“राम नाम सत्य है” के नारे के साथ मुसलमानों ने दिया इंसानियत का परिचय , हिंदू शव को दिया कंधा और किया अंतिम संस्कार ।
इमामगंज के रानीगंज में मृतक का शव रहा पड़ा, परिजन शव नहीं छु रहे थे, मुस्लिमों ने अर्थी को कंधा देकर किया अंतिम संस्कार।
अमरेन्द्र कुमार सिंह (गया)
जहां कोरोना वायरस को लेकर दुनिया भर में जंग जारी है तो वहीं देश में भी लोगों में कोरोना वायरस का डर साफतौर पर देखा जा सकता है। लोग जीते जी ही नहीं मरने के बाद भी कोरोना संक्रमण के डर से पास नहीं आ रहे हैं। आलम ये है कि मौत के बाद शव को कंधा देने के लिए चार लोग तक सामने नहीं आ रहे हैं। ऐसा ही एक मामला गया जिले के इमामगंज प्रखंड अंतर्गत रानीगंज पंचायत के तेतरिया गांव से सामने आया है। जहां जारी कोरोना संक्रमण के बीच मुस्लिम समाज के कुछ लोगों ने हिंदू महिला की अर्थी को कंधा दिया और उनका अंतिम संस्कार भी करवाया। वहीं लोगों का कहना है कि ये हिंदु- मुस्लिम की एकता की मिसाल है। राम नाम सत्य है… यह कथन हिंदू समाज में अंतिम संस्कार के समय अर्थी ले जाने के दौरान कहा जाता है लेकिन यह देखा गया कि इसमें सभी मुस्लिम युवक हैं जो ‘राम नाम सत्य’ बोल रहे थे। बताया जा रहा है कि मरने वाली महिला के पहचान 58 वर्षीय प्रभावती देवी पति दिग्विजय प्रसाद के रूप में किया गया। इस संबंध मगध ट्रेडर्स के प्रोपराइटर सह भाजपा के सामाजिक कार्यकर्ता अवधेश प्रसाद और मो. शारीरिक ने बताया कि रानीगंज पंचायत के तेतरिया गांव की रहने वाली एक महिला कुछ दिनों से वह बीमार चल रहे थी। जो उन्हें रानीगंज के एक निजी अस्पताल में इलाज चल रहा था। अचानक शुक्रवार को उनकी तबीयत बिगड़ने लगी तो इसे देख वहां के डॉक्टरों ने महिला को कोरोना रिपोर्ट जांच करवाने की सलाह दी। जब महिला को उनके परिजनों के द्वारा इमामगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में ले जाकर कोरोना की जांच की गई तो उसका रिपोर्ट नेगेटिव आया। इसके बाद उस महिला को उनके परिजनों ने घर लेकर चले गए जहां उसे घर ले जाने के दौरान घर पहुंचने से पहले ही मौत हो गई। वहीं परिजनों को मन में आशंका लगा कि उसे कोरोना संक्रमण होने के कारण ही मौत हुई है। जिसके कारण डरे सहमे परिजनों ने मृतक के शव को हाथ नहीं लगा रहे थे और उस शव को गाड़ी पर ही छोड़ दिए। शव दोपहर से लेकर रात 8 बजे तक उसी तरह गाड़ी पर पड़ा रहा। जब मुस्लिम समाज के लोगों को इस बात की जानकारी मिली तो वे परिवारवालों को दिलासा देने पहुंचे। उस शव को खुद उन्होंने अपने हाथों से गाड़ी से उतारकर निवारी पर सुलाया गया। साथ ही उन्होंने गांव से बॉस काटकर मृतक की अर्थी बनवाई। तब जाकर के यह सब देख उनके पीछे-पीछे मृतक के पती बुजुर्ग दिग्विजय प्रसाद, पुत्र निर्णाय कुमार और बिकास आगे आए। इसके बाद मृतक के पार्थिव शरीर को उनके दोनों पुत्र एवं मुस्लिम समाज के युवाओं और बुजुर्गों ने कंधा देकर श्मशान तक पहुंचाया। इस दौरान रास्ते में राम नाम सत्य भी बोला और श्मशान में जाकर बाकायदा हिंदू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार किया गया। वहीं इसे लेकर मृतक के पुत्र निर्णाय कुमार और विकास ने बताया कि मो. रफीक, मो. कलामी, मो. बारीक, मो. लड्डन और मो. शारीरिक जी सही अन्य मुस्लिम समाज के लोगों ने उसका सहयोग किया और यह हमारे समाज की एकता के लिए अच्छी बात है। उधर दूसरी तरफ पड़ोसी मो. रफीक ने बताया कि हम दोनों समुदाय के लोगों को समाज में एक दूसरे के साथ रहना चाहिए और धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। वहीं मो. शारीरिक ने बताया कि समाज के पिछले कुछ समय से समाज में हिंदू-मुस्लिम के बीच बैर वाले सियासी बयान सामने आये हैं लेकिन इन तस्वीरों से साफ है कि भारतीय संस्कृति में गंगा-जमुना की तहजीब अभी भी शामिल है। हिंदू व्यक्ति की अर्थी को कंधा देने को मुस्लिम समाज के लोग इसे अपना फर्ज भी बता रहे हैं। उनका कहना है वह भारतवासी हैं और किसी से भेदभाव नहीं मानते हैं।