बहुचर्चित नानावती केस ! जिसकी वजह से भारतीय न्याय व्यवस्था से ज्यूरी सिस्टम को हटाया गया

नानावती वापिस मुंबई अपने घर लौटा तो उनकी पत्नी अपने प्रेमी के साथ फिल्म देखने गई होती है। नानावती आग बबूला हो गया और अपने रिवाल्वर से आहुजा पर फायर कर दिया ।

बहुचर्चित नानावती केस ! जिसकी वजह से भारतीय न्याय व्यवस्था से ज्यूरी सिस्टम को हटाया गया

नानावती बनाम महाराष्ट्र केस सन् 1959 का बहुचर्चित हत्या का मुकदमा है, जिसके कारण सरकार को न्याय व्यवस्था में जूरी सिस्टम को ही बंद करना पड़ा । नानावती एक नौसेना अधिकारी था । ड्यूटी के सिलसिले में उसे अपने बम्बई स्थित आवास से दूर अक्सर समुद्र में जहाज पर रहना होता था । घर पर उसकी पत्नी सिल्विया और तीन बच्चे रहते थे । नानावती का एक मित्र था प्रेम आहूजा , जो आटोमोबाइल व्यापारी था । नानावती की अनुपस्थिति में आहूजा का नानावती के घर आना जाना लगा रहता था। धीरे धीरे प्रेम आहूजा और नानावती की पत्नी सिल्विया के बीच संबंध बढ़ता गया और आगे चलकर यह संबंध अवैध संबंध में बदल गया। जब दौरे से नानावती वापिस मुंबई अपने घर लौटा तो उनकी पत्नी अपने प्रेमी के साथ फिल्म देखने गई होती है। नानावती इसे बरदाश्त नहीं कर सका । उसने आफिस जाकर अपना सर्विस रिवाल्वर निकालकर लोड किया तथा आहूजा के घर चला गया। नानावती ने आहूजा को अपनी पत्नी सिलविया से शादी कर अपनाने को कहा । इस पर आहूजा ने बडी़ बेरुखी दिखाते हुए कहा कि उसके इस तरह के संबंध बहुतों से हैं , तो यह जरुरी नहीं कि वह उन सबसे शादी करे । यह सुनकर नानावती आग बबूला हो गया और अपने रिवाल्वर से आहुजा पर फायर कर दिया । गोली लगने से आहूजा की मौत हो गई।

नानावती ने गोली मारकर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया । इस पर अदालत में केस चला। यह मुकदमा ज्यूरी कोर्ट में चला । मुख्य case में नानावती IPC section 300 exception 1 का लाभ उठाना चाहते थे। उनका कहना था की यह निर्णय उन्होंने grave and sudden provocation में लिया था। इसका मतलब है की उनके पास समय नहीं था की वह निर्णय ले सके और यह सब अचानक हो गया। ज्यूरी का कहना था कि – सही केवल एक ही होगा, भले ही दोषी दोनों हों। यदि नानावटी कुछ न कर पाते तो न्यायाधीश महोदय क्या व्यभिचारी पुरूष को मृत्युदँड देते? सम्भवत: बिल्कुल नहीं। ज्यूरी पीडि़त के साथ है तथा जज अपराधी के साथ। ज्यूरी ने हत्या के आरोप से नानावती को बरी कर दिया था ।लोगो ने इसपर विरोध जताया ।

इस मामले को मीडिया ने बहुत उछाला था । उस समय प्रिंट मीडिया बहुत सशक्त था । बम्बई का तत्कालीन साप्ताहिक ” ब्लिट्ज” लोगों के सर चढ़कर बोलता था । ब्लिट्ज ने इस कांड में लोगों को भावनात्मक रूप से जोड़ कर नानावती को एक हीरो और आहूजा को खलनायक जैसा बना दिया था । यह उस समय की मीडिया ट्रायल थी, जिसमें न्याय के स्थापित मान्य सिद्धांत नहीं थे, व जनमत मीडिया प्रचार से प्रभावित हो रहा था ।

नानावती केस मीडिया की हेड्लायन थी

अत: सरकार ने ज्यूरी के द्वारा दिए गए निर्णय पर जगहँसायी से बचने के लिए diametrically opposite निर्णय समझकर ज्यूरी सिस्टम को ही खत्म कर दिया था।

इसके बाद बम्बई हाईकोर्ट में इसकी अपील हुई थी । जहां Defendant ( दूसरा पक्ष ) का यह कहना था की यह एक पूर्व नियोजित action था। Accused ( जिसने मर्डर किया था) के पास पूरा समय था की वह निर्णय ले सके। Accused के पास cooling period ( पर्याप्त समय) था की वह निर्णय ले सके। ऑफिसर का अपने ship par जाना ,वहाँ से अपनी रिवाल्वर लाना और मारना , एक बड़ा समय होता है निर्णय लेने के लिए। बम्बई हाईकोर्ट ने IPC section 300 exception 1 के अपील को खारिज कर दिया। न्याय की कसौटी के तहत गुण दोषों के आधार पर जूरी कोर्ट का फैसला पलटते हुए नानावती को दोषी पाया गया और बम्बई हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई । नानावती ने महाराष्ट्र की राज्यपाल को क्षमा याचना के लिए आवेदन दिया और सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील की । सुप्रीम कोर्ट ने अपील यह कहकर निरस्त कर दी कि, अपील और क्षमा याचिका दोनों एक साथ नहीं चल सकते । उसके बाद तत्कालीन राज्यपाल श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित ने याचिका स्वीकार कर क्षमादान कर दिया था ।