चैती छठ पूजा के तीसरे दिन डूबते सूर्य को व्रती ने दी अर्घ्य
अमरेन्द्र कुमार
गया । लोक आस्था का चार दिवसीय चैती छठ पूजा अनुष्ठान के तीसरे दिन सोमवार को व्रती डूबते सूर्य को अर्ध्य देकर संध्या बेला का पूजन की। गया शहर के सभी जगहों पर चैती छठ पूजा हर्षोउल्लास के साथ मनाया जा रहा है। छठ गीत से सारा वातावरण छठ मय हो गया है। सूर्य अस्त होने से पहले व्रती अपने स्वजन के साथ निकटतम नदी घाट, तलाव, पोखर, कुआ के पास पहुंचकर स्नान कर पूजा की। व्रती अस्त होते सूर्य देव को अर्ध्य दी। कई छठ घाट पर मोटर पम्प के जरिये पानी पहुंचाया गया। कई अन्य घाटों पर अर्ध देने के लिए मेले जैसा दृश्य दिखाई पड़ा। जहां छठ व्रतियों ने पवित्र जल में खड़े होकर भगवान की आराधना में लीन होकर भगवान सूर्य को नमन किए। घाटों पर अर्ध्य अर्पित करने के बाद हवन भी किया गया। जिससे संपूर्ण नदी तट होम हवन से सुवासित हो गया। छठ व्रतियों ने नदी किनारे बने प्राचीन मंदिरों में भी पूजा अर्चना की। छठी मैया और भगवान भास्कर की आराधना करते हुए छठ व्रतियों ने अपने संतान और परिवार के सुख और समृद्धि की प्रार्थना की। केलवा के पात पर उगलन सुरूज देव……कांचहि बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाय….जैसे लोकगीतों के बीच शुद्धता एवं पवित्रता के साथ नदी छठ घाटों पर व्रतियों ने डूबते सूर्य को अर्घ्य प्रदान किए। कुछ छठ व्रतियों ने अपने घरों की छतों पर भगवान भास्कर को छठव्रतियो ने नेम निष्ठा के साथ घर पर ही फल, फूल नारियल, पान, सुपारी, चावल का लड्डू, ठेकुआ, ईख, सहित कई अन्य पूजन सामग्री से सूर्य को अर्घ्य देकर संतान के सुख और समृद्धि की मंगल कामना की। नदी में छठ की छटा से अनुपम दृश्य देखने को मिला। इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार सुनील सौरभ ने छठ की महिमा का बखान करते हुए कहा कि छठ पर्व प्रकृति और साक्षात भगवान भास्कर की आराधना का अनुपम लोक पर्व है। इस पर्व में लोक संस्कृति, लोक गाथा और लोक भाषा के संरक्षण पर जोर दिया गया है। छठ गीतों के गायन का जो प्राकृतिक लय है, उसे सुनने में अच्छा लगता है। इस पर्व में भारत की वैदिक आर्य संस्कृति की एक छोटी सी झलक दिखलाई पड़ती है। ये एकमात्र भारत का ऐसा पर्व है, जो वैदिक काल से चलता रहा है। बिहारियों का सबसे बड़ा छठ पर्व बिहार की संस्कृति बन चुका है। गांव में छठ घाट पर छठ व्रतियों ने अस्त होते सूर्य देव को अर्ध्य दी।