ईश्वर को शुक्रिया अर्पित करने का महापर्व 'मकर संक्रांति'
(14 जनवरी, माघ कृष्ण पक्ष प्रथम, 'मकर संक्रांति' पर्व पर विशेष)
मकर संक्रांति का पर्व भारतवर्ष सहित बांग्लादेश, नेपाल, थाईलैंड, लाओस, म्यांमार, कंबोडिया, श्रीलंका आदि देशों में भी विभिन्न नामों से बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है । भारत मूल के लोग विदेशों में जहां जहां बसे हैं, वे सभी भी बड़े ही धूमधाम के साथ यह पर्व मिलजुल कर मनाते हैं। यह पर्व जीवन में खुशियां और समृद्धि आए, इसलिए यह ईश्वर के प्रति शुक्रिया अदा करने का यह पर्व है। यह पर्व हम सबों को अंधकार से प्रकाश की ओर जाने की सीख प्रदान करता है। अर्थात हमारे अंदर जो भी कल्मष व पंच विकार हैं, उससे मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। यह पर्व सीधे तौर पर मनुष्य की खुशी और समृद्धि से जुड़ा हुआ है। समृद्धि का मतलब यह है कि हम सब रोग मुक्त बने, दीर्घायु बने और घर परिवार में खुशियां सदैव बनी रहे। जीवन को रोगमुक्त और दीर्घायु बनाए रखने के लिए प्रकृति ने उपहार स्वरूप अन्न और फल जैसी वस्तु प्रदान की है । इस ऋतु के और वसंत के प्रारंभ में विभिन्न प्रकार के अन्य और फल तैयार होकर मनुष्य को रोगमुक्त और दीर्घायु बनाने के लिए उपस्थित हो जाते हैं। इस धरा पर जब तक मनुष्य का जीवित रहता है, तब तक अन्न और फल से उसका गहरा नाता रहता है। जीवन जीने के लिए अन्न और फल की आवश्यकता पड़ती है। इस बार के मकर संक्रांति पर्व पर महाकुंभ पड़ रहा है। यह समस्त देशवासियों के लिए अधिक से अधिक पुण्य कमाने का अवसर प्राप्त हो रहा है। अथर्ववेद में वर्णन है कि महाकुंभ स्नान से तीर्थयात्रियों कों एक हजार अश्वमेध यज्ञ तथा एक लाख बार पृथ्वी प्रदक्षिणा का पुण्य प्राप्त होता है। सभी लोग महाकुंभ तो नहीं जा सकते हैं, लेकिन उक्त तिथि को पवित्र जल से स्नान कर पुण्य का भागी बन सकते हैं।
पंच भूतों के मिश्रण से प्रकृति ने सृष्टि को रचा है
प्रकृति,धरती माता की कोख से अन्न और फल प्रदान करती है। अन्न और फल को निर्मित करने में धरती,हवा, पानी और ताप की अहम भूमिका होती है। इन चारों के सहयोग से ही मनुष्य के जीवन को गति देने वाली ये अमृततुल्य वस्तुएं प्राप्त होती हैं। आकाश, वायु, जल, अग्नि और धरती, ये पंचभूत माने गए हैं । संसार के सभी जीव जंतु इन्हीं पंच भूतों के पिंड होते हैं। इन्हीं पंच भूतों के मिश्रण से प्रकृति ने सृष्टि के सभी जीव जंतुओं सहित इस सृष्टि को गढ़ा है। जीव जंतुओं के उत्पन्न होने पर ये पंचभूत उपलब्ध होते हैं। जब इस शरीर से प्राण निकल जाते हैं, तब यह शरीर पंच भूतों में मिश्रित हो जाता है। इन पंच भूतों के निर्माता अदृश्य होते हैं। जिसे हम सब ईश्वर के विभिन्न नामों से पुकारते हैं। उन पर अपनी श्रद्धा रखते हैं।
एक दूसरे के सुख दुख में साथ साथ
जन्म ईश्वर देते हैं । मृत्यु ईश्वर देते हैं। ईश्वर जन्म के बाद जब तक इस धरा पर इस शरीर को रहने देते हैं, तब तक उसके लिए विभिन्न तरह के जीवन निर्वाह करने के लिए सामग्रियां उत्पन्न करते रहते हैं। आखिर हम सब ईश्वर के प्रति शुक्रिया कब अदा करें ? हमारे धर्म शास्त्र कहते हैं कि ईश्वर की भक्ति ही उसके प्रति शुक्रिया है। हमारे धर्म शास्त्र कहते हैं कि आदर्श जीवन जीना, नैतिकता के साथ जीवन जीना, सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलना, वाणी कदापि कठोर नहीं होनी चाहिए, बल्कि वाणी ऐसी होनी चाहिए, जिससे सुनने वाला प्रसन्न हो, विपरीत परिस्थितियों में भी धर्म मार्ग का अनुसरण करना आदि। पंच भूतों के स्वामी ईश्वर है। पंच भूतों के अंदर विद्यमान प्राण शक्ति के संचालक ईश्वर है। जब जीवन उन्होंने दिया है, तो उसके बताएं मार्ग पर चलना ही श्रेयस्कर है। मकर संक्रांति का पर्व इन्हीं उद्देश्यों को लेकर हम सबों के बीच हर वर्ष उपस्थित होता है । ईश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा और भक्ति दिखाने का यह पर्व है। यह पर्व हम सबों को एक सूत्र में बंधकर रहने का भी संदेश देता है । एक दूसरे के सुख दुख में साथ साथ मिलकर दुख सुख बांटने का भी सीख प्रदान करता है।
शुक्रिया अदा करने का पर्व
यह पर्व वसंत के आगमन के साथ ही प्रकट होता है । तब तक धरती माता की कोख से विभिन्न प्रकार के अन्न और फल हमारे बीच उपस्थित हो जाते हैं, हम सबों को जीवनी शक्ति देने के लिए। ये अन्न और फल की जन्म दात्री धरती माता के प्रति भी शुक्रिया अदा करने का पर्व है। कृषक गण कड़ी मेहनत कर बीज होते हैं। कुछ महीनों के बाद ये फसलें तैयार होती हैं। इन फसलो को उत्पन्न करने में कृषक की मेहनत और खून पसीना लगा होता है। मकर संक्रांति का पर्व कृषकों के प्रति भी शुक्रिया अदा करने का पर्व है। इन फसलों को तैयार होने में ऋतु का भी अहम योगदान होता है। इसलिए ऋतु के प्रति भी शुक्रिया अदा करने की सीख मकर संक्रांति प्रदान करता है।
सूर्य का दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर जाना शुभ कार्य का प्रारंभ
हमारे हिंदू धर्म शास्त्रों की मान्यताओं के आधार पर यह बात स्पष्ट रूप से सामने आती है कि मकर संक्रांति का पर्व, जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि की ओर प्रवेश करता है, तब इस प्रवेश के समय को को संक्रांत अथवा मकर संक्रांति कहा जाता है । अर्थात सूर्य का दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर जाना,मकर संक्रांत के रूप में जाना जाता है। इस पर्व को उत्तरायण पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। सूर्य का दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर जाते ही सभी शुभ कार्य होना प्रारंभ हो जाते हैं। वसंत ऋतु का भी आगमन हो जाता है। ऋतु में सबसे श्रेष्ठ ऋतु रूप में बसंत ऋतु को माना जाता है। बसंत के आगमन के साथ ही खेतों में जीवनदायिनी अन्न और फल लहलहाते नजर आने लगते हैं। चारों ओर खुशियां ही खुशियां दिखाई देने लगती है।
मनुष्य के अंदर सूर्य के समान ऊर्जा
हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार सूर्य मकर संक्रांति के ही दिन अपने नाराज पुत्र शनि को मनाने के लिए जाते हैं। इस दिन भगवान सूर्य की आराधना करने से जातक शनि के दोष से मुक्त होते हैं। यह दिन बहुत ही पवित्र दिन के रूप में माना जाता है । 'सूर्य रहस्यम' के अनुसार आज के दिन भगवान सूर्य की आराधना एवं अर्ध्य देने से मनुष्य के सभी दैहिक कष्ट दूर होंगे । मनुष्य के अंदर सूर्य के समान ऊर्जा उत्पन्न होगी जो उसे जीवन पर्यंत गतिशील बनाए रखेगा ।आज के दिन ही भागीरथी, भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर माता गंगा को लेकर धरती पर आए थे। आज गंगा के अवतरण का भी दिन है। इसलिए आज के दिन जो भी मनुष्य गंगा में जाकर सच्चे मन से ईश्वर की आराधना करेंगे, उन्हें इस धरा पर सभी प्रकार के सुख मिलेगे, जीवन के सभी कष्ट मिटेंगे और मृत्यु उपरांत ईश्वर के श्री चरणों में स्थान मिलेंगे
इस दिन भगवान विष्णु को आत्मज्ञान का दान मिल था
मकर संक्रांति के दिन जप,तप दान,स्नान ,श्राद्ध तर्पण आदि धार्मिक कार्य करने पर मनुष्य को सौ गुणा प्राप्त होते हैं। मकर संक्रांति पर्व के साथ अनेक पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुई है । इन कथाओं में एक से एक जानकारियां उपलब्ध हैं। एक कथा के अनुसार भगवान आशुतोष ने इस दिन भगवान विष्णु जी को आत्मज्ञान का दान दिया था । अर्थात यह दिन अपने गुरु से दीक्षा लेने का बड़ा ही महत्वपूर्ण दिन है । साथ ही यह पर्व इस दिन अपने गुरु के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का भी सीख प्रदान करता है। मकर संक्रांति के इस पवित्र बेला पर भगवान कृष्ण ने कहा था कि जो मनुष्य इस दिन अपने देह को त्याग देता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
यह दिन मोक्ष दाता का दिन
इस तरह की कई कथाएं मकर संक्रांति से जुड़ी हुई है। मकर संक्रांति पर्व सबों को जोड़ने वाला पर्व है। यह पर्व यह सीख प्रदान करता है कि ईश्वर ने जिसे धन धान्य न से परिपूर्ण किया है । उसे इस दिन अपने से निर्धन अथवा जरूरतमंद लोगों को जरूर मदद करनी चाहिए। यह मदद अथवा दान उसे कई गुणा फल के रूप में प्राप्त होगा । इस दिन गरीब लोगों के बीच कंबल, नूतन वस्त्र, खिचड़ी, अन्न, गुड़,तिल आदि का दान बड़ा ही शुभ माना गया है । मकर संक्रांति कथाओं में वर्णन है कि महाभारत युद्ध के महान योद्धा और कौरवों के सेना के सेनापति गंगापुत्र भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। अर्जुन के बाण लगने के बाद उन्होंने इस दिन की महत्ता को जानते हुए अपनी मृत्यु के लिए इस दिन को निर्धारित किया था। भीष्म पितामह जानते थे कि सूर्य दक्षिणायन होने पर व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त नहीं होता है । जिस कारण इस मृत्यु लोक में पुनः जन्म लेना पड़ता है। महाभारत युद्ध के बाद जब सूर्य उत्तरायण की ओर प्रवेश किया, तभी भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागे थे। अर्थात यह दिन मोक्ष दाता के दिन के रूप में भी याद किया जाता है।