भारतीय लोकतंत्र
लोकतंत्र का अर्थ लोकतंत्र शब्द में ही निहित है| लोकतंत्र का यदि संधि विच्छेद किया जाए तो लोक तंत्र होता है| इस संधि विच्छेद से यह पूर्णत: स्पष्ट हो जाता है कि लोकतंत्र का अर्थ क्या है ?लोक का अर्थ लगाया जाता है लोग से और तंत्र का अर्थ सिस्टम है अतः इसका शाब्दिक अर्थ लोगों का शासन होता है |इस व्यवस्था के अंतर्गत जनता अपनी इच्छा से चुनाव में आए हुए किसी भी उम्मीदवार को या दल को मत देकर अपना प्रतिनिधि चुन सकती है|
राजतंत्र, धर्मतंत्र ,तानाशाही तंत्र, कुलतंत्र ,अराजकतावादीतंत्र ,आदि सभी में सर्वोच्च स्थान लोकतंत्र को प्राप्त है।क्रेनस्टन के अनुसार लोकतंत्र के संबंध में अलग-अलग अवधारणाएं प्रचलित है। लिनसेट के अनुसार लोकतंत्र एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था है जिसमें जनता के पास ही अधिकार है कि वह अपने प्रतिनिधि को समयानुसार या आवश्यकतानुसार बदल सकती है। अब्राहम लिंकन के अनुसार लोकतंत्र जनता का ,जनता के लिए और जनता द्वारा शासन, व्यवस्था की प्रणाली है। लोकतंत्र में लोगों को मूल अधिकार एवं स्वतंत्रता का अधिकार व्यापक रूप से दिए जाते हैं। इस तंत्र में प्रतिनिधियों को हमेशा सत्ता खोने का भय बना रहता है जिसके कारण वे कार्य जनहित में करना अधिक पसंद करते हैं।
लोकतंत्र के प्रकार
लोकतंत्र को मुख्यता दो प्रकारों में विभक्त किया जा सकता है पहला प्रत्यक्ष लोकतंत्र और दूसरा अप्रत्यक्ष लोकतंत्र।प्रत्यक्ष लोकतंत्र में सभी नागरिक सारे महत्वपूर्ण नीतिगत फैसलों पर मतदान करते हैं। सैद्धांतिक रूप से इसमें कोई प्रतिनिधि या मध्यस्थ नहीं होता। प्रत्यक्ष लोकतंत्र सामान्यतः छोटे नगरों और राष्ट्रों जैसे स्वीटजरलैंड आदि में है।
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र उसे कहते हैं जहां जनता अपने प्रतिनिधियों का निर्वाचन करके उन्हें सुचारू रूप से शासन संचालन का दायित्व देती है। दुनिया के अधिकांश देशों में शासन अप्रत्यक्ष लोकतंत्र के द्वारा हो रहा है जैसे -भारत ,इंग्लैंड ,फ्रांस, रूस, अमेरिका आदि।
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र को भी मुख्यतः दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है जैसे- संसदीय शासन प्रणाली और अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली।संसदीय शासन प्रणाली के अंतर्गत देश के प्रतिनिधि सभा में बहुमत दल के नेता को प्रधानमंत्री निर्वाचित किया जाता है।संसदीय लोकतंत्र का सबसे अच्छा उदाहरण ब्रिटेन है ।भारत में भी संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया गया है। अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में राष्ट्रपति में ही देश की कार्यपालिका की शक्ति निहित होती है। वही कार्यपालिका का प्रधान होता है। जबकि संसदीय शासन प्रणाली में राष्ट्रपति नाम मात्र का प्रधान होता है और वास्तविक कार्यपालिका शक्ति प्रधानमंत्री और उसके मंत्रिपरिषद में निहित होती है।
भारत में लोकतंत्र
अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त होने के बाद भारत में संसदीय शासन व्यवस्था को अपनाया अर्थात भारत के शासन को चलाने का कार्य संसद करती है और पहले हम देख चुके हैं कि संसदीय शासन प्रणाली अप्रत्यक्ष लोकतंत्र का एक भाग है ।यद्यपि भारत विश्व का सबसे बड़ा और मजबूत लोकतंत्र होने का दावा करता है किंतु लोकतांत्रिक सूचकांक में भारत को 2020 में 53 में स्थान प्राप्त हुआ है भारत को यह स्थान 167 देशों की रैंकिंग में प्राप्त हुई है ।अतः भारत को पहले स्थान में आने के लिए और अधिक कड़ी मेहनत करने की आवश्यकता है।
वर्तमान में भारत पूंजीवाद की ओर अग्रसर होता नजर आ रहा है समय के अनुसार यह आवश्यक भी है वास्तविक रूप से भारत एक समाजवादी राज्य है और यह समाजवादी ही रहेगा क्योंकि इंदिरा गांधी की सरकार ने 1976 में 42 वें संविधान संशोधन द्वारा इसे संविधान में शामिल किया गया इसमें संशोधन भी संभव नहीं है क्योंकि यह संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है। अतः वर्तमान सरकार अत्यंत चलाकि पूर्वक समाजवादी सिद्धांतों को अपनाकर पूंजीवादी के रास्ते में चल पड़ी है अतः या कह जा सकता है कि भारत वर्तमान में समाजवादी पूंजीवाद का रुख अपना रहा है और पूंजीवादी नीतियों की अक्सर जनता विरोध करती नजर आती है क्योंकि उनकी मानसिकता समाजवादी मानसिकता है और नीतियां पूंजीवादी बन रही है।
उदारीकरण ,वैश्वीकरण ,निजीकरण, आदि सभी पूंजीवादी लक्षण ही है ऐसे में जनता को हमेशा से यह लगते रहा है कि भारत का लोकतंत्र खतरे में है। किंतु ऐसा नहीं है ।पूंजीवाद समय की मांग है। अमेरिका पूंजीवादी देश होते हुए भी एक मजबूत लोकतांत्रिक देश है ,तो भारत क्यों नहीं हो सकता? भारत में लोकतंत्र खतरे में नहीं है। बल्कि पूंजीवादी तरीकों से उसे और मजबूत बनाया जा रहा है। जनता उदारीकरण और वैश्वीकरण का विरोध नहीं करती बल्कि निजीकरण का जोरदार विरोध हो रहा है और इसका कारण यह है कि भारत का युवक सरकारी नौकरी करने का स्वप्न देखता है क्योंकि भारत में सरकारी नौकरी प्रतिष्ठा का विषय है ।लोग सरकारी नौकरी में जाकर भ्रष्टाचार करके अरबों रुपए कमाने का स्वप्न देखते हैं। और जो निजी करण के द्वारा संभव नहीं है ।अतः इसका विरोध तो निश्चित है ।भारत के लोकतंत्र को खतरे में डालने का काम हम भारत के लोग कर रहे हैं। अतः ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए नरम लोकतंत्र सफल नहीं हो पाती अतः एक तानाशाही लोकतंत्र की आवश्यकता होती है। जिसमें वर्तमान सरकार माहिर नजर आ रही हैं ।लोकतंत्र के विपक्ष में अरस्तु कहते हैं कि यह कोई बुद्धिमान तंत्र नहीं है बल्कि यह एक नादान तंत्र है क्योंकि इसमें सिर गिने जाते हैं यह नहीं देखा जाता कि सिर के अंदर क्या है ?विद्वानों ने आईडोक्रेसी कहकर इसकी आलोचना की है ।पेरायटो भी कहते हैं कि बहुमत हमेशा दानों की होती है ।किंतु गांधी जी जैसे अनेक विचारक लोकतंत्र के पक्षधर भी हैं। गांधी जी लोकतंत्र के पक्ष में कहते हैं कि सच्चा लोकतंत्र किसी एक केंद्र में 20 आदमियों के मिल बैठने से नहीं चलाया जा सकता ।इसे नीचे से काम करना चाहिए लोकतंत्र का संचालन गांव-गांव द्वारा लोगों को खुद से करना चाहिए तभी हमारा देश सच्चे अर्थों में एक मजबूत और चिरस्थाई लोकतांत्रिक देश बनेगा। ऐसी स्थिति ब्रिटेन में देखने को मिलती है जहां डाउन टॉप मॉडल अपनाया जाता है अर्थात स्थानीय निकाय देश की सरकार को सशक्त करती है किंतु भारत में टॉप मॉडल है अर्थात केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार स्थानीय निकायों को सशक्त करती है। वास्तव में भारत की यह व्यवस्था को बदलने का समय आ गया है ।और हमें मिलकर यह कार्य करना होगा|