जग जाहिर है। गौ वंश लोक जीवन के लिए स्वास्थ्य का आधार भी माना जाता है। इतने वैज्ञानिक आविष्कारों के बावजूद भारत वर्ष में गौ वंश की उपयोगिता उसी तरह बनी हुई है। इसका सबसे प्रमुख कारण यह है कि हमारे ऋषि मुनियों ने हिंदू धर्मग्रंंथों में ऐसी ऐसी लोक कथाओं का सृजन किया था जो हमारी संस्कृति का हिस्सा बन चुका है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम और भगवान कृष्ण दो ऐसे देव हुए जिन्होंने अपने मुखारविंद से भारतीय समाज को एक नया सूत्र दिया।  ये सूत्र भी हमारी संस्कृति के प्रमुख आधार बन चुके हैं । भगवान राम के पूर्वज गौ वंश के रक्षक रहे थे। यह परंपरा भगवान राम के  कालखंड में भी देखने को मिलता है।  भगवान कृष्ण ने भी गौ वंश की महता और रक्षा का विधान भी हम सबों को दिया।  द्वापर में भगवान कृष्ण के प्रमुख बाल सखाओं में  गोप जाति के ही बालक शामिल थे।
  हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने अपने गोप बाल  सखाओं को देवराज इंद्र के वर्षा से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत अपनी  एक उंगली में उठाकर रक्षा की थी।  वहीं दूसरी ओर उन्होंने देवराज इंद्र के अहंकार को भी ध्वस्त किया था।  इसलिए दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस दिन देश भर के कृष्ण मंदिरों में भगवान के लिए विशेष रूप से प्रसाद का भोग लगाया जाता है।  इस प्रसाद को कृष्ण भक्तों में बांटा जाता है।  इस त्यौहार का भारतीय लोक जीवन में बहुत महत्व है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा सम्बन्ध दिखाई देता है। इस पर्व की अपनी मान्यता और लोककथा है। गोवर्धन पूजा में गोधन अर्थात गायों की पूजा की जाती है।   हमारे शास्त्रों में वर्णित है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती है, जैसे नदियों में गंगा पवित्र है। गाय को माता देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख, समृद्धि प्रदान करती हैं, उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। ऐसे गौ सम्पूर्ण मानव जाति के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गोवर्धन पूजा गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। 
  आगे कथा को विस्तार देते हुए पाठकों को यह बताना चाहता हूं कि जब भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचाने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएं उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे थे । सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।  गोवर्धन पूजा के सम्बन्ध में एक लोकगाथा प्रचलित है कि देवराज इन्द्र को अभिमान हो गया था। इन्द्र का अभिमान चूर करने हेतु भगवान श्री कृष्ण जो स्वयं लीलाधारी श्री हरि विष्णु के अवतार हैं । उन्होंने  एक लीला रची थी। प्रभु की इस लीला में यूं हुआ कि एक दिन उन्होंने देखा के सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे थे, और किसी पूजा की तैयारी में जुटे। श्री कृष्ण ने बड़े भोलेपन से मईया यशोदा से प्रश्न किया  मईया ये आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे है  ? कृष्ण की बातें सुनकर मैया बोली, लल्ला ! हम देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं। मैया के ऐसा कहने पर श्री कृष्ण बोले मैया हम इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं ? मैईया ने कहा वह वर्षा करते हैं, जिससे अन्न की उपज होती है । उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है। भगवान श्री कृष्ण बोले हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाये वहीं चरती हैं, इस दृष्टि से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है ।  इन्द्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं । अत: ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए।
  आगे कथा में वर्णन है कि लीलाधारी की लीला और माया से सभी ने इन्द्र के स्थान पर गोवर्घन पर्वत की पूजा की। देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा आरम्भ कर दी। प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगे कि, सब इनका कहा मानने से हुआ । तब मुरलीधर ने मुरली कमर में डाली और अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्घन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछड़े समेत शरण लेने के लिए बुलाया। इन्द्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हुए फलत: वर्षा और तेज हो गयी। इन्द्र का मान मर्दन के लिए तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियंत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें। किन्तु इन्द्र निरन्तर सात दिनों तक मूसलाधार वर्षा करते रहे थे, तब उन्हे लगा कि उनका सामना करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं हो सकता अत: वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और सब वृतांत कह सुनाया। तब ब्रह्मा जी ने इन्द्र से कहा कि आप जिस कृष्ण की बात कर रहे हैं, वह भगवान विष्णु के साक्षात अंश हैं। वे पूर्ण पुरूषोत्तम नारायण हैं। ब्रह्मा जी के मुख से यह सुनकर इन्द्र अत्यन्त लज्जित हुए। देवराज इंद्र ने श्री कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहंकार वश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं और कृपालु भी इसलिए मेरी भूल क्षमा करें। इसके पश्चात देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया।
  उक्त पौराणिक घटना के बाद से ही गोवर्धन पूजा की जाने लगी। बृजवासी इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं। गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है।  उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है। गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है ।इस दिन प्रात: काल शरीर पर तेल मलकर स्नान करने का प्राचीन परम्परा है।  लोग सवेरे समय पर उठकर पूजन सामग्री के साथ में आप पूजा स्थल पर बैठ जाते हैं। वे अपने अपने कुल देव का, कुल देवी का ध्यान कर  पूजा करते हैं। लोग पूरी श्रद्धा से गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर उसकी पूजा करते हैं। गोवर्धन की आकृति बनाकर उनके मध्य में भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति रखी जाती है।  नाभि के स्थान पर एक कटोरी जितना गड्ढा बना लिया जाता है।  और वहां एक कटोरी व मिट्टी का दीपक रखा जाता है।  फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, मधु और बतासे इत्यादि डालकर पूजा की जाती है और फिर इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।  गाय की पूजा के बाद में एक मंत्र का उच्चारण किया जाता है, जिससे लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं । जातक के घर में कभी धन की कमी नहीं रहती है।