बिहार में हर तीसरा ग्रैजुएट है बेरोज़गार, झारखंड भी पीछे नहीं, हरियाणा शीर्ष पर
भारत की बेरोज़गारी चिंताजनक है क्योंकि जैसे-जैसे देश का विकास शुरू हो रहा है, सबसे निचले तबके में रहने वाले लोगों की हालत दुनिया के अधिकतर देशों के मुक़ाबले और भी ख़राब हो रही है।
बिहार में रोजगार के अवसरों में कमी आई है। फिर भी खनिज संपदा से पूर्ण झारखंड की तुलना में यहां रोजगार के अवसर अधिक हैं। सेंटर फार मानिटररिंग आफ इंडियन इकोनामी की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि बिहार में बेरोजगारी की दर 13.9 प्रतिशत रही। इसी अवधि में झारखंड में यह दर 18. 1 प्रतिशत आंकी गई है। लेकिन, देश के अन्य राज्यों में इसी अवधि में हुई बेरोजगारी दर में वृद्धि की तुलना करें तो बिहार की स्थिति अधिक निराशाजनक नहीं है। बेरोजगारी के मामले में हरियाणा (30.7)और राजस्थान (29.6) पहले और दूसरे नम्बर पर रहे।
CMII (सेंटर फार मानिटरिंग इंडियन इकानामी) की 31 दिसंबर तक के आंकड़ों के आधार पर जारी रिपोर्ट के मुताबिक बेरोजगारी के मामले में हरियाणा शीर्ष पर है। दिसंबर में इस राज्य में बेरोजगारी 34.1 प्रतिशत पर पहुंच गई। यह नवंबर के 29.3 प्रतिशत की तुलना में करीब पांच प्रतिशत अधिक है। 27.1 प्रतिशत बेरोजगारी दर के साथ राजस्थान दूसरे नवंबर पर है। 17.3 प्रतिशत बेरोजगारी दर के साथ झारखंड तीसरे नंबर पर पहुंच गया है।
भारत में काम करने लायक आयु वर्ग में नौकरियां खोज रहे लोगों की संख्या गिरी है। भारत में 15 और उससे अधिक आयु वर्ग की महिलाओं की संख्या नौकरियों के मामले में दुनिया में सबसे कम है। लेकिन भारत में जब बेरोज़गारी की बात होती है तो आमतौर पर काम खोज रहे नौकरी योग्य शिक्षित युवाओं की गिनती होती है, हालांकि अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में 90 प्रतिशत लोगों को रोजग़ार मिलता है और आधे से अधिक ओद्योगिक उत्पादन यहीं होता है।
श्रमिक अर्थव्यवस्था विशेषज्ञ राधिका कपूर कहती हैं, “पढ़े लिखे और अच्छी आर्थिक पृष्ठभूमि वाले लोग ही अपने आप को बेरोज़गार कह सकते हैं ना कि ग़रीब, अकुशल या अर्धकुशल लोग।” जितना अधिक पढ़ा लिखा एक व्यक्ति होगा उतनी ही उसके बेरोज़गार होने और कम वेतन वाला अनौपचारिक काम करने की इच्छा ना होने की संभावना होगी।
उच्च विकास के बावजूद भारत की बढ़ती बेरोज़गारी की एक वजह ये है कि भारत ने कृषि आधारित अर्थव्यवस्था से सेवा आधारित अर्थव्यवस्था की तरफ़ लंबी छलांग लगाई है। भारत के क़द के किसी भी देश में विकास दर की वजह उत्पादन की जगह सेवाएं नहीं हैं। भारत के विकास में सॉफ्टवेयर और वित्तीय क्षेत्रों की अहम भूमिका है जिनमें उच्च कुशल लोग काम करते हैं। उत्पादन क्षेत्र में या फ़ैक्ट्रियों में नौकरियां नहीं हैं, जहां बड़ी संख्या में अकुशल या अर्धकुशल लोगों को काम दिया जा सकता है।
भारत की बेरोज़गारी चिंताजनक है क्योंकि जैसे-जैसे देश का विकास शुरू हो रहा है, सबसे निचले तबके में रहने वाले लोगों की हालत दुनिया के अधिकतर देशों के मुक़ाबले और भी ख़राब हो रही है। सरकार को महंगाई पर नियंत्रण करना होगा, रोज़गार बढ़ाने होंगे और कामकरों की मदद करनी होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन में ध्रुवीकरण और नफ़रत की राजनीति बढ़ी है जिसने विश्वास पर चोट पहुंचाई है, जो आर्थिक विकास के लिए सबसे ज़रूरी होता है।
2014 में सत्ता में आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रोज़गार देने का वादा किया था। वो कुछ उद्योगों को वित्तीय सहायता दे रहे हैं और भारत में उत्पादन को बढ़ाने की महत्वाकांक्षी परियोजना ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा दे रहे हैं। हालांकि इनमें से किसी भी प्रयास से अभी तक न उत्पादन बढ़ा है और ना ही रोज़गार के मौके। इसकी एक वजह कम हुई मांग भी है। संघर्ष कर रहे निचले तबके के बीस प्रतिशत परिवारों को राहत देने के लिए कैश ट्रांस्फर या रोज़गार गारंटी जैसी योजनाओं का फ़ायदा दिया जाना चाहिए। इससे ये परिवार अपना ख़र्च चला पाएंगे और क़र्ज़ चुका पाएंगे। ये अल्पकालिक उपाय हो सकता है। जहां तक दीर्घकालिक समाधान की बात है सभी श्रमिकों को न्यूनतम वेतन और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए। डॉ. राधिका कपूर कहती हैं, “जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक रोज़गार के मामले में कोई ठोस सुधार नहीं होगा।”
क़ानून की डिग्री लेने वाले एक छात्र ने ड्राइवर की नौकरी के लिए आवेदन दिया
मध्य प्रदेश में कम योग्यता वाले 15 सरकारी पदों पर नौकरी के लिए दस हज़ार से अधिक उम्मीदवार साक्षात्कार देने पहुंच गए। जितेंद्र मौर्य भी उनमें शामिल थे। इनमें से अधिकतर ऐसे थे जो नौकरी की ज़रूरत से ज़्यादा योग्य थे। मौर्य कहते हैं, “हालात ऐसे हैं कि कई बार मेरे पास किताब ख़रीदने के पैसे भी नहीं होते। तो मैंने सोचा कि यहां मुझे कुछ काम मिल जाएगा। मौर्य का दर्द भारत के गंभीर रोज़गार संकट की झलक दिखाता है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक इनमें इंजीनियर, एमबीए डिग्री धारक और जितेंद्र मौर्य जैसे युवा थे जो जज बनने की तैयारी कर रहे हैं। भारत की अर्थव्यवस्था पर नज़र रखने वाले संस्थान सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMII) के मुताबिक दिसंबर में भारत की बेरोज़गारी दर आठ प्रतिशत तक पहुंच गई थी। 2020 और 2021 के अंतिम महीनों तक ये 7 प्रतिशत से अधिक थी।
विश्व बैंक के पूर्व प्रमुख आर्थिक सलाहकार कौसिक बासु बताते हैं, “अब तक भारत में जो आंकड़े देखे गए हैं ये उससे कहीं ज़्यादा है। साल 1991 में जब भारत गंभीर आर्थिक संकट में था (तब भारत के पास आयात की कीमत चुकाने के लिए पर्याप्त डॉलर भी नहीं थे) तब भी हालात ऐसे नहीं थे।”
रोजगार सृजन की तमाम कोशिशों के बावजूद देश में बेरोजगारी बढ़ रही है। गुजरे साल के आखिरी महीने के रोजगार की उपलब्धता का विश्लेषण बताता है कि कई राज्यों में दिसंबर में नवंबर की तुलना में रोजगार के अवसर काफी कम हुए हैं। नवंबर-दिसंबर की तुलना करें तो बिहार में एक प्रतिशत से अधिक बेरोजगारी बढ़ी है। नवंबर में राज्य में बेरोजगारी दर 14. 8 प्रतिशत थी। दिसम्बर में यह 16 प्रतिशत हो गई। देश के छह राज्यों में बेरोजगारी दर इस समय दो अंकों में है। बिहार का चौथा स्थान है।
जम्मू और कश्मीर में बेरोजगारी दर 22.2 प्रतिशत रही। आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, गुजरात, तमिलनाडू, तेलंगना, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और उत्तराखंड जैसे राज्यों में अक्टूबर महीने में बेरोजगारी दर छह प्रतिशत के नीचे रही। ओडीसा की उपलब्धि उल्लेखनीय है। इस राज्य में बेरोजगारी दर सबसे कम 1.1 प्रतिशत आंकी गई। 1.9 प्रतिशत बेरोजगारी दर के साथ मध्य प्रदेश बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों में दूसरे नंबर पर रहा। बिहार के अलावा दिल्ली, गोवा, पंजाब और सिक्किम ऐसे राज्य हैं, जिनमें बेरोजगारी दर 10 से 15 प्रतिशत के बीच रही।
यह बेरोजगारी का राष्ट्रीय परिदृश्य है। नवंबर (7.1) की तुलना में दिसंबर (7.91) में बेरोजगारी के राष्ट्रीय दर में 0.90 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। जहां तक शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की बेरोजगारी का सवाल है, दिसंबर में दोनों क्षेत्रों में वृद्धि दर्ज की गई है। हां शहर की 9.30 प्रतिशत की तुलना में 7.28 प्रतिशत बेरोजगारी दर के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में मामूली राहत है। पूरे साल की तुलना करें तो बिहार में दिसंबर में सर्वाधिक बेरोजगारी दर दर्ज की गई है।