बुद्ध बतातें हैं, जीवन का अर्थ कैसे सिद्ध होगा ?
(23 मई, बुद्ध पूर्णिमा, गौतम बुद्ध की जयंती पर विशेष)
आज से लगभग 25 सौ वर्ष पूर्व महात्मा गौतम बुद्ध का प्रादुर्भाव इस धरा पर हुआ । तब इस बालक का नाम गौतम बुद्ध न था । उनका कपिलवस्तु के एक राज घराना में सिद्धार्थ नामक राजकुमार के रूप में जन्म हुआ । राजकुमार से गौतम बुद्ध बनने तक की यात्रा ही वास्तव में जीवन की सच्ची यात्रा है। जिसे हम सब बोध यात्रा के नाम से जानते हैं । यहां यह बताना जरूरी समझता हूं कि सिद्धार्थ का अर्थ क्या है ? जीवन का अर्थ सिद्ध हो जाना । अभिलाषा पूरी होना । अब प्रश्न उठता है कि जीवन का अर्थ कैसे सिद्ध होगा ? इससे पूर्व यह भी जानना जरूरी हो जाता है कि जीवन का अर्थ क्या है ? महात्मा बुद्ध ने इन्हीं सवालों के हल को जानने , ढूंढने और समझने में अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया । राजकुमार सिद्धार्थ महाराजा शुद्धोधन के पुत्र थे। भावी महाराज थे । सर्वगुण संपन्न सुलक्षणा राजरानी यशोधरा पत्नी थी । राहुल के रूप में पुत्र । सभी तरह के ऐश्वर्य विद्यमान थे। इन सबों को त्यागकर वे जंगलों की ओर गमन कर गए थे। जहां न कोई महाराजा था। न राजरानी थी। न पुत्र था । न ही कोई एश्वर्य। आखिर इन जंगलों में क्या था ? जो सिद्धार्थ को महल का ऐश्वर्य छोड़ने पर विवश कर दिया । महल में सिद्धार्थ को जीवन का अर्थ सिद्ध नहीं हो पा रहा था । महल ,पत्नी ,पुत्र और ऐश्वर्य उनके जीवन के अर्थ को सिद्ध होने में रुकावट पैदा कर रहे थे । वे जीवन के कौन से अर्थ को जानना चाहते थे ? क्या सब कुछ त्याग के बाद ही यह संभव था ? राजकुमार सिद्धार्थ ने इन जंगलों की यात्रा और एकांकी में पहले खुद को जाना । वह कौन है ? इस धरा पर आने का उसका अभिप्राय क्या है ? जीवन का अर्थ क्या है ? जीवन का सत्य क्या है ? सिद्धार्थ से बुद्ध तक की यात्रा ही वास्तव में जीवन की सच्ची यात्रा है । जो व्यक्ति स्वयं को नहीं जान पाया , वह दूसरों को क्या रह दिखाएगा ? महात्मा बुद्ध ने स्पष्ट रूप से कहा था कि “अपना प्रकाश स्वयं बनो” । इस छोटी सी उक्ति में जीवन का गहरा अर्थ छुपा है ।
बुद्ध को जानने से पूर्व स्वयं को जानने की जरूरत है। किताबों में बुद्ध के उपदेश भरे पड़े हैं। सिर्फ पढ़ लेने मात्र से बुद्ध को जान नहीं पाएंगे । बुद्ध का जीवन सच का जीवन है । तप का जीवन है । बुद्ध का जीवन सांसारिकता से अलग स्वयं से एकाकर अर्थात स्वयं से साक्षात्कार का जीवन है । स्वयं के प्रकाश से प्रकाशित होने का अर्थ ही जीवन है। महलों और कोठियों के प्रकाश के बीच रहने वाले लोग क्या सचमुच प्रकाश से युक्त हैं ? बुद्ध कहते हैं कि “यह प्रकाश क्षणभंगुर है” । जिस तरह भूत का नाश हुआ , भविष्य का भी नाश होना है। भूत और भविष्य के मध्य जीवन है । इस जीवन को प्रकाशित बनाना ही जीवन का अर्थ है । बुद्ध के उपदेशों की भाषा बड़ी सरल और सहज है , जो सीधे दिल और बुद्धि को प्रभावित करती है । बुद्ध के उपदेशों में जिंदगी की राह के रहस्य छुपे हैं । जीवन के अर्थ को समझने से पहले जीवन को जानना जरूरी हो जाता है । आखिर यह जीवन क्या है ? जीवन की यात्रा सुख-दुख, हर्ष – विषाद ,उन्नति -अवन्नति के अनेक पड़ावों से गुजरती हुई संपन्न होती है । जीवन के स्वरूपों को भी अनेक तरीकों से समझा जा सकता है । मार्ग कोई भी हो , जीवन के सत्य को नजरअंदाज कर पाना संभव नहीं है। इस तथ्य को एक शाश्वत चिंतन मानकर चलना चाहिए कि जीवन एक संग्राम के समकक्ष है। इसके हर मोड़ पर हमें एक नूतन व अभिनव चुनौती का सामना करना पड़ता है । जो इसे इस रूप में स्वीकार करते हैं ,वे अपने जीवन को एक आशीर्वाद व अवसर में परिवर्तित कर लेते हैं । शेष के पास पछताने के अलावा दूसरा कोई मार्ग शेष नहीं रह जाता है । जो जीवन को एक चुनौती मानकर जीते हैं । उनके लिए यह जीवन उनकी कर्मभूमि बन जाती है । वे फिर इसके हर उतार-चढ़ाव पर पैनी दृष्टि रखते हैं । और इसे जागरूकता के साथ, सचेत होकर जीते हैं । उनके लिए यह जीवन एक अवसर बन जाता है । जिसका सही उपयोग उन्हें प्रगति के शिखर पर ले जाता है । इस अवसर को सौभाग्य में बदलने वाले अपने बाद आने वालों के लिए एक मिसाल बन जाते हैं । और सदा सराहे जाते हैं। इसके विपरीत जीवन को एक स्वप्न की तरह जीने वाले व बेहोशी में जीने वाले बिना किसी रणनीति या योजना के जीवन जीते दिखाई पड़ते हैं । और स्वयं व अन्य के लिए एक दुख , कष्ट से भरा हुआ , निराशा से भरे जीवन की स्मृतियां छोड़कर जाते हैं ।इसलिए जीवन को एक चुनौतीपूर्ण अवसर मानते हुए सतर्क व सचेत होकर जीवन जीने की आवश्यकता है , ताकि हमारा जीवन हमारे लिए एक सौभाग्य का कारण बन सके ।विशाद व हताशा का नहीं।
बुद्ध हमें वर्तमान में जीवन जीने की बात बताते हैं । भूत और भविष्य के परिणामों से मुक्त वर्तमान में यात्रा की बात कहते हैं । बुद्ध के विचारों में कहीं रत्ती भर भी हताशा के स्वर नहीं है। अंधकार से प्रकाश की ओर जाना ही बुद्धत्व की प्राप्ति की राह है । इस बुद्धत्व की शर्त है कि प्रकाश कहीं और से लाने की जरूरत नहीं है । स्वयं के प्रकाश से प्रकाशमान बनने की जरूरत है । भूख लगने पर अगर दूसरा कोई भरपेट भोजन कर ले तो क्या मेरी भूख मिट पाएगी ? कदापि नहीं । स्वयं के भूख को मिटाने के लिए स्वयं को खाना जरूरी है । बुद्ध एक विचार है । जो हमें सत्य से साक्षात्कार की राह दिखाती है। बुद्ध की दृष्टि किसी वर्ग विशेष के लिए नहीं है । अपितु समग्र जगत वासियों के लिए है । यह दृष्टि हमें किसी धर्म और पंथ में बांधती नहीं है। बल्कि उससे निकल कर एक अभिनव व नूतन प्रकाश की ओर इशारा करती है । बुद्ध के विचार धर्म और पंथ के बंधे बंधाए परंपरागत मार्ग से दूर जाकर जीवन को एक नए नजरिए से परखने देखने की राह प्रदान करती है। बुद्ध के विचार किसी धर्म और पंथ के खिलाफ भी नहीं है । बुद्ध के विचार एक बंद कमरा की कहानी नहीं है , बल्कि जीवन का यथार्थ है । बुद्ध के उपदेशों का भाव है कि जीवन में सत्य बहुत मिलेंगे । किताबों और धर्म ग्रंथों में सत्य की कई बातें मिलेंगे । क्या इसे आप अपना सत्य कह पाएंगे ? यह तो उन लोगों के सत्य हैं, जो उन्होंने ढूंढा । तुम्हारा सच तो तुम्हें ही ढूंढना होगा । अगर तुम सचमुच सत्य को ढूंढना चाहते हो तो यह कार्य तुम्हें ही करना होगा । यही विचार बुद्ध को औरों से अलग करता है । यही कारण है कि लोग सत्कर्म करने की बजाय तीर्थ यात्राओं के द्वारा ईश्वर की प्राप्ति करना चाहते हैं । यहां यह समझना जरूरी है कि सत्कर्म और तीर्थ यात्रा दोनों में सबसे महत्वपूर्ण कौन है ? जीवन भर दुष्कर्म करते रहे और जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर जमकर तीर्थ यात्राएं कर ली ।क्या इस तीर्थयात्रा से हमारे पाप मिट पाएंगे ? कदापि नहीं । मानवीय जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कर्म है सत्कर्म । यह सत्कर्म ही जीवन का सत्य है । दूसरों को कष्ट पहुंचाना हमारी अज्ञानता और सत् से दूरी बढ़ाने जैसा है । दूसरों पर दया, करुणा करना, प्रेम करना, दूसरों की खुशी से खुद खुश होना आदि सत्कर्म से हम-सब सत्य के निकट पहुंचते हैं । सत् कोई तिलस्म नहीं । बल्कि स्वयं के यथार्थ से परिचित होना जैसा है । जो मनुष्य को मनुष्यता की ओर प्रेरित करें । भेदभाव और जात पात से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करें । यही बुद्ध का सत्य है । बुद्ध कहते हैं कि “मेरा सत्य ,यह मेरा सत्य है ।तुम्हें अपना सत्य स्वयं ढूंढना होगा। बुद्ध के विचारों में सत्य की खोज की निरंतरता सदैव बनी रहेगी। हर व्यक्ति को स्वयं के प्रकाश से प्रकाशमान होना होगा। ह यही उसका सत्य होगा ।सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध की ओर बढ़ने का अर्थ है मनुष्य अपना स्वामी स्वयं हैं । आप ही अपनी गति है । आप ही अपना दीप बनो । हर मनुष्य के अंदर एक बुद्ध विराजमान हैं ।जब तक स्वयं को जागृत करने की इच्छा नहीं होगी । आसपास लाखों प्रज्वलित दीप क्यों रखे हों। स्वयं को जागृत नहीं किया जा सकता । स्वयं को जागृत करने के लिए स्वयं को जागना होगा । यही जीवन का सत्य और यथार्थ है।