भगवान श्रीराम जनआस्था के प्रतीक, उनका राजनीतिकरण अनुचित : सुबोधकांत सहाय
रांची। पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने कहा है कि भगवान श्री राम जनआस्था के प्रतीक हैं। उनके नाम पर राजनीतिकरण किया जाना अनुचित है। उन्होंने कहा कि जब वे देश के गृहमंत्री और सूचना प्रसारण मंत्री थे, तब उन्होंने उस आंदोलन के दौरान दोनों पक्षों के बीच समन्वय कायम करने में अहम भूमिका निभाई थी। इस संबंध में उन्होंने तत्कालीन कई प्रधानमंत्रियों (राजीव गांधी, चंद्रशेखर, वीपी सिंह व पीवी नरसिंह राव) की सरकारों के कार्यकाल में इस संबंध में किए गए प्रयासों का जिक्र करते हुए कहा कि बाबरी मस्जिद ढांचे का टूटना एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी। उनका कहना है कि यह घटना नहीं भी होती तो विभिन्न पक्षों के बीच बातचीत के जरिए रास्ता निकल सकता था। श्री सहाय उस दौर को याद करते हुए कहते हैं कि मुसलिम संप्रदाय में भी बहुत से लोग इस पक्ष में थे कि राम का मंदिर बने और वहीं बने जहां उनका जन्म हुआ था।
श्री सहाय ने कहा कि राम मंदिर के लिए भूमि पूजन हो रहा है, इसका स्वागत करना चाहिए। लेकिन भगवान श्रीराम को लेकर इसे राजनीति का विषय नहीं बनाना चाहिए। सरकार का काम धर्मस्थलों का संचालन करना नहीं होता। यह जिम्मेदारी ट्रस्ट के लोगों के हाथ में रहने देना चाहिए। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक हैं। उन्हें सिर्फ उनकी आस्था का प्रतीक रहने देना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है। इसके धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को बनाए रखना सबों का कर्तव्य है। किसी भी राजनीतिक दल को इसे वोटों की राजनीति का माध्यम नहीं बनाना चाहिए।