भगवान महावीर के अमर उपदेश और हमारा समाज

3 अप्रैल, भगवान महावीर की जयंती पर विशेष

भगवान महावीर के अमर उपदेश और हमारा समाज

विजय केसरी:

   आज से लगभग 2600 वर्ष पूर्व जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर जी का प्रादुर्भाव इस धरा पर हुआ था। उन्होंने मात्र तीस वर्ष की उम्र में विरक्त होकर, राज वैभव का त्याग कर सन्यास धारण कर लिया था। उनका संपूर्ण जीवन त्याग और बलिदान से ओतप्रोत है। उन्होंने समस्त मानव जाति को ‘जियो और जीने दो’ का मूल मंत्र दिया था। आज की बदली परिस्थिति में जियो और जीने दो की प्रासंगिकता बहुत बढ़ गई है। आज विश्व बारूद के ढेर पर खड़ा हो गया है। धर्म, जाति, नस्ल, भाषा के लिए संपूर्ण विश्व के देश एक दूसरे के दुश्मन बने बैठे हैं।
भगवान महावीर के उपदेश पर चलकर आज के बदले परिदृश्य फिर से दुरूस्त किया जा सकता है। भगवान महावीर ने जियो और जीने दो का अमर उपदेश था, सैकड़ों वर्ष बीत जाने के बाद भी इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है। अगर विश्व के हर मनुष्य का ‘जियो और जीने दो’ लक्ष्य बन जाए, तो विचार कीजिए, विश्व कितना सुंदर, मोहक और शांतिप्रिय हो जाएगा। वही दूसरी ओर रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध को देखा जा सकता है। अब तक इस युद्ध में हजारों जाने तक चली गई है । अरबों खरबों की संपत्ति बर्बाद हो गई है। परिणाम क्या निकल पाया है ? एक न एक दिन रुस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध रुकेगा ही। तब तक रूस और यूक्रेन काफी कुछ गंवा चुके होंगे। इसलिए दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों को भगवान महावीर के अमर उपदेश ‘जियो और जीने दो’ पर थोड़ा ठहर कर विचार करने की जरूरत है। देखिए जारी युद्ध खुद ब खुद समाप्त हो जाएगा।
भगवान महावीर का संपूर्ण जीवन  त्याग से ओतप्रोत रहा था। उन्होंने सृष्टि में निवास करने वाले, कन – कन में समाहित सभी तरह के जीवों की रक्षा की बात कही थी। उन्होंने अहिंसा का मूल मंत्र संपूर्ण विश्व वासियों को दिया था। हिंसा  से रक्तपात और दिल की दूरियां बढ़ती है। हिंसा से पश्चाताप के अलावा कोई और चीज उपजती नहीं है। हिंसा ही तमाम फ़सादों का जड़ हैं।  इनसे मुक्ति का एक ही मार्ग अहिंसा का है। अहिंसा का मतलब मनसा, कर्मना और वाचा से है। अगर हमारे मन में किसी के प्रति कोई बुरी भावना है तो यह भी एक तरह से हिंसा ही है। अगर हम अपने हाथों से किसी को मारते हैं तो यह भी हिंसा है।  अपनी वाणी से किसी को दुःख पहुंचाते हैं तो यह भी एक तरह से हिंसा ही है।

     भगवान महावीर ने पूरी दुनिया को अमन और शांति से रहने का मार्ग प्रशस्त किया था। उन्होंने जियो और जीने दो का महान संदेश दिया था। उन्होंने अहिंसा को सबसे ऊपर रखा था ।उन्होंने जगत के सभी मनुष्य, पशु – पक्षियों ,जीव जंतुओं की रक्षा की बात कही थी। उसके पीछे एक ही मकसद था कि इस जगत में सभी जीवों को जीने का समान रूप से अधिकार है ।अर्थात जियो और जीने दो। अगर हम किसी को प्राण वापस नहीं कर सकते तो मारने का भी अधिकार हमारा नहीं है।  भगवान महावीर ने साफ शब्दों में कहा कि यह सृष्टि ईश्वर की है। ईश्वर कहीं और नहीं  बल्कि हर जीव में विद्यमान हैं । अपने कर्मों के आधार पर  जीव ,जंतु ,पशु, पक्षी, मनुष्य आदि सभी संसार में विचरण कर रहे हैं। सभी जीवधारी निर्माण व मोक्ष की प्राप्ति के लिए जन्म मरण को प्राप्त कर रहे हैं। जब सृष्टि के सभी जीवों में ईश्वर का वास है, तब यह हिंसा क्यों ?  उन्होंने जगत वासियों को परमार्थ करने की शिक्षा दी। उन्होंने परिग्रह से अपरिग्रह की ओर चलने की बात कही। आज विश्व भर में जो अशांति फैली हुई है। उसके पीछे सबसे बड़ा कारण है, मनुष्य के अंदर विद्यमान अहंकार। यह अहंकार राजा में भी है। यह अहंकार प्रजा में भी है। यह अहंकार मनुष्य को मनुष्यता की ओर नहीं ले जा रहा है बल्कि यह अहंकार स्वयं के साथ जगत का भी नाश कर रहा है। भगवान महावीर ने सबों को अहंकार से बचने की बात कही थीं। आज विश्व भर के कई देश साम्राज्यवाद की नीति पर चल कर विश्व में अपनी बादशाहत को स्थापित करने के लिए कई तरह के हथकंडे अपना रहे हैं।  बड़े देश अपने धन संपदा के बल पर दूसरे छोटे देशों को अपने चक्रव्यूह में फंसाते रह रहे हैं। अर्थात निर्धन देश और निर्धन होते चले जा रहे हैं। संपन्न देश और संपन्न होते चले जा रहे हैं । निष्कर्ष यही है कि छोटे देश के निवासियों को कष्ट पहुंच रहे हैं।  मनुष्य के शांति के साथ जीने के अधिकार बड़े देशों द्वारा छीने जा रहें हैं। भगवान महावीर ने ऐसा ना करने की सलाह थी।

      उन्होंने जियो और जीने दो जीने जो मूल मंत्र दिया था। उसके पीछे उद्देश यही है कि मानव, मानवता को आत्मसात करें । मनुष्य मनुष्य से घृणा  ना करें। मनुष्य, मनुष्य नफरत ना करें। मनुष्य जगत के सभी प्राणियों से समान रूप से प्रेम करें।  तभी वे मानवता की ओर बढ़ सकते हैं। आज वैश्विक स्तर पर पर्यावरण पर जो संकट छाया हुआ है। कई क्षेत्रों में लगातार बारिश, कहीं सुखा, कहीं हड्डियों को कंपा देने वाली ठंडक पड़ रही है तो कहीं तापमान बढ़ कर जानलेवा हो जा रहा है । इसका सबसे बड़ा कारण है कि हम सब ने पर्यावरण को पूरी तरह नष्ट कर दिया है। भौतिकतावाद के इस सफर में मनुष्य ने अपने सुख सुविधाओं के लिए जंगलों की बर्बरता के साथ कटाई कर दिया है। खुद की क्षुधा मिटाने के लिए वन्यजीवों को मारना शुरू कर दिया। परिणाम हम सब के सामने है। महल तो हमलोगों ने बना जरूर लिया है।  लेकिन महलों में निवास करने वाले व्यक्तियों के आंखों की नींद चली गई है। इससे तो बहुत बेहतर हम सब पहले थे। उस समय कम से कम पर्यावरण का इतना बुरा हाल नहीं था। और ना ही हमारी आंखों से नींद गायब हुई थी।
 दुनिया भर में प्रचलित धर्मों के अध्ययन से पता चलता है कि कोई भी धर्म आपस में बैर से रहने की बात नहीं करते हैं। सभी धर्मों का  एक ही  सार है कि हम सब मिलजुल कर रहे। यह जगत एक ही नूर से ही उपजा है। और एक दिन इसी नूर में  समा जाना है।  जो भी इस धरा पर आए हैं, उसे एक न एक दिन इस धरा को छोड़कर ही जाना है। ना यहां राजा रहेंगे। ना यहां रंक रहेंगे। तो फिर इतनी आपाधापी क्यों ?  विकास की ऊंचाइयां छूकर हम सब ने बहुत तरक्की कर ली है। निरंतर नए – नए अनुसंधान से हम सब और धनवान होते चले जा रहे हैं। हम सब ने चांद सहित कई ग्रहों  तक पहुंचने में सफलता हासिल कर ली। सूरज तक पहुंचने के प्रयास किए जा रहे हैं। अंतरिक्ष में हम सब ने अंतरिक्ष स्टेशन तक बना लिया हैं। पलक झपकते ही सात समुद्र के पार रहने वाले लोगों से संपर्क स्थापित कर सकते हैं। छोटे से मोबाइल अथवा कंप्यूटर में सचित्र उन्हें देख सकते हैं। इन तमाम उपलब्धियों के बाद भी  हम सब शांति से नहीं रह पा रहे हैं। और ना ही किसी को शांति से रहने दे रहे है। आज समाज का लगभग परिवार एकांकी होता चला जा रहा है। संयुक्त परिवार की  विचारधारा  खत्म सी हो गई है। अब सवाल यह उठता है कि जो मां बाप अपने बच्चे को बड़ा करने में अपना संपूर्ण जीवन लगा देता है। आज वही बच्चे अपने मां बाप को वृद्धा आश्रम में छोड़कर चले जा रहे हैं। आखिर यह कैसी शिक्षा है ?  आज मनुष्य को अपने पुराने मनुष्यता के स्वरूप में लौटने की जरूरत है। विकास के शंखनाद ने हमारे मन की शांति को ही लील गया है। भगवान महावीर ने जो अहिंसा का मूल मंत्र दिया है। उसे आत्मसात करने की जरूरत है। उस पर पूरी सख्ती के साथ अमल करने की जरूरत है। अपने दैनंदिन के व्यवहार में लागू करने की जरूरत है। सत्य और अहिंसा,  जियो और जीने दो ऐसा अमर वाक्य है, इसके आत्मसात करते ही इसी धरा पर स्वर्ग की स्थापना हो जाएगी।  आज जियो और जीने दो  के मूल मंत्र से दूर रहने के कारण समाज में भय का वातावरण विद्यमान है। जियो और जीने दो ऐसा मूल मंत्र है, जहां मनुष्य खुद को संवारने के साथ दूसरे को भी संवारने की कामना करता है। आज हम सब को भगवान महावीर की जयंती पर यह संकल्प लेने की जरूरत है कि हम सब शांति की स्थापना के लिए पर्यावरण की रक्षा के लिए अहिंसा का संकल्प लें।