जीबीएम कॉलेज में मनोविज्ञान विभाग द्वारा विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर कार्यशाला का आयोजन
गया । गौतम बुद्ध महिला कॉलेज में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस(वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे) के अवसर पर मनोविज्ञान विभाग द्वारा प्रधानाचार्य प्रो. डॉ. जावैद अशरफ़ की अध्यक्षता में तथा मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष प्रीति शेखर के संयोजन में “मेंटल हेल्थ एण्ड इट्स असेसमेंट” विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। छात्रा शिल्पा, मनु, श्वेता, प्रगति, कामिनी, आरजू, आकांक्षा, उगंती, स्मृति, तनीषा, आरती, वर्षा, आरजू परवीन, प्रियंका ने मानसिक तनाव से कैसे मुक्त रहा जाये विषय पर स्वनिर्मित रंग-बिरंगे पोस्टर्स की प्रदर्शनी लगायी। छात्राओं को संबोधित करते हुए सुश्री शेखर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 1992 में मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाने की शुरुआत की थी, ताकि विश्व स्तर पर लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाया जा सके। कहा कि समाज में युवाओं द्वारा की जा रही आत्महत्या की घटनाओं से निजात पाने के लिए समाज को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति ध्यान देने की जरूरत है। तत्पश्चात प्रधानाचार्य प्रो. जावैद अशरफ़, कॉलेज की जनसंपर्क अधिकारी -सह-मीडिया प्रभारी डॉ कुमारी रश्मि प्रियदर्शनी एवं परीक्षा प्रभारी डॉ प्यारे माँझी ने भी छात्राओं को विभिन्न मानसिक तनावों के मध्य भी जीवन में संतुलन तथा समन्वय बनाये रखने हेतु अनेक महत्वपूर्ण परामर्श दिये। प्रधानाचार्य प्रो. जावैद अशरफ़ ने कहा कि मानसिक अस्वस्थता को आज भी लोग छिपाने का प्रयास करते हैं, इसे एक टैबू के रूप में वर्जित मानते हैं। मानसिक रोग हो जाने पर स्वयं हताश हो जाते हैं, स्वयं को पागल समझने लग जाते हैं, दूसरों से इसकी चर्चा करने में हिचकिचाते हैं और समाज भी ऐसे लोगों को निंदा की दृष्टि से देखने लग जाता है, जोकि पूर्णतः अनुचित है। प्रधानाचार्य ने कहा कि हमारा मस्तिष्क भी हमारे शरीर का ही हिस्सा है। अन्य अंगों की भाँति इसमें भी समस्याएँ आ सकती हैं, रोग हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में घबराने की जगह, अच्छे मानसिक रोग विशेषज्ञ व चिकित्सकों के पास जाना चाहिए। प्रो. अशरफ़ ने स्ट्रेस मैनेजमेंट पर भी विचार रखे। पीआरओ डॉ रश्मि प्रियदर्शनी ने कहा छात्राओं को अपने भावावेगों पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता है। हर व्यक्ति के मन व मस्तिष्क में नकारात्मक तथा सकारात्मक, दोनों ही तरह के विचार उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, परंतु हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि हम क्रोध, निराशा, अहंकार, हीनता तथा बस स्वयं को ही श्रेष्ठ मानने जैसे नकारात्मक गुण व प्रवृत्तियों को स्वयं पर हावी न होने दें। इसके लिए समय-समय पर आत्म-चिंतन, आत्म -मूल्यांकन और आत्म-विश्लेषण करने की जरूरत है। डॉ रश्मि ने कहा कि छात्राएँ अपने भाव तथा विचारों में संतुलन बनाये रखने हेतु अच्छी पुस्तकों का अध्ययन करने की आदत डालें, अपने माता-पिता और टीचर्स के सानिध्य में रहें। किसी भी क्षेत्र में असफलता से निराश होने की बजाय, निरंतर सफलता हेतु प्रयत्न करें। अपने भीतर निहित क्षमताओं पर विश्वास रखें। परीक्षा प्रभारी डॉ प्यारे माँझी ने भी छात्राओं को शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य को बनाये रखने हेतु नियमित रूप से योगासन करने तथा स्वास्थ्यवर्द्धक आहार लेने कहा। कार्यशाला में नैक समन्वयक डॉ.शगुफ्ता अंसारी, डॉ जया चौधरी, डॉ पूजा राय, डॉ अमृता घोष, डॉ प्रियंका कुमारी, कृति सिंह आनंद, डॉ सुरबाला कृष्णा, डॉ सुनीता कुमारी, अभिषेक कुमार, भोलू, नीरज कुमार, रौशन कुमार, मीरा देवी, निकिता केसरी, शालिनी, आयुषी के अलावा सौ से अधिक छात्राओं की उपस्थिति रही।