नवजागरण की दिशा में 'बरही केसरवानी मिलन समारोह' के बढ़ते कदम
( 23 फरवरी, 31 वां 'बरही केसरवानी मिलन समारोह' )
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सामाजिक नवजागरण की दिशा में बरही केसरवानी मिलन समारोह के बढ़ते कदम धीरे-धीरे कर मील का पत्थर साबित हो रहे हैं। बीते इकतीस वर्षों में बरही केसरवानी मिलन समारोह के कार्यकर्ताओं ने जो काम किया है, समाज के सभी वर्ग के लोगों के लिए अनुकरणीय है । आज हजारीबाग जिले में दो - दो केसरवानी कृष्ण मंदिर स्थापित हैं । इसके साथ ही तीन बड़े धर्मशाला कार्यरत हैं । बरही में एक भव्य केसरी आश्रम प्रस्तावित है, तीव्र गति से निर्माण कर चल रहे हैं। अपने स्थापना काल से ही बरही केसरवानी मिलन समारोह समाज के सभी वर्ग के लोगों को सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ उठ खड़े होने का आह्वान करता चल रहा है । इसका समाज पर बहुत ही प्रतिकूल असर पड़ा है। समाज सुधार की दिशा में बरही केसरवानी मिलन समारोह के बढ़ते कदम ने यह साबित कर दिया है कि सामाजिक नवजागरण से समाज में व्याप्त कुरीतियों को बहुत हद तक दूर किया जा सकता ।
1995 से बरही केसरवानी मिलन समारोह का आयोजन होना प्रारंभ हुआ था । देखते ही देखते यह आयोजन 31 वें वर्ष में प्रवेश कर गया है । बरही केसरवानी मिलन समारोह का बीते 31 वर्षों का इतिहास बहुत ही गौरव पूर्ण है । 1995 से शुरू हुआ यह आयोजन बिना रुके सामाजिक नवजागरण की दिशा में अग्रसर है। मिलन समारोह के आयोजन का उद्देश्य है, सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ नवजागरण पैदा कर इसे दूर किया जाए । बरही केसरवानी मिलन समारोह ने सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जो कदम उठाया है, इसे समाज सुधार की दिशा में एक सार्थक पहल कह सकते हैं। समाज में व्याप्त दहेज प्रथा को जड़ से मिटाने के लिए हर वर्ष केसरवानी समाज के लोग इस पर गंभीरता से विचार विमर्श करते हैं । दहेज दानव को समाप्त करने के लिए संकल्प भी लेते हैं ।
यह सच है कि समाज में लड़का और लड़की के बीच फर्क किया जाता है । हमारा समाज आधुनिक होने की बात जरूर करता है, लेकिन लड़का - लड़की के बीच के इस फर्क को हम सबों ने मिटा नहीं पाया है । यह एक सामाजिक कुरीति के रूप में हम सबों के सामने है । समाज में ऐसी परंपरा बन गई है कि अगर घर में लड़का जन्म लिया तो उत्सव मनाया जाता है। वहीं लड़की के जन्म लेने पर घर में कोई विशेष उत्साह देखा जाता है। यह दोहरा मापदंड किसी भी दृष्टि में उचित नहीं है । बरही केसरवानी सम्मेलन ने इस बात को बहुत ही गंभीरता से लिया । सालाना होने वाले केसरवानी मिलन समारोह की बैठकों में लड़का - लड़की के भेद को मिटाने का संकल्प लिया जाता है। फलस्वरुप इस संकल्प का समाज में बहुत ही अच्छा असर हुआ है। अब धीरे-धीरे लोग लड़का और लड़की के भेद मिटता चला जा रहा है। यह बरही केसरवानी मिलन समारोह की एक बड़ी उपलब्धि के रूप में भी देखा जा रहा है।
अब लड़कियों के जन्म लेने पर घर में उत्सव मनाया जाता है । इस मिलन समारोह ने अपने स्थापना काल में ही लड़कियों को शिक्षित करने का प्रस्ताव पारित किया था । फलस्वरूप लड़कियों को शिक्षित करने का प्रस्ताव शत प्रतिशत सफल हुआ । पहले समाज के लोग लड़कियों को पांचवी -छठी अथवा मैट्रिक तक पढ़ाई करा कर घर के कामकाज में लगा दिया करते थे। बहुत कम ही लड़कियां महाविद्यालय, विश्वविद्यालय तक पहुंच पाती थी । लड़की शिक्षा के प्रस्ताव पारित होने के बाद समाज में एक बड़ा परिवर्तन आया । समाज के लोग ने लड़कियों को शिक्षित करने की जोरदार पहल की। आज समाज की लड़कियां बीटेक एमटेक कर अच्छे प्रतिष्ठानों में नौकरी भी कर रही हैं । आज से लगभग 30-35 वर्ष पूर्व कल्पना भी नहीं की जा सकती था कि समाज की लड़कियां अन्य प्रदेशों में नौकरी करेंगी । सम्मेलन का यह एक सकारात्मक परिणाम हम सबों को देखने को मिल रहा है ।
आज समाज की लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी हैं। पहले लड़कियों को बोझ समझा जाता था । आज लड़कियां खुद अपने पैरों पर खड़ी हैं। कई परिवारों की लड़कियां परिवार का बोझ अपने कंधों पर भी उठा रहीं हैं। शिक्षा का प्रभाव ऐसा हुआ कि कई लड़कियां पिता के अस्वस्थता के कारण घर की जवाबदेही भी अपने कंधों में ले ली हैं।
भ्रूण हत्या एक सामाजिक अपराध है । केसरवानी मिलन समारोह ने अपने स्थापना के समय ही भ्रूण हत्या के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया था। भ्रूण हत्या अर्थात कन्या भ्रूण की हत्या । जन्म लेने से पहले ही कन्या भ्रूण की हत्या कर दी जाती है । यह एक गंभीर सामाजिक बुराई है। जन्म लेने से पहले लड़की को इसलिए मार दिया जाता कि वह कन्या है । समाज के दोहरे मापदंड को बदलने के लिए बरही केसरवानी मिलन
समारोह ने इस कुप्रथा के खिलाफ जबरदस्त जन जागरण का चला रखा । इसका समाज पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा है।
दहेज प्रथा एक सामाजिक बुराई है । पूरा देश दहेज प्रथा से त्रस्त है । हर वर्ष दहेज प्रथा के कारण हजारों लड़कियों को अपनी जान गंवानी पड़ती है । दहेज के कारण कई लड़कियां सताई जा रही हैं। दहेज के कारण कई लड़कियां जलाई जा रही हैं ।जबकि दहेज लेना और देना दोनों एक सामाजिक बुराई है । यह दंडनीय अपराध है । इतने कठोर कानून के बावजूद दहेज प्रथा रुकने का नाम ले रही रही है । दहेज लोभियों की मांगें धीरे-धीरे बढ़ती ही चली जा रही हैं। यह एक गंभीर सामाजिक चिंता की बात है। बरही केसरवानी मिलन समारोह का आयोजन दहेज प्रथा के खिलाफ एक बड़ा कदम है । दहेज को जड़ से मिटाने के लिए बरही केसरवानी मिलन समारोह द्वारा हर वर्ष दहेज प्रथा के खिलाफ सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित जाता है । दहेज न लेने और देने का संकल्प भी लिया जाता है । फलस्वरूप समाज में इस प्रस्ताव का बहुत ही अच्छा असर हुआ। इस निमित्त केसरवानी मिलल समाज द्वारा हर वर्ष सामूहिक विवाह का आयोजन भी किया जाता है।
इस सम्मेलन में हजारों की संख्या में केसरवानी समाज के लोग सम्मिलित होते हैं । इस सम्मेलन की सबसे सुखद बात यह है कि केसरवानी समाज के लोगों के अलावा अन्य समाज के लोग भी सम्मिलित होते हैं। बरही केसरवानी मिलन समारोह सामाजिक दायित्वों का निर्वहन भी करता चला आ रहा है । केसरवानी मिलन समारोह के कार्यकर्ता गण विभिन्न त्योहारों पर विभिन्न प्रकार के स्टॉल लगाकर जन सेवा का भी कार्य करते हैं । बर्ष 2019-20 में देश में आई महामारी कोरोना के दौरान बरही मार्ग से आने जाने वाले राहगीरों के लिए केसरवानी मिलन समारोह के कार्यकर्ताओं ने जो सेवा अर्पित की, सदा याद किया जाता रहेगा। समाज में शांति व्यवस्था और सांप्रदायिक सौहार्द्र कायम रहे । इस निमित्त केसरवानी समाज के कार्यकर्ता गण बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं ।केसरवानी मिलन समारोह द्वारा महिलाओं की भी एक समिति बनाई गई है ।समाज की महिलाओं को ऊपर उठाने की दिशा में एक सार्थक पहल है। युवाओं का भी एक संगठन बनाया गया है । युवाओं के संगठन बनने से सामाजिक कार्यों में गति मिल गई है । समाज के युवा संगठन जरूरतमंदों की भरपूर सेवा में जुटे रहते हैं।
समाज की हर गतिविधियों पर केसरवानी मिलन समारोह की नजर रहती है । निश्चित तौर पर केसरवानी मिलन समारोह की सक्रियता देखते बनती है। केसरवानी मिलन समारोह के संस्थापक सदस्य स्वर्गीय श्याम देव प्रसाद केसरी के सामाजिक सुधार के सपने को केसरवानी मिलन समारोह साकार करता चला जा रहा है। उन्होंने बरही केसरवानी मिलन समारोह की स्थापना लिए अपनी पूरी शक्ति लगा दी थी। केसरवानी मिलन समारोह को गति प्रदान करने भगवानदास केसरी, जगदीश साहू, रत्नेश्वर केसरी, कपिल केसरी, महेंद्र केसरी, बलराम केसरी, काशी केसरी, दिलीप केसरी, दशरथ केसरी जैसे हजारों लोगों के अवदान को कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता है ।