आर्टिकल 30: संविधान में शिक्षा के क्या अधिकार दिये गये हैं ? जानिए सच
अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान की स्थापना करने और उसे संचालित करने का अधिकार देता है।
शिक्षा किसी भी सभ्यता का आधार होता है। शिक्षा के माध्यम से ही सभ्यता की संस्कृति को सीखने एवं उसे आगे ले जाने का अवसर मिलता है। संस्कृति का अर्थ लोगों के एक विशेष समूह की विशेषता, व्यवहार, भाषा, भोजन, धर्म, परंपरा, कला एवं संस्कार होता है। शिक्षा ही एकमात्र साधन है जो मनुष्यों को उनके संस्कृति से अवगत करती है।
अपना भारत एक सांस्कृतिक विविधता वाला देश है जहां कई अलग-अलग संस्कृतियाँ एक साथ मिलकर निवास करती है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जहां धार्मिक अधिकारों और विशेषाधिकारों की सुरक्षा विशेष ध्यान रखा जाता है। हिंदू बाहुल्य देश होने के बाद भी भारत का संविधान विशेष रूप से अल्पसंख्यकों के कुछ अधिकारों का समर्थन करता है, और भारत के नागरिकों के धर्म, जाति या लिंग के सभी मूलभूत अधिकारों को स्पष्ट करता है। अनुच्छेद 30 को भारतीय संविधान के भाग तृतीय (III) के तहत वर्गीकृत किया गया है और यह अनुच्छेद शैक्षणिक संस्थानों के प्रबंध और अल्पसंख्यकों के शैक्षणिक अधिकार का समर्थन करता है।
आर्टिकल 30 लेकर लगातार कोई ना कोई बयान जारी होता रहता है और इस पर राजनीति भी की जाती है। सोशल मीडिया पर भी लगातार Article30 को लेकर मदरसों में कुरान पढ़ाए जाने और स्कूलों में गीता ना पढ़ाए जाने संबंधित अफ़वाहें फैलाई जाती रही है। ये अफ़वाहें सत्य से बिलकुल परे है। 28 मई 2020 को बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने ट्वीट करके भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 को संवैधानिक समानता के अधिकार को नुकसान पहुँचाने वाला बताया था । कैलाश विजयवर्गीय ने ट्वीट के बाद से भारतीय ट्विटर पर #आर्टिकल_30_हटाओ ट्रेंड कर रहा था। इससे पहले साल 2019 में एक झूठ फैलाया गया था जिसमें धार्मिक पुस्तकों को पढ़ाने को भारत के संविधान के Article 30 से जोड़ा गया था। भारतीय संविधान पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष है। संविधान के अनुच्छेद 30 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि अल्पसंख्यकों के साथ असमान व्यवहार न हो।
संविधान का अनुच्छेद 30 क्या है?
- अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान की स्थापना करने और उसे संचालित करने का अधिकार देता है। सरकार किसी भी शैक्षणिक संस्थान के खिलाफ इस आधार पर मदद देने में भेदभाव नहीं कर सकती कि वे एक अल्पसंख्यक प्रबंधन के तहत आता है।
- आर्टिकल 30(1): धर्म या भाषा के आधार पर सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपने रुचि के शिक्षण संस्थान की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा। ये अधिकार अनुच्छेद 29(2) द्वारा अधिरोपित मर्यादाओं के अधीन है। यदि किसी अल्पसंख्यक संस्था को राज्य से सहायता मिलती है तो वह धर्म, जाति आदि के आधार पर अल्पसंख्यक समुदाय के बाहर के किसी व्यक्ति को ऐसी संस्था में प्रवेश देने से इंकार नहीं कर सकती।
- अनुच्छेद 30(1) और अनुच्छेद 19 के तहत राज्य को यह शक्ति है कि अनुशासन, स्वच्छता, नैतिकता या लोक व्यवस्था आदि बातों को ध्यान में रखकर अल्पसंख्यक समुदाय की संस्था का प्रशासन चलाने के अधिकार को विनियमित (Regulate) कर सकता है।
- अनुच्छेद 30(1) और अनुच्छेद 28(3) के तहत यदि किसी अल्पसंख्यक संस्था को राज्य से सहायता या मान्यता मिलती है तो वह किसी विद्यार्थी (यदि वयस्क हो) या उसके संरक्षक की अनुमति के बिना किसी विद्यार्थी को धार्मिक शिक्षा नहीं दे सकती या उसे कोई धार्मिक अर्चना में उपस्थिति होने के लिए विवश नहीं कर सकती।
- अनुच्छेद 30(1A): भारतीय संविधान के आर्टिकल 30(1A) में अल्पसंख्यकों (मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी और जैन) द्वारा स्थापित किए जाने वाले शैक्षणिक संस्थानों की संपत्ति का जरूरी अधिग्रहण भी सुरक्षित किया जाएगा। यह आवश्यक नहीं है की अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों का पाठ्यक्रम केवल धर्म की शिक्षा या अल्पसंख्यक समुदाय की भाषा तक ही सीमित रहे। कहने का अर्थ है की ऐसी संस्थाओं में साधारण शिक्षा देने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
अल्पसंख्यक (Minority) कौन है?
संविधान में अल्पसंख्यक की परिभाषा नहीं दी गई है। इस शब्द के साधारण अर्थ में इसका तात्पर्य है कोई भी ऐसा समुदाय जो राज्य की जनसंख्या के पचास प्रतिशत से कम है। कोई समुदाय अल्पसंख्यक है या नहीं यह आपेक्षित विधान के प्रति निर्देश से सुनिश्चित किया जाएगा। भाषाई अल्पसंख्यक होने के लिए उस समुदाय की अपनी बोलचाल की भाषा होनी चाहिए, भले ही लिपि न हो। संविधान लागू होने के बाद अगर कोई संस्था अल्पसंख्यकों को ध्यान में रखकर बनाई गई है तो ऐसे में अल्पसंख्यक भारत में निवासी व्यक्ति होना चाहिए। लेकिन अगर संविधान लागू होने के पूर्व ही किसी अनिवासी व्यक्ति द्वारा कोई संस्था भारत में अल्पसंख्यक समुदाय के फायदे के लिए स्थापित की गई है तो उसे इस अनुच्छेद का संरक्षण मिल सकता है।
अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट निर्देशित किया है :
- संस्था को अपना शासी निकाय चुनने का अधिकार।
- शिक्षण कर्मचारियों एवं शिक्षेकेत्तर कर्मचारियों को नियुक्त करने, साथ ही अपने काम में लापरवाही बरतने पर उनके विरुद्ध कार्रवाई करने का अधिकार।
- अपनी पसंद के योग्य विद्यार्थियों को प्रवेश दिलाने तथा एक सुसंगत शुल्क-ढांचा स्थापित करने का अधिकार।
- अपनी संपदा तथा परिसंपत्तियों का संस्था के हित में उपयोग करने का अधिकार।
- अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना एवं प्रशासन का अधिकार सम्पूर्ण या अबाध नहीं है। यानी कि कुप्रबंधन की स्थिति में या अकादमिक उत्कृष्टता के मानदंडों को पूरा न करने की स्थिति में राज्य द्वारा विनियामक उपाय किए जा सकते है या कुछ स्थितियों में उसके प्रशासन को भी नियंत्रित किया जा सकता है।
अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान तीन प्रकार तीन प्रकार के होते हैं:
- राज्य से आर्थिक सहायता और मान्यता लेने वाले संस्थान।
- ऐसे संस्थान जो राज्य से मान्यता प्राप्त हो लेकिन आर्थिक सहायता नहीं लेते हों।
- ऐसे संस्थान जो राज्य से न तो आर्थिक सहायता लेता हो और न ही मान्यता।
जो भी शिक्षण संस्थान राज्य से आर्थिक सहायता या फिर मान्यता लेते हो या फिर दोनों ही लेते हों तो उसमें शिक्षण कार्य और प्रशासनिक कार्य राज्य के अनुसार होगी। ग़ैर मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थान अपने प्रशासनिक कार्यों का संचालन बिना विधि का उल्लंघन किए स्वयं कर सकते हैं।
अनुच्छेद 30(1) द्वारा दिये गये अधिकार
- इस अनुच्छेद के तहत जो प्रशासन का अधिकार दिया गया है उसके तहत कुप्रशासन का अधिकार नहीं आता है। यानी की कुप्रशासन की स्थिति में यह अनुच्छेद विफल हो जाएगा।
- अनुच्छेद 30(1) के अधीन आने वाली संस्था को सहायता या मान्यता देने की शर्त के रूप में, स्वच्छता, शिक्षकों की क्षमता, अनुशासन आदि सुनिश्चित करने के लिए अपने नियम बना सकता है।
- यदि राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थाओं को सहायता प्रदान करता है तो वह सहायता के साथ ऐसी शर्तें नहीं लगा सकता जिससे धार्मिक या भाषाई समुदाय के सदस्य अनुच्छेद 30(1) के तहत मिले अधिकार से वंचित हो जाए। हालांकि राज्य को युक्तियुक्त शर्त अधिरोपित करने का अधिकार है।
- अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थाओं के लिए राज्य से मान्यता प्राप्त करना आवश्यक नहीं है।