दुनिया की तीसरी सबसे ऊँची अर्ध-नारीश्वर शिव स्वरूप का चार-दिवसीय प्राण-प्रतिष्ठा का शुभारंभ

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दुनिया की तीसरी सबसे ऊँची अर्ध-नारीश्वर शिव स्वरूप का चार-दिवसीय प्राण-प्रतिष्ठा का शुभारंभ

बिहार के ऐतिहासिक तीर्थस्थल राजगीर से महज़ 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ज्येष्ठीवन गाँव, जिसे आज की साधारण भाषा में जेठियन के नाम से जाना जाता है। चारों तरफ़ खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा यह गाँव प्रकृति की अद्भुत सुंदरता समेटे हुए है।

भगवान का कल्याणकारी स्वरूप है अर्ध-नारीश्वर
भगवान के कल्याणकारी स्वरूप अर्ध-नारीश्वर की प्राण- प्रतिष्ठा का शुभारंभ आज भव्य कलश यात्रा के साथ शुरू हो गया। भीषण गर्मी के बावजूद भी लोगों की उत्साह में जरा भी कमी देखने को नहीं मिल रही है। तपते धूप में महिलाएँ सर पर कलश लेकर नंगे पाँव भगवान के दरबार की ओर बढ़े जा रहे हैं। भगवान शिव के जयकारे से पूरा इलाक़ा गूंज उठा है। भक्तों के जयकरों के साथ पहाड़ों से टकराकर वापस आते आवाज़ ऐसे प्रतीत हो रहे हैं जैसे भगवान का आशीष भक्तों के ऊपर बरस रहा हो। प्राण प्रतिष्ठा से संबंधित आयोजन के बारे में पूछे जाने पर ग्रामीणों ने बताया की गाँव के प्राकृतिक और धार्मिक प्रभाव के कारण ही यहाँ के लोगों के मन में ज़िले के सबसे ऊँचे भगवान अर्ध-नारीश्वर मंदिर निर्माण का विचार आया। जो हमारी संस्कृति और समृद्धि का परिचायक होगा। मंदिर निर्माण और दुनिया के तीसरे सबसे ऊँचे अर्ध-नारीश्वर स्वरूप की प्राण- प्रतिष्ठा को लेकर ग्रामीण काफ़ी उत्साहित हैं। पूरे बिहार से इस आयोजन में सहयोग मिल रहा है जो ग्रामीणों में एक नई ऊर्जा का संचारवाहक साबित हो रहा है।

भगवान शिव ने क्यों धारण किया था अर्ध-नारीश्वर रूप

भगवान शिव ने विविध कल्पो में असंख्य अवतार लिए उन्ही में से एक अवतार हैं अर्धनारीश्वर अवतार हैं। भगवान शिव की पूजा अर्चना सदियों से हो रही है लेकिन इस बात को बहुत कम लोग ही जानते हैं कि शिव का एक और रूप है जो है अर्धनारीश्वर। स्त्री-पुरुष की समानता का पर्याय है अर्धनारीश्वर। शिवपुराण के अनुसार सृष्टि के आदि में प्रजा की वृद्धि न होने पर ब्रह्माजी उस दु:ख से दुखी हो उठे उनके मन में कई सवाल उठने लगे, तब उन्होंने मैथुनी सृष्टि उत्पन्न करने का संकल्प किया। परन्तु भगवान शिव की कृपा के बिना ये सम्भव नहीं था। तब ब्रह्माजी ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया। ब्रह्माजी के कठोर तप के प्रभाव से भगवान शिव ब्रह्माजी के समक्ष अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रकट हुए। शिवजी ने कहा- हे वत्स ! मैं तुम्हारे तप से प्रसन्न हूँ और तुम्हे तुम्हारा अभीष्ट फल प्रदान करता हूँ। यह कहकर भगवान शिव ने अपने शरीर से अर्धनारीश्वर स्वरूप को अलग कर दिया। उसके बाद ब्रह्माजी ने उनकी उपासना की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शक्ति ने अपनी भृकुटि के मध्य से अपने ही समान कांति वाली एक अन्य शक्ति की सृष्टि की जिसने दक्ष के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस प्रकार शिव देवी शम्भु के शरीर में प्रविष्ट हो गई और तभी से इस संसार में स्त्री की रचना हुई।
अर्धनारीश्वर अवतार लेकर भगवान शंकर ने यह संदेश दिया है कि समाज के कल्याण के लिए स्त्री और पुरुष दोनों ही एक दुसरे के पूरक हैं। तथा परिवार में महिलाओं को भी पुरुषों के समान ही आदर व प्रतिष्ठा मिले।
हालाँकि धार्मिक आयोजनों को लेकर जेठीयन पूर्व से ही प्रसिद्ध रहा है। अभी कुछ वर्ष पहले ही धार्मिक यज्ञ अनुष्ठान का आयोजन किया गया था जिसमें ग्रामीणों समेत दूर दराज के लोग भी भक्ति भाव के साथ सहभागी रहे थे। जेठीयन का दुर्गा पूजा पूरे गया ज़िले में प्रसिद्ध है । दस दिवसीय दुर्गा पूजा में गाँव के बाहर रहनेवाले लगभग सभी लोगों का प्रवास जेठीयन ही रहता है। दसों दिन पूरा गाँव भक्तिकाल में डूब जाता है। दुर्गा पूजा में होने वाले चार दिवसीय धार्मिक नाट्य मंचन को देखने दूर दूर से लोग आते हैं। विजयदशमी के दिन होनेवाले कुश्ती प्रतियोगिता तो पूरे इलाक़े के लोगों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण रहता है। जिसमें आसपास के पहलवानों की सक्रिय भागीदारी रहती है।

भगवान बुद्ध का ज्ञान-मार्ग रहा है जेठीयन
जेठियन भारत के वर्तमान बिहार स्थित राजगीर शहर के पास स्थित एक छोटा सा गाँव है। प्राचीन समय में, इसे लतीवाना, या पाम ग्रोव के नाम से जाना जाता था। 7 वीं शताब्दी में जेठीयन जयसेना के साधना हेतू प्रभावशाली आसन का साक्षी रहा है, जो प्रसिद्ध संत थे। मशहूर चीनी यात्री ह्यूएन त्सांग ने भी भारत में अपने प्रवास के दो मुख्य साल जयसेना के शिष्य के रूप में पढ़ते हुए यहीं बिताए। इसके अलावा जेठियन में भगवान बुद्ध पहली बार राजा बिम्बीसार से मिले थे। वास्तव में भगवान बुद्ध और राजा बिम्बीसार के मिलन के पीछे एक छोटी सी कहानी है। बौद्ध धर्म के अनुसार जब भगवान बुद्ध ज्ञान की खोज में भटक रहे थे और राजगीर में समय बिताने के बाद बोधगया गये, जहां उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। ज्ञान प्राप्ति के बाद करीब 2600 वर्ष पूर्व वापस जेठियन मार्ग से ही पैदल राजगीर के लिए प्रस्थान किया था। राजा बिम्बिसार भगवान बुद्ध को इसी मार्ग से स्वागत करते हुए वेणुवन ले आये थे, जो राजा विम्बिसार का रॉयल गार्डेन हुआ करता था। विम्बिसार ने भगवान बुद्ध को वेणुवन दान में दे दिया था।इसी उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष जेठियन मार्ग पर धम्मयात्रा होती है। इसमें कई बौद्ध देशों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। इस बार भी नव नालन्दा महाविहार द्वारा यात्रा का आयोजन किया गया, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण कम संख्या में लोग जुटे। श्रीलंका, बंगलादेश, लद्दाख आदि जगहों के ही बौद्ध धर्मावलंबी ही इस बार यात्रा में शामिल हो सके। इस मार्ग का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। मान्यता है कि महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण भी पांडवों के साथ जेठियन आये थे। राजगीर में महाभारत काल से जुड़े कई पौराणिक स्थल भी इसकी पुष्टि करते हैं । इस लिहाज से जेठियन मार्ग के प्रति हिन्दू धर्मावलंबियों की भी गहरी आस्था है।

धार्मिक संस्कृति और समृद्धि प्राकृतिक सांदर्य की ख़ान है जेठीयन
राजगीर की पंच पहाड़ियों की तलहटि्टयों और हरे – भरे जंगलों के बीच जेठियन मार्ग को बौद्ध धर्म में बौद्ध मार्ग के नाम से भी जाना जाता है । जेठियन गांव से राजगीर तक की कुल दूरी 14 किलोमीटर है। राजगीर में पर्यटन की संभावनाएं असीम हैं । उनमें यह जेठियन वैली भी एक है । खासकर बौद्ध अनुयायियों के लिए यह विशेष स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।
हालाँकि जेठीयन में भगवान बुद्ध समेत कई और मंदिर पूर्व से ही विद्यमान हैं। जेठीयन की विशेषता की बात करें तो यहाँ पुराने दौर में भी जब कृषि को आधुनिकता का दौर माना जाता था तब यहाँ कृषि संबंधित समुचित व्यवस्था उपलब्ध थी। मगध की राजधानी से सटे होने और भगवान बुद्ध का ज्ञान मार्ग होने के कारण जेठीयन को भी इसका भरपूर लाभ मिला। यहाँ की मिट्टी में अनाज के रूप में समृद्धि की उपज हमेशा से होती रही है। धार्मिक संस्कार और प्रभुत्व से सामर्थ्यवान यह गाँव क्षेत्र का समृद्ध गाँव माना जाता है। एक समय था की जेठीयन में समृद्धशाली लोग हाथी पाला करते थे । और हाथियों की सवारी कर आसपास के क्षेत्रों में भ्रमण किया करते थे।