भ्रष्टाचार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय
देश के 14 विपक्षी दलों ने याचिका के माध्यम से केंद्र सरकार पर यह आरोप लगाया कि केंद्र सरकार सीबीआई और ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों के मनमाना इस्तेमाल कर रही है।
विजय केसरी:
पिछले दिनों देश की सबसे बड़ी न्यायालय, सुप्रीम कोर्ट ने 14 विपक्षी दलों की एक याचिका को खारिज कर ऐतिहासिक निर्णय दिया है। सीबीआई और ईडी जैसे केंद्रीय एजेंसियों के मनमाने इस्तेमाल को लेकर 14 विपक्षी दलों की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर यह बता दिया है कि पक्ष और विपक्ष के आपस में जो भी रिश्ते रहे हैं, उससे न्यायालय को कुछ भी लेना देना नहीं है । भारत के संविधान के तहत प्रदत्त अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए न्यायालय ने यह ऐतिहासिक निर्णय लिया है। अब सवाल यह उठता है कि क्या वाकई वर्तमान केन्द्र सरकार सीबीआई और ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों का मनमाना इस्तेमाल कर रही है ? अगर भारत सरकार सीबीआई और ईडी जैसी केंद्रीय संस्थाओं का मनमाना इस्तेमाल कर रही है,तब यह लोकतंत्र के लिए एक गंभीर सवाल खड़ा करता है।
यह मसला भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ है । देश की जनता ने जिन्हें देश की रखवाली का जिम्मा दिया, वही रखवाली करने की बजाय, उस बगीचे को ही उखाड़ने में लगे हुए हैं । यह बेहद चिंताजनक स्थिति है। भ्रष्टाचार का यह आलम है कि आए दिन घोटालों की खबरों से देश पटा हुआ है। आम जनता आज भी उसी हाशिए पर है। जबकि जनप्रतिनिधियों के रूपये विदेशों में जमा हो रहे हैं। एक और देश की जनता बेसन बेरोजगारी और बदहाली का दंश झेलने को विवश है। वहीं दूसरी ओर देश के कुछ जनप्रतिनिधि गण, मंत्री और मुख्यमंत्री गण करोड़ों रुपए अपने यहां होने वाली शादियों में खर्च कर देते हैं। देश की जनता उनसे यह सवाल पूछ रही है कि आखिर में वे इतने पैसे लाए कहां से है ?
चूंकि देश की सरकार ने यह साफ शब्दों में कह दिया है कि भ्रष्टाचार को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा । भ्रष्टाचार कर जिन लोगों ने भी धन जमा किया है, उसे हिसाब देना ही होगा। अन्यथा उन्हें जेल जाना ही होगा । मेरी दृष्टि में केंद्र सरकार का यह कार्य भ्रष्टाचार उन्मूलन की दिशा में एक सार्थक प्रयास है।
देश के 14 विपक्षी दलों ने याचिका के माध्यम से केंद्र सरकार पर यह आरोप लगाया कि केंद्र सरकार सीबीआई और ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों के मनमाना इस्तेमाल कर रही है। अब सवाल यह उठता है कि भारत सरकार की ये केंद्रीय एजेंसियां आखिर विपक्षी दलों के नेताओं को अपने गिरफ्त में क्यों ले रही है ? आज देश के कई राज्यों के मंत्री जेलों में बंद हैं। उनके खिलाफ भारत सरकार की केंद्रीय एजेंसी सीबीआई और ईडी मामला दर्ज कर रही है । जनता के मत से ये नेतागण विधानसभा और लोकसभा तक पहुंचते हैं । उसके बाद मंत्री अथवा मुख्यमंत्री बनते हैं । विधानसभा का सदस्य होना, लोकसभा का सदस्य होना, मंत्री अथवा मुख्यमंत्री बनना, ये सारे पद संवैधानिक हैं। इन पदों पर रहकर किसी भी विधानसभा सदस्य, लोकसभा सदस्य, मंत्री अथवा मुख्यमंत्री को यह अधिकार नहीं मिल जाता है कि सरकारी खजाने का अपने पक्ष में इस्तेमाल करें। अथवा इसका लाभ अपने परिवार वालों को दे। ये मंत्री और मुख्यमंत्री अपने पद में रहकर कई तरह के खनिज माइंस कर्लीज अपने नाम से करवा लेते हैं । और जमकर लूटते हैं। ये माइंस सरकारी होते हैं। इसका लाभ देश की 130 करोड़ जनता को मिलना चाहिए। ना की मंत्री और मुख्यमंत्री को मिलना चाहिए। अगर उनके इस भ्रष्टाचार के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियां ईडी और सीबीआई कानूनी कार्रवाई करती है, तब कहां गलत करती है ?
14 विपक्षी दलों की याचिकाओं को खारिज करते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि राजनेताओं के लिए अलग से गाइडलाइन नहीं बनाई जा सकती । मेरी दृष्टि में सुप्रीम कोर्ट का यह मंतव्य पूरी तरह संवैधानिक है । इस वक्तव्य से विपक्ष के नेताओं को सबक लेना चाहिए । विपक्ष के नेता भी देश के एक आम नागरिक हैं । जिस तरह देश के अन्य नागरिक है । नेताओं के लिए कोई गाइडलाइन अलग से नहीं बनाया जाना चाहिए। बल्कि भारत के संविधान के तहत जो उन्हें मौलिक अधिकार प्राप्त है, खुशी ही श्रेणी में रखा जाना कानून सम्मत है।
विपक्षी दलों के तरफ से सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील पेश किया कि साल 2013 – 14 से लेकर 2020 – 21 तक सीबीआई और ईडी के मामलों में 600% की वृद्धि हुई है। ईडी ने 121 नेताओं की जांच की जिसमें 95% विपक्षी दलों से है वहीं सीबीआई ने 124 नेताओं की जांच की, जिसमें 95% से अधिक विपक्षी दलों से है। वहीं सीबीआई ने 124 नेताओं की जांच की, जिसमें से 95% से अधिक विपक्षी दलों से है।
यह बेहद चिंता की बात है कि सीबीआई और ईडी की जांच में 95% विपक्षी नेता ही आए। अब सवाल यह उठता है कि विपक्षी नेता ही सीबीआई और ईडी की जांच के घेरे में क्यों आए ? जब इन नेताओं के यहां ईडी और सीबीआई ने छापा डाला ,तब इनके घरों से बेहिसाब संपत्ति ,सोना जमीन के कागज और अन्य दस्तावेज मिले। ये दस्तावेज काफी है, कि इन सब नेताओं ने संवैधानिक पदों में रहकर धन उपार्जन किया । इन नेताओं ने देश के साथ बड़ा अपराध किया है । जिन्हें देश की रखवाली का जिम्मा दिया गया, वहीं बगीचे को ही खाते चले जा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाने वाले विपक्षी दलों में कांग्रेस, टीएमसी, डीएमके, आरजेडी, वीआरएस, आम आदमी पार्टी, एनसीपी, शिव सेना, यूपी जेएमएम, जेडीयू, सीपीआई एम, सीपीआई, समाजवादी पार्टी और जम्मू कश्मीर नेशनल कांग्रेस शामिल हैं। विचारणीय यह है कि इन तमाम 14 पार्टियों के नेताओं के खिलाफ सीबीआई और ईडी के अधिकारी जांच में जुटे हुए हैं। इन नेताओं के खिलाफ सीबीआई और ईडी के पास पर्याप्त सबूत भी हैं। इन 14 विपक्षी पार्टियों के कई नेतागण जेल में बंद है। क्या इन्हें संवैधानिक पदों में रहते हुए लूट की छूट दी जानी चाहिए ? देश की जनता का एक ही जवाब है. नहीं । इन्हें कदापि सरकारी खजाने की लूट का अधिकार नहीं है। अगर इन नेताओं ने गलत किया है, तब इन्हें सजा मिलनी ही चाहिए।
इस संबंध में यह लिखना जरूरी हो जाता है कि आरजेडी के सर्वेसर्वा लालू यादव जब केंद्र में रेल मंत्री थे। उन पर यह आरोप है कि उन्होंने कुछ लोगों की बहाली के नाम पर जमीन लिया था। इस लेन देन के संबंध में ईडी और सीबीआई को पर्याप्त सबूत मिले हैं। यह बेहद चिंताजनक स्थिति है। रेलवे में नौकरी देने के नाम पर देश की जनता से जमीनी ली जाए यह कहां न्याय संगत है ? यह एक गंभीर अपराध है। अगर ऐसे तथाकथित अपराधिक नेताओं के खिलाफ ईडी और सीबीआई कार्रवाई करती है, तब उसके कार्य की प्रशंसा होनी चाहिए। प्रशंसा की जगह ईडी और सीबीआई के खिलाफ न्यायालय में मामले दर्ज हो रहे हैं। लोकतंत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों का मजबूत होना अनिवार्य है। अगर लोकतंत्र के इन प्रमुख दो स्तंभों में भ्रष्टाचार का दीमक लग जाए, तब देश के लिए बेहद चिंता की बात है। इस मायने में सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय का स्वागत योग्य है।
अगर इस तरह के अपराधिक कार्य में वर्तमान सरकार के कुछ मंत्री शामिल हैं, तब भी ऐसे नेताओं के खिलाफ सीबीआई और ईडी को कार्रवाई करने की जरूरत है । सीबीआई और ईडी जैसी केंद्रीय संस्थाओं का कार्य है, अपराध पर अंकुश लगाना। आज जो के पक्ष में है, कल वही सत्ता पर काबिज होंगे। यह लोकतंत्र की परंपरा है। इसलिए पक्ष और विपक्ष दोनों का ईमानदार होना अनिवार्य है। सत्ता पक्ष अथवा विपक्ष में किसी को भी सरकारी संपत्ति को लूटने का अधिकार नहीं है। बल्कि उसका संरक्षण करना ही उसकी जवाबदेही है।
सुप्रीम कोर्ट ने 14 विपक्षी दलों की याचिका को खारिज कर एक ऐतिहासिक निर्णय दिया है। देश के नेता आम जनता से अलग नहीं है । देश पर जितना अधिकार आम जनता का है ,उतना ही अधिकार एक नेता का है । नेताओं को देश को लूटने के लिए कदापि विशेष अधिकार नहीं दिया जा सकता है ।सुप्रीम कोर्ट ने 14 विपक्षी दलों की याचिका को खारिज कर भारत सरकार की केंद्रीय एजेंसियां सीबीआई और ईडी के मनोबल को बढ़ाया है ।यह भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ी जीत है।