विपरीत परिस्थितियों में भी दयालुता को जीवित रखें - विजय केसरी 

संगम ने 'विश्व दयालुता दिवस' पर गोष्ठी का आयोजन किया

विपरीत परिस्थितियों में भी दयालुता को जीवित रखें - विजय केसरी 

'विश्व दयालुता दिवस' पर स्थानीय स्वर्ण जयंती पार्क में आध्यात्मिक और वैचारिक संस्था सागर भक्ति संगम के तत्वाधान में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया।  इस अवसर पर संगम के सभी सदस्यों ने  दयालुता को जीवन के अंतिम क्षणों तक आत्मसात रखने का संकल्प लिया । गोष्ठी की      अध्यक्षता संगम के संयोजक विजय केसरी ने एवं संचालन ब्रजनंदन प्रसाद ने किया। गोष्ठी का शुभारंभ विश्व कल्याण की कामना प्रार्थना व गायन से हुआ। 
   गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए संगम के संयोजक विजय केसरी ने कहा कि विपरीत परिस्थितियों में भी दयालुता के भाव को जीवित रखें । आज के बदले सामाजिक परिदृश्य  में हर व्यक्ति को दयालुता के भाव को बनाए रखने की जरूरत है । दयालुता मनुष्य की मनुष्यता की जीवनी शक्ति है। यह भाव  हम सबों को एक दूसरे के परस्पर सहयोग की सीख प्रदान करता है।
  शिक्षाविद ब्रजनंदन प्रसाद ने कहा कि  दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान, तुलसी दया न छांड़िए, जब लग घट में प्राण। अर्थात्- तुलसी दास जी कहते हैं, कि धर्म का मूल भाव ही दया है, इसलिए मनुष्य को कभी दया नहीं त्यागनी चाहिए।
 कवि गोपी कृष्ण सहाय ने कहा कि जितने भी महापुरुष इस धरा पर अवतरित हुए, सभी ने दया के मूल मंत्र को अपने जीवन में अंगीकार कर लोगों को दया की सीख दी । आज दुनिया चांद पर जरू पहुंच गई है, लेकिन अपने मूल  स्वभाव से दयालुता को  कम करती चली जा रही है । यह बेहद चिंता की बात है।  इसलिए विश्व के हर मनुष्य को दयालुता के भाव को जीवित रखने की जरूरत है।
  समाजसेवी सह व्यवसायी सतीश होर्रा ने कहा कि दयालुता मनुष्य को महान बना देता है । इस भाव का कभी भी त्याग नहीं करना चाहिए।  विश्व के हर धर्म ग्रंथो में दया - करुणा के भाव को बहुत ही प्रतिष्ठा के साथ स्थापित किया गया है । सभी धर्म ग्रंथो में दया की महता पर विस्तार विवेचना की गई है।  इसलिए हर व्यक्ति को दयालुता का  कभी भी त्याग नहीं करना  चाहिए।
 समाजसेवी सह व्यवसायी सुरेंद्र गुप्ता 'पप्पू' ने कहा कि किसी भी जीव जंतु पर दया कर देखें, खुद को कितना सुकून मिलता है।  वहीं किसी पर क्रोध कर देखें, खुद मन कितना अशांत हो जाता है।  अब यह बात हर एक व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह जीवन में शांति  अथवा अशांति चाहता है।
 इन वक्ताओं के अलावा अजीत कुमार गुप्ता, उमेश केसरी, शंभू शरण सिन्हा, अखिलेश सिंह, अशोक राणा, मनीष होर्रा, सुरेश मिस्त्री, अशोक राणा, इंद्रलाल सोनी, उषा सहाय, कृष्ण कुमार गुप्ता, मिथुन राणा आदि ने भी अपने-अपने विचार रखें।