कूष्मांडा माता की भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है
(25 सितंबर, शारदीय नवरात्र के चौथे दिन माता कूष्माण्डा की आराधना पर विशेष)

शारदीय नवरात्र पर मां दुर्गा अपने नौ स्वरूपों के माध्यम से भक्तों की समस्त बाधाएं और कष्टों को दूर करने के लिए आती हैं । माता के नौ विविध स्वरूपों की अपनी अपनी अलग विशेषताएं हैं। जब भक्त की भक्ति बहुत सघन हो जाती है, तब भक्त इसे अनुभव कर पाते हैं । माता के इन स्वरूपों की विशेषताओं की तुलना किसी भी अन्य देवी देवता से नहीं की जा सकती। माता के अवतरण की कथा अद्भुत और बेमिसाल है । नवरात्र पर जहां एक ओर भक्त को माता से मिलने की प्रबल अभिलाषा रहती है, तो दूसरी ओर माता को भी अपने भक्तों को प्यार दुलार देने की प्रबल अभिलाषा रहती है। नवरात्र पर भक्तों और माता दुर्गा के मिलन का एक अद्भुत संजोग देखा जाता है। नवरात्र पर माता के भक्त गण कई कष्टों को सहकार नवरात्र का अनुष्ठान करते हैं । अनुष्ठान की पूर्णाहुति पर भक्तों द्वारा नौ कुंवारी कन्याओं को माता के समान आदर, श्रृंगार, प्रसाद और दक्षिण प्रदान किया जाता है। यह प्रथा संपूर्ण देश में की प्रचलित है। इस प्रथा के पीछे हमारे ऋषि मुनियों का एक ही उद्देश्य निहित है कि विपरीत परिस्थितियों में भी महिला शक्ति का अनादर न किया जाए।
नवरात्र के चौथे दिन माता कूष्मांडा की पूजा अर्चना की जाती है । देवी पुराण के अनुसार माता कूष्मांडा की पूजा अर्चना से भक्तों के सभी रोग - कष्ट दूर हो जाते हैं। माता कूष्मांडा की भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। माता की उपासना मनुष्य को सहज भाव से करनी चाहिए। माता कूष्मांडा की उपासना भवसागर से पार उतारने के लिए सर्वाधिक सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है । माता कूष्मांडा की उपासना मनुष्य को आंधियों - व्याधियों से सर्वथा विमुख करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली होती है। अतः अपनी लौकिक - परलौकिक उन्नति चाहने वालों को इनकी उपासना में सदैव तत्पर रहनी चाहिए ।
माता कुष्मांडा बहुत ही दयालु और कृपालु हैं। भक्तों की अत्यल्प भक्ति से ही माता प्रसन्न हो जाती हैं । इसलिए माता के भक्तों को मां की भक्ति के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए। घर में विराजमान माता जिसने हम सबों को जन्म दिया है, उनका अनादर कभी नहीं करनी चाहिए। घर की माता का अनादर कर मां दुर्गा की उपासना कभी भी फलदाई नहीं हो सकती है। बल्कि माता दुर्गा का कोप भाजन से कोई बचा नहीं सकता है।
माता का नाम माता कूष्मांडा क्यों पड़ा ? यह भक्तों को जानना चाहिए। माता कूष्मांडा का नाम कूष्मांडा इसलिए पड़ा था कि जब सृष्टि में कुछ भी नहीं था, तब भी आदि शक्ति माता दुर्गा का अस्तित्व था। अर्थात सृष्टि निर्माण से पूर्व अगर कोई शक्ति थी, तो वह आदि स्वरूपा माता दुर्गा की ही शक्ति थी। आदि स्वरूपा दुर्गा माता पूरी सृष्टि को खुद में समाए थी । इसलिए इस संपूर्ण ब्रह्मांड के विषय में कहा जाता है कि यह ब्रह्मांड अनंत काल से चलता आ रहा है और अनंत काल तक रहेगा। इस ब्रह्मांड की खोज में दुनिया भर के वैज्ञानिक लगे हुए हैं । ब्रह्मांड की खोज में ब्रह्मांड की रहस्य की गुत्थियां और भी उलझती चली जा रही हैं। कूष्मांडा के ही कर कमलों द्वारा इस ब्रह्मांड की रचना हुई थी। देवी पुराण में वर्णन है कि एक दिन माता के मन मस्तिष्क में इस ब्रह्मांड को रचना करने का विचार उत्पन्न हुआ था । तभी उन्हें हल्की हंसी आ गई थी। इस मंद हल्की हंसी से ब्रह्मांड उत्पन्न हो गया था। इसलिए माता को कूष्मांडा कहा जाता है।
माता के नामकरण पर हमारे धर्म ग्रंथो में एक कथा और भी प्रचलित है की माता कुष्मांडा को कुम्हड़े की बाली सर्वाधिक प्रिय है । माता कुष्मांडा को कुम्हड़े की बलि सबसे प्रिय होने के कारण ही माता को कूष्मांडा कहा जाता है। इस नामकरण का अर्थ यह है कि स्वयं में विद्यमान कुरीतियों का माता श्री चरणों में एक संकल्प के साथ त्याग कर बलि देना है। इस इस रूप में समझने की जरूरत है कि हम सब नवरात्र के नौ दिनों में एक-एक कर अपनी समस्त बुराइयों को त्याग कर दें ।
माता कूष्मांडा अष्टभुजाधारी नाम से भी जानी जाती हैं। माता कूष्मांडा के आठ हाथों में क्रमशः कमंडलु, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृत कलश, चक्र तथा गदा हैं, वही आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप की माला है । माता कूष्मांडा सिंह पर सवार होकर भक्तों को दर्शन दे रही हैं। कूष्माण्डा माता ने विविध अस्त्रों के माध्यम से महिषासुर का सहित राक्षसों का नाश किया था । माता पापियों को मिटाने के लिए अपने हाथों में विविध प्रकार के अस्त्र रखती हैं । वही दूसरी और माता के एक हाथ में कमंडलु है,जिसमें संजीवनी जल है। भक्तों को यह चाहिए कि अपनी भक्ति से माता का यह संजीवनी जल प्राप्त कर सदा सदा के लिए इस आवागमन के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष गामी बनें । माता का एक हाथ भक्तों आशीर्वाद देने के लिए उद्धत है। भक्तों को चाहिए कि इस संसार में समस्त सुखों को भोगते हुए हमेशा ध्यान बनी रहे।
देवी पुराण के अनुसार माता कूष्मांडा का निवास स्थान सूरज मंडल के भीतर के लोक में है। सूरज मंडल लोक में निवास कर सकने की क्षमता माता कूष्मांडा में ही है। सूर्य एक ऐसा जलता हुआ ग्रह है, जिसके लाखों मील में दूर तक रहने की क्षमता किसी में नहीं है। माता ऐसी प्रचंड ताप में बहुत ही प्रसन्नता के साथ भक्तों को आशीर्वाद देती रहती है। आगे उल्लेख है कि सूर्य लोक में निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल माता कुष्मांडा में ही निहित है। जो भी भक्त माता कूष्मांडा के इस स्वरूप को ध्यान में रखकर उनकी पूजा अर्चना करते हैं, उनमें सूर्य के समान तेज उत्पन्न हो जाता है। जिसे भक्त अपने ही जीवन में अनुभव कर सकते हैं। इसके साथ ही दुर्गा उपासकों को यह जानना चाहिए कि संसार में जितनी भी शक्तियां हैं, सारी शक्तियां माता की छाया ही हैं। संसार के सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की कृपा से है।
माता कूष्मांडा के शरीर की कांति और प्रभा सूर्य के समान देदीप्यमान है। इनके तेज की तुलना इन्हीं से की जा सकती है। कोई भी देवी देवता उनके तेज और प्रभाव का सामना नहीं कर सकते हैं । भक्तों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि दसों दिशाओं में जो भी तेज और प्रकाश हैं, सब माता की कूष्मांडा की ही कृपा से है। इसलिए भक्तों को कूष्मांडा माता की पूजा और ध्यान पूर्वक करनी चाहिए । माता के विविध नौ रूपों का पूजन में बड़े ही ध्यान पूर्वक करनी चाहिए । मन पवित्र हो। काया पवित्र हो। उसके साथ भी ध्यान पूरी तरह माता पर एकाग्र चित्त हो । तभी पूजा सार्थक होगी । अन्यथा बाहरी तौर पर पूजा दिखेगी किन्तु भीतर कोलाहल मचा रहेगा ।अर्थात आप जैसे मन से माता की उपासना करेंगे। आपको फल भी उसी रूप में प्राप्त होगा। इसलिए किसी भी मनुष्य को अपने बल, बुद्धि, यश और पद पर कदापि घमंड नहीं करना चाहिए ।यह सब माता की कृपा से ही है । यह तेज माता द्वारा प्राप्त हुआ है । यह तेज सत्कर्म की और खर्च करें । इसके पीछे उद्देश्य यह है भक्तों को अपने तेज पर कदापि घमंड नहीं करना चाहिए।
नवरात्र के चौथे दिन माता कूष्मांडा देवी की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन अनाहत चक्र में अवस्थित होता है। इसलिए इस दिन भक्तों को अत्यंत ही पवित्र और निर्मल मन से माता कूष्मांडा देवी के इस स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा उपासना करनी चाहिए । भक्तों को यह जानना चाहिए की माता कूष्मांडा अत्यल्प सेवा और भक्ति से भी प्रसन्न हो जाती है। यदि भक्ति सत्य हृदय से इनका शरणागत बन जाए तो उसे अत्यंत सुख वाता परम पद की प्राप्ति हो जाती है। देवी पुराण के अनुसार माता सदा अपने भक्तों पर कृपा बरसती रहती है। यह भक्तों की पात्रता पर निर्भर करता है कि वह माता की कृपा कैसे प्राप्त करता है।