पत्रकार सुरक्षा कानून पूरे देश में लागू करना जरूरी : प्रीतम भाटिया

पत्रकार सुरक्षा कानून पूरे देश में लागू करना जरूरी : प्रीतम भाटिया

रांची/जमशेदपुर: आॅल इंडिया स्मॉल एंड मीडियम जर्नलिस्ट वेलफेयर एसोसिएशन के बिहार, झारखंड और बंगाल प्रभारी प्रीतम सिंह भाटिया ने कहा है कि पत्रकार सुरक्षा कानून पूरे देश में लागू किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि आज जो देश में पत्रकार साथियों की स्वतंत्रता और सुरक्षा के दृष्टिकोण से सबसे ज्यादा जरूरी है, वह “पत्रकार सुरक्षा कानून” है। देश में जब इस कानून पर पत्रकार साथियों में फूट हो गई और आंदोलन समाप्त हो गया, उसी समय देश का चौथा स्तंभ मजबूती खो चुका था। उन्होंने कहा कि
जब दिल्ली में इस कानून को लेकर विभिन्न संगठनों के पदधारी और पत्रकार एकजुट हो गए थे और पहला प्रदर्शन जंतर-मंतर में लगभग 7 साल पहले हुआ था। इसके बाद अलग-अलग राज्यों से मांग उठने लगी। इसके बाद तो आंदोलन बंटा नहीं, बल्कि आंदोलन का ही बंटाधार हो गया।
यदि देश के सभी पत्रकार एकजुट होकर इस कानून को लागू करवाते, तो शायद देश में पत्रकारों के प्रताड़ना के मामलों में आश्चर्यजनक सुधार नजर आता।
पत्रकार सुरक्षा कानून सिर्फ सुरक्षा ही नहीं, बल्कि पत्रकारों के संवर्धन को लेकर भी हो।
उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा कानून हो जो राज्यों से नहीं बल्कि केंद्र की पहल पर होना चाहिए। अगर केंद्र इसे बनाकर देशभर में लागू करे तो राज्यों को अलग से कानून बनाने की जरूरत नहीं होगी। ये अलग बात है कि केंद्र की चुप्पी और आंदोलन के बिखराव के कारण पत्रकार संगठनों का प्रयास अब अपने-अपने राज्यों तक ही सीमित रह गया है।
पहले,दूसरे और तीसरे स्तम्भ को भी जब अपनी आवाज जनता तक पहुँचाने की जरूरत महसूस होती है, तब चौथा स्तम्भ ही सहायक होता है‌। सब की सुरक्षा से लेकर भ्रष्टाचार,आतंकवाद तक को दर्शाने में चौथी दुनिया(मीडिया जगत)के लोग ही कार्यरत हैं, वो भी बगैर सुरक्षा के।
आज पत्रकार साथियों को जो यह सुरक्षा और संवर्द्धन की जरुरत है, याद रखें, कल वह सबसे बड़ी मांग साबित होगी।
अक्सर देखने में आया है कि जिस देश में भ्रष्टाचार और असमानताएं जितना ज्यादा होंगी, मीडिया वहाँ उतना ही शोषित और प्रताड़ित नजर आएगा।
पूरे कोरोनाकाल में देश में पत्रकार साथियों ने अपना बलिदान देकर जनता तक खबरें पहुँचाई, लेकिन बदले में क्या मिला ? यह सबको दिख रहा है।
आज जो राष्ट्रीय स्तर के बड़े संगठन,न्यूज चैनल,अखबार और डिजीटल मीडिया हाऊस हैं, ये इन गंभीर और चिंताजनक विषयों पर बिल्कुल मौन हैं। पत्रकारों की हत्या से लेकर प्रताड़ना तक के बावजूद ये मूकदर्शक बने रहते हैं। इतना ही नहीं जनहित के मुद्दों पर स्वतः संज्ञान लेने वाले संगठन,मानवाधिकार आयोग,उच्च न्यायालय और अन्य सर्वोच्च संस्थाएं भी मीडिया पर खबर चलने तक मौन धारण कर लेती हैं।
उन्होंने कहा कि
मीडिया की स्वतंत्रता और सुरक्षा ही किसी देश में लोकतंत्र की स्वस्थता का पैमाना होता है। अतः केंद्र सरकार की ही जिम्मेदारी है कि वह पूरे देश में महिला सुरक्षा कानून और एससी-एसटी कानून की तरह ही विशेष रूप से पत्रकार सुरक्षा कानून भी लागू करे।
इस कानून को लागू करवाने हेतु बाकायदा रिटायर जज,वरिष्ठ पत्रकार,रिटायर आईपीएस,रिटायर आईएएस और पत्रकार संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर एक राष्ट्रीय स्तर की कमिटी बनाकर प्रधानमंत्री और कानून मंत्री को सौंपे जिसे विशेष परिस्थिति में राष्ट्रपति की मंजूरी लेकर देश भर में लागू कर दिया जाए।
आज देश भर में जो हत्याएं,फर्जी मामले और पत्रकार साथियों के शोषण हो रहें हैं उसे देखने के लिए तत्काल सभी राज्यों में पत्रकार आयोग का भी गठन होना चाहिए।
आज पत्रकार को कोई दलाल,कोई चाटुकार और कोई बिकाऊ बोल रहा है लेकिन बिक तो उसके हाऊस का मालिक गया है। किसी को राज्यसभा, तो किसी को संसद पहुंचने की ललक है।तो किसी को टेंडर, किसी को विज्ञापन, तो किसी को विधानसभा का टिकट पाने की लालसा ने लालची बना दिया है। इससे पत्रकारिता कलंकित हो रही है।
इतिहास गवाह है कि जिस धंधे में चोरी और लालच की लत लग जाए, वह धंधा हमेशा बदनाम हुआ है। उसी तरह तो मीडिया भी देशभक्ति,जुनून और क्रांति से हटकर एक ऐसे उद्योग के रुप में विकसित होता जा रहा है, जिसका उद्देश्य देशभक्ति नहीं धन-संपत्ति है।
यह सर्वविदित है कि कुछ चैनल और अखबारों के मालिकों ने विज्ञापन पाने और निजहित साधने के लिए पत्रकारिता की मर्यादाओं को तार-तार कर के रख दिया है। ऐसी परिस्थितियों में ईमानदार पत्रकारिता को बचाना है और लोकतंत्र को स्वस्थ बनाना है, तो कलम के सिपाहियों की सुरक्षा और संवर्द्धन दोनों ही जरुरी है।जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन तभी सार्थक होगा, जब मीडिया उस जनता की बुलंद आवाज बनेगी।
इसे समझने की जरूरत है कि अर्णव गोस्वामी के लिए ही देश भर में क्यों कुछ संगठन,पत्रकार और कुछ चैनल अनोखी मुहिम चला रहे थे?
कभी पत्रकार सुरक्षा कानून और पत्रकार स्वास्थ्य बीमा पर वो मुहिम क्यों नहीं चली?