भारत के गौरवशाली इतिहास को पटेल फिर से स्थापित करना चाहते थे
(31 अक्टूबर, महान स्वाधीनता सेनानी सरदार वल्लभभाई पटेल की 150 वीं जयंती पर विशेष)
महान स्वाधीनता सेनानी, देश के पहले उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल अगर देश की आजादी के बाद प्रधानमंत्री बने होते तब देश की तस्वीर कुछ और होती। सरदार पटेल के आलोचक भी इस बात को मानते हैं कि सरदार पटेल उक्त कालखंड के प्रधानमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार रहे थे। सरदार वल्लभभाई पटेल एक कुशल राजनीतिज्ञ के साथ एक दूर द्रष्टा भी थे । सरदार पटेल राष्ट्रवाद के पक्के पक्षधर थे । भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में उनका प्रवेश महात्मा गांधी के आह्वान पर हुआ था। राष्ट्रीय कांग्रेस के कई अधिवेशनों में सरदार पटेल और महात्मा गांधी के साथ साथ रहे, लेकिन मंचों पर द्वय नेताओं के भाषणों में कुछ ना कुछ वैचारिक भिन्नता जरूर दिखाई दी । जिसका उस कालखंड के अखबारों में बहुत ही विस्तार से चर्चा की हुई। सरदार पटेल एक ईमानदार, निर्भीक,कर्तव्य निष्ठ नेता के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हुए थे। उन्होंने राष्ट्रवादी नेताओं से जो कुछ सीखा, उसे ही अपने कार्यकाल में लागू करने का प्रयास किया था। उनकी दूरदृष्टि की चर्चा आज भी होती है। सरदार वल्लभभाई पटेल अपने निर्णय के चलते एक ऐतिहासिक पुरुष के रूप में भी जाने जाते हैं।
वल्लभभाई झावेरभाई पटेल, सरदार पटेल के नाम से जाने जाते थे। आज भी लोग सरदार वल्लभ भाई पटेल को सरदार पटेल के रूप में ही संबोधित करते हैं। । वे स्वाधीनता आंदोलन में कूदने से पूर्व एक चर्चित अधिवक्ता थे। सरदार पटेल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के रूप में जाने जाते थे। मंच पर सरदार पटेल की उपस्थिति से कार्यकर्ताओं में जोश भर जाया करता था। ऐसा उनका व्यक्तित्व का प्रभाव था।
उन्होंने भारतीय गणराज्य के संस्थापना में महती भूमिका अदा की थी। उन्होंने स्वतंत्रता के लिए देश के संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाई थी। उन्होंने देश की आजादी के बाद एक एकीकृत, स्वतंत्र राष्ट्र में अपने एकीकरण का मार्गदर्शन किया। देश की आजादी के पूर्व कांग्रेस पार्टी के तमाम बड़े नेता चाहते थे कि सरदार वल्लभभाई पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री रूप में शपथ लें। लेकिन गांधी जी का मत और मन था कि पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लें । गांधी जी ने अपनी इस इच्छा को कांग्रेस के बड़े नेताओं सहित सरदार वल्लभभाई पटेल के समक्ष भी रख दिया था। वल्लभभाई पटेल एक दूरदृष्टा राजनीतिज्ञ के तौर पर यह जानते थे कि पंडित नेहरू के प्रधानमंत्री बनने से देश किस मार्ग पर जाएगा। वे देश को एक नई ऊंचाई और पहचान देना चाहते थे। वे भारत के गौरवशाली इतिहास को फिर से स्थापित करना चाहते थे। उनके मन मस्तिष्क में एक नव आजाद भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कैसे बेहतर ढंग से स्थापित किया जाए ? एक स्पष्ट प्लान उनके मन मस्तिष्क में दौड़ रहा था। चूंकि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी स्वाधीनता संघर्ष के एक बड़े नेता के रूप में स्थापित थे। उनका संपूर्ण देश में बहुत नाम था। सरदार वल्लभभाई पटेल मन मार कर गांधी जी की बातों को मान लिया और जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त हो गया । यद्यपि अधिकांश प्रान्तीय कांग्रेस समितियाँ पटेल के पक्ष में थीं थी।
भारत की आजादी के लिए हिंदू और मुसलमान सहित देश के सभी धर्मिवलंबियों ने मिलकर संघर्ष किया था । लेकिन स्वाधीनता संघर्ष के अंतिम चरण में मुस्लिम लीग की स्थापना के राजनीतिक उद्देश्य को सरदार वल्लभभाई पटेल भली भांति जानते थे। मुस्लिम लीग सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र चाहता था। सरदार वल्लभभाई पटेल मुस्लिम लीग की इस दुर्भावना को भली भांति जानते थे। प्रारंभ में उनका मत था कि भारत एक राष्ट्र के रूप में आजाद हो ना की दो राष्ट्र के रूप में। लेकिन दूसरी ओर मुस्लिम लीग के नेताओं के दुर्भावना और संप्रदायिक विचारों को देखकर सरदार वल्लभभाई पटेल दो राष्ट्र के सिद्धांत को मान लिया था। इस संबंध में सरदार पटेल ने कहा था कि 'जो अंग सड़ चुका है, उसे काट देना ही बेहतर होगा।'के
देश की आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने। वहीं सरदार पटेल को उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बने । देश को नई-नई आजादी मिली थी। उनके सामने अनगिनत चुनौतियां थी। ऊपर से पाकिस्तान के नेताओं की कूट राजनीति का भी सामना देश को करना पड़ रहा था। भारत का विभाजन बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी। यह आंदोलन जितना अहिंसक था, उसकी आजादी उतनी ही रक्तपात से जुड़ चुकी थी। करोड़ों लोग इधर से उधर हो गए । दस लाख से अधिक जानें इस बंटवारे में चली गई थी। देश की आजादी के कुछ ही दिन बीते थे कि पाकिस्तान कश्मीर को हथियाना के लिए आक्रमण कर दिया। कश्मीर के महाराजा ने मदद के लिए भारत के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से आग्रह किया । पंडित जवाहरलाल नेहरू की इस विषय पर ढुलमुल नीति थी। वे इस विषय पर निर्णय नहीं ले पा रहे थे । वे इतना बेपरवाह थे कि कश्मीर भारत के साथ रहे अथवा पाकिस्तान के साथ रहे, इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन देश के पहले गृह मंत्री लोह पुरुष देश के मन को समझते हुए उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में पूरजोर तरीके से भारतीय सेना को कश्मीर की ओर कूच करने का सिफारिश किया। मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों ने सरदार पटेल की सिफारिश पर अपना नैतिक समर्थन दिया। फलस्वरुप भारतीय सेना कश्मीर पहुंची और पाकिस्तानी जेहादियों का सफाया कर ही दम ली थी।
पाकिस्तान के साथ हुए इस युद्ध में भारत को बड़ी जीत हासिल हुई थी। लेकिन इसी दौरान भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से एक बड़ी राजनीतिक भूल हुई थी । वे इस मामले को लेकर यूएनओ चले गए। यूएनओ ने दोनों देशों से यथा स्थिति बनाए रखने का एक आदेश पारित कर दिया। भारत को जीत में मिली आजाद कश्मीर भी हाथ चली गई थी । इस राजनीतिक भूल के कारण आज आजाद कश्मीर भारत के लिए एक सिर दर्द बना हुआ है्। आज आजाद कश्मीर के कारण ही हमारा कश्मीर अशांऐ रह रहा है । अब तक हजारों जाने कश्मीर को बचाने कुर्बान हो गई हैं। अगर नेहरू की जगह सरदार वल्लभभाई पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री बनते तब वे कदापि यूएनओ नहीं जाते।
ध्यातव्य है कि नेहरू और सरदार पटेल एक ही कस्ती में सवार थे। लेकिन दोनों के बीच कभी भी मैत्री भाव नहीं बन पाया । इसका सबसे बड़ा कारण वैचारिक भिन्नता था। खासकर पाकिस्तान - भारत के संबंधों पर नेहरू के कुछ विचार रहते थे । वहीं सरदार पटेल के विचार कुछ और होते थे। इस बात को उस कालखंड के राजनीतिक विश्लेषकों ने प्रस्तुत किया था । कश्मीर जैसे संवेदनशील के मुद्दे पर नेहरू कभी भी गंभीर नहीं रहे। इसी का दंश आज भारत आतंकवाद के रूप में भुगतने को दिवस है। जबकि सरदार पटेल जो जैसा व्यवहार करें,उसके साथ उसी तरह व्यवहार करना चाहिए, इस नीति के प्रबल समर्थक थे। वे आजाद कश्मीर को पूरी तरह भारत में विलय के पक्षधर थे। इसके चलते कई अवसरों पर दोनो ने ही अपने पद का त्याग करने की धमकी दे दी थी।
गृह मंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों को भारत में मिलाना था। इसको उन्होने बिना कोई खून बहाये सम्पादित कर दिखाया। केवल हैदराबाद रियासत के लिये उनको ऑपरेशन पोलो के तहत सेना भेजनी पडी। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिये उन्हे भारत का लौह पुरुष के रूप में जाना जाता है।
आज की बदली परिस्थिति में राष्ट्र की एकता और अखंडता का जो सिद्धांत लौह पुरुष वल्लभभाई पटेल ने दिया था। उसे संपूर्ण देशवासियों को आत्मसात करने की जरूरत है ।भारत अपनी पुरानी विरासत की ओर लौट रहा है। भारत के गौरवशाली इतिहास को वापस लाने में सरदार पटेल ने जो भूमिका अदा की थी, आज पुष्पित और पल्लवित होता दिख रहा है। भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश के रूप में नामित हो चुका है। भारत का बजट अमेरिका, रूस के बाद तीसरे नंबर पर आ चुका है । भारत निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर है। नेहरू के विरोध के बावजूद लौह पुरुष अपने निर्णय पर सदा अडिग रहे थे । इसीलिए आज सारा देश उन्हें लौह पुरुष के रूप में याद करता है।
