आज की राजनीति को आईना दिखाती 'जो जीता, वही सिकंदर' कहानी

( कथाकार रतन वर्मा की कहानी 'जो जीता,वही सिकंदर' पर समीक्षा)

आज की राजनीति को आईना दिखाती 'जो जीता, वही सिकंदर' कहानी

झारखंड के जाने-माने कथाकार रतन वर्मा की हालिया प्रकाशित कहानी 'जो जीता, वही सिकंदर' प्रकाशन के साथ ही चर्चा के केंद्र में आ गई है । यह कहानी आज की राजनीति पर सवाल खड़ा करती नजर आती है ।  क्या सचमुच आज की राजनीति का स्वरूप  बदल चुका है ? साथ ही यह कहानी आज की राजनीति को आईना भी दिखाती  है।  विश्व मानचित्र पर राजनीति का उदय राजतांत्रिक व्यवस्था के साथ शुरू हुई थी।  बाद के कालखंड  में  राजतंत्र के समापन और लोकतंत्र के उदय  के साथ ही राजनीति का प्रादुर्भाव हुआ था ।‌ तब शायद किसी ने यह सोच भी न था कि एक दिन राजनीति का स्वरूप इतना बदल जाएगा। रतन वर्मा की कहानी 'जो जीता, वही सिकंदर, आज की राजनीति का पर्याय बन चुका है। आप माने अथवा न माने 'जो  जीत, वहीं सिकंदर' आज की राजनीति का मुखौटा बन चुका है । आप कितना भी प्रतिभाशाली क्यों न हों ? आपकी प्रतिभा सबकी सब  धारी रह जाएगी और एक  फिसड्डी  सा आदमी अपने सिर्फ पैंतरे और सामर्थ्य के बल पर उसे ठेंगा दिखाते हुए मैदान ले जाता है । और वह सिकंदर बन जाता है। 
  कथाकार रतन वर्मा ने 'जो जीता, वही सिकंदर' कहानी के प्रारंभ में दर्ज किया है कि 'प्रतिभा संपन्न इंसान अपनी प्रतिभा का समस्त प्रमाण लहराता रह जाता है और एक फिसड्डी सा आदमी अपने पैंतरे और सामर्थ्य के बल पर उसे ठेंगा दिखाते हुए मैदान मार लेता है। यही आज की राजनीति का सच है।
   कथाकार रतन वर्मा 'जो जीता, वही सिकंदर' कहानी के माध्यम से आज की राजनीति के स्वरूप को बदलने की मांग करते हैं । उन्होंने कहानी के माध्यम से सवाल खड़ा किया है कि अगर राजनीति की दिशा यही रही, तब जंगल राज बनते देर नहीं लगेगी । आज विश्व भर के देशों की राजनीति की दिशा और दशा यही है । फलस्वरुप अशांति और हिंसा इस रूप में विद्यमान होती  चली जा रही है जिसमें आम लोगों का जीना ही दूभर  हो गया है। पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में जिस तरह तख्ता पलट हुआ और हिंसा ने अपना रूप अख्तियार किया। ऐसे हिंसात्मक उपद्रव और राजनीति से कुछ छात्र नेता उभर कर सामने आते हैं, और कल राजनीति की बैसाखी पर सवार होकर सत्ता के शीर्ष पर पहुंचते हैं।  तब ऐसे लोगों से राजनीति की सुचिता की क्या उम्मीद की जा सकती है ?
कथाकार, तत्काल ऐसी  राजनीति की दिशा को बदलने की मांग करते हैं। 'जो जीता, वही सिकंदर' कहानी के  पात्रों के माध्यम से कथाकार आमजन को जागृत कर बताना चाहते हैं कि सत्ता के शीर्ष पर ऐसे लोगों को कदापि न भेजें, जो अपराध और हिंसा के बल पर सिकंदर बनने  की चाह रखते हैं बल्कि सत्ता के सिर्फ पर ऐसे लोगों को भेजें जो शालिन स्वभाव  और प्रतिभा संपन्न हों। तभी राजनीति का स्वरूप को बदला जा सकता है।
'जो जीता, वही सिकंदर' एक गांव की कहानी है। इस कहानी में दो प्रमुख पात्र हैं । एक रघुवीर शर्मा का पुत्र शीतल शर्मा जो शालिन सौम्य स्वभाव, आज्ञाकारी और प्रतिभा संपन्न रहता है। वहीं दूसरी ओर उसी गांव का परदेसी शर्मा का पुत्र विमल शर्मा जो बचपन से ही बिगड़ैल स्वभाव का है रहता है । रघुवीर शर्मा और परदेसी शर्मा दोनों एक ही गांव में रहते हैं । दोनों दूर के रिश्ते में चचेरे भाई होते हैं।   परदेसी शर्मा, अपने चचेरे भाई रघुवीर शर्मा को मात देने अथवा उन्हें खोरी खोटी सुनाने में कोई भी कसर नहीं छोड़ते हैं ।‌यहां तक कि गांव के सरपंच के चुनाव में भी परदेसी शर्मा बाजी मार ले जाते हैं। जबकि प्रतिभा और सौम्यता में रघुवीर शर्मा,  परदेसी शर्मा से भारी पड़ते हैं।  लेकिन परदेसी शर्मा अपने घोड़ पेंच  नीति के कारण जीत दर्ज करा जाते हैं । अर्थात 'जो जीता, वही सिकंदर' का खिताब अपने नाम दर्ज कर जाते हैं।
 लेकिन परदेसी शर्मा अपने बेटे विमल शर्मा के बिगड़ैल कारनामे के कारण रघुवीर शर्मा के बेटे शीतल शर्मा के मामले में पीछे रह जाते हैं।  एक ओर रघुवीर शर्मा के बेटे शीतल शर्मा की पढ़ाई और सौम्य स्वभाव की चर्चा होती है, वहीं दूसरी ओर प्रतिदिन विमल शर्मा के बिगड़ैल कारनामों की शिकायतें  परदेसी शर्मा के पास पहुंचते रहते हैं । एक दिन तो विमल शर्मा ने ऐसा हद कर दिया कि जगदंबा पांडे की बेटी हेमलता को उसने भरी कक्षा में बाहों में भर लिया।  यह बात जब स्कूल के हेड मास्टर तक पहुंची तब उन्होंने उसे स्कूल से निकाल कर ही दम लिया । यह खबर सुनकर परदेसी शर्मा गुस्से से आग बबूला हो गया । विमल शर्मा के इस कारनामे पर परदेसी शर्मा ने  उस पर लाठी उठाया, विमल शर्मा ने उनका हाथ  पड़कर रोक दिया और सबक सिखाने की धमकी दे डाली। ‌  परदेसी शर्मा अपने बेटे विमल शर्मा का यह बदल रूप देखकर हतप्रभ रह गया । और उसने हथियार डाल दिया।
  बाद के घटनाक्रम में परदेसी शर्मा ने अपने बेटे को सुधारने के लिए उनके मामा के यहां शहर भेज दिया। विमल शर्मा का दाखिला शहर के एक स्कूल में मैट्रिक में जरूर करा दिया गया। लेकिन यहां भी उसका बिगड़ैल स्वभाव नहीं बदला। उसने अपने लंठगिरी कारनामे से स्कूल के छात्रों से लेकर टीचरों को अपने दहशत का शिकार बनाकर सिकंदर बन गया। विमल शर्मा मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास कर कॉलेज में आ चुका था। वह  कॉलेज में भी जल्द ही स्टूडेंट यूनियन का चुनाव जीत कर  सिकंदर का खिताब प्राप्त कर चुका था।‌ इसी दौरान उसने एक व्यक्ति पर जानलेवा हमला  कर जेल भी चला गया। विमल शर्मा के मामा और पिता परदेशी शर्मा यह खबर सुनकर परेशान हो जाते हैं।  विमल शर्मा को जेल से छुड़ाने के लिए तैयारी में जुड़ जाते हैं। तभी  उसी शहर के एक नेता,  विमल शर्मा को न्यायालय से जमानत दिलवाकर जेल से बाहर निकाल दिया देता है। विमल शर्मा जिंदाबाद, विमल शर्मा जिंदाबाद के नारों के साथ जीप पर सवार विमल शर्मा का स्वागत फूल मालाओं से हो रहा होता है। यह देखकर उनके मामा और परदेसी शर्मा भी भीड़ में शामिल हो  जाते हैं।
आगे चलकर यही विमल शर्मा लोकसभा का चुनाव जीतकर मंत्री बन जाता है।  विमल शर्मा की शादी की पार्टी उस गांव में होती है। इस पार्टी में देश भर के सैकड़ो बड़े राजनेता सम्मिलित होते हैं ।
 वहीं दूसरी ओर रघुवीर शर्मा का पुत्र शीतल शर्मा प्रथम श्रेणी से एम.ए. की परीक्षा पास कर एक अदना सी सरकारी नौकरी के लिए भटकता नजर आता है । शीतल शर्मा, मंत्री बने विमल शर्मा के इर्द-गिर्द चक्कर लगाता रह रहा है कि है मंत्री जी की नजर उस पर पड़े और दया कर उसे एक सरकारी नौकरी दे दे।
कथाकार रतन वर्मा ने इस छोटी सी कहानी के माध्यम से एक बहुत बड़ी बात कहने की कोशिश की है कि 'एक प्रतिभा संपन्न व्यक्ति अपनी प्रतिभा का समस्त प्रमाण लहराता रह जाता है, और एक  फिसड्डी सा आदमी सिर्फ अपने पैंतरे और सामर्थ्य के बल पर उसे ठेंगा दिखाते हुए मैदान मार लेता है। ' अब सवाल यह उठता है कि विमल शर्मा जैसे व्यक्ति को कौन सांसद बनता है? जबाब  है। हमारा समाज ही उसे सांसद बनाता है । और उसे देश की सिर्फ सत्ता पर विराजमान कराता है । जब तक हमारा समाज ऐसे लोगों को सत्ता के शीर्ष पर बैठता रहेगा, हमारी राजनीति इसी तरह ढलान की ओर आगे बढ़ते रहेगी। आज की बदली राजनीतिक परिदृश्य में भ्रष्टाचार खून, हिंस, घोटालों के आरोप में तथाकथित हमारे नेता के गिरफ्तार होकर जेल भेजे जाते हैं।  लेकिन वे शीघ्र ही तिकड़म भिड़ाकर नजेल से बाहर आते हैं । जब ऐसे नेता जेल से बाहर निकलते हैं, तो उनका विमल शर्मा जैसा स्वागत होता है।  और वह फिर से सिकंदर बन जाता है। यह कहानी ऐसी राजनीति पर जमकर प्रहार करती है। साथ  इस तरह की परिपाटी को शीघ्र ही मिलजुल कर बंद करने की मांग करती है।