अंतरिम बजट : आम लोगों को कितना लाभ मिल पाएगा ?
(1 फरवरी, केंद्र सरकार के आने वाले 'अंतरिम बजट' पर विमर्श)
1 फरवरी को नरेन्द्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का अंतिम अंतरिम बजट आना है। उम्मीद की जा रही है कि यह बजट अपने पिछले 9 बजटों की तुलना में विशेष राहत देने वाला साबित होगा। चूंकि इस बार देश में लोकसभा का चुनाव होना है। इसलिए देशवासी यह उम्मीद लगाए बैठे हैं कि इस अंतरिम बजट से उन्हें कुछ विशेष राहत मिलेगी। केंद्रीय बजट का सीधा प्रभाव देशवासियों के रोजमर्रा के वस्तुओं पर पड़ता है। उन्हें वस्तुओं पर कितनी राहत दी जाती है, पर होता है। देश के मध्यम और उच्च आयकर दाताओं को यह उम्मीद होती है कि उन्हें आयकर में कितनी छूट दी जाती है। देश में मध्यम वर्गीय लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। इस वर्ग के लोगों के कंधों पर घर के बजट के साथ देश के बजट का सीधा संबंध होता है। अगर बजट में कोई विशेष राहत दी जाती है, तब इस वर्ग के लोगों के लिए विशेष खुशी की बात होती है। सीनियर सिटीजन और सुपर सीनियर सिटीजन को इस अंतरिम बजट से विशेष राहत मिलने की उम्मीद लगाई जा रही है। देशभर में इनकी संख्या 10 से 12 फ़ीसदी के आसपास है। वहीं देश के पढ़े लिखे नौजवानों को भी यह आशा है कि इस अंतरिम बजट के प्रावधान से उनके लिए रोजगार के कितने अवसर खुल पाएंगे। इसके साथ यह भी सवाल खड़े हो रहे हैं कि कहीं यह ‘अंतरिम बजट’ बजट ही बनकर न रह जाए।
कई बड़े उद्योग भी बंद होने के कगार पर है
देश की अर्थव्यवस्था की प्रमुख कड़ी छोटे उद्योग, मध्यम उद्योग और बड़े उद्योग होते हैं। इन उधोगों को कितनी और कैसी राहत दी जा रही है। देश का रोजगार सर्वेक्षण बताता है कि इन उद्योगों ने देश की आधी से अधिक आबादी को रोजगार दे रखा है। यह एक बड़ी अच्छी खबर है। जबकि सच्चाई यह है कि देश के छोटे और मध्यम दर्जे के उद्योगों की हालत बहुत ही खराब है । हर साल हजारों की संख्या में छोटे और मध्यम उद्योग बंद हो रहे हैं। कई बड़े उद्योग भी बंद होने के कगार पर है। अब सवाल यह उठता है कि जिस उद्योग समूह ने देश की आधी से अधिक आबादी को रोजगार दे रखा है, इन उद्योगों के हालात इतने खराब क्यों है ? केंद्र सरकार को इस विषय पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है । बजट में कुछ ऐसा प्रावधान करने की जरूरत है ताकि छोटे और मध्यम दर्जें के उद्योगों के हालात सुधरें। अगर देश के उद्योग ही बीमार पड़ जाएंगे तब अर्थव्यवस्था ही चरमरा जाएगी। आज भारत जो विश्व की पांचवी बड़ी इकोनॉमी के रूप में सामने आया है। ऐसी स्थिति तक पहुंचाने में भारतीय उद्योगों का सबसे बड़ा हाथ हैं । वित्त मंत्री सीतारमण ने यह उम्मीद जताई है कि अगले वर्ष देश का विकास दर 7 फीसदी से ऊपर रहेगा। यह तभी संभव है, जब देश के उद्योग धंधे बेहतर ढंग से चले। ऐसी उम्मीद है कि 1 फरवरी को जारी होने वाले अंतरिम बजट के प्रावधानों से भारतीय उद्योग धंधों को एक नई ऊर्जा मिले।
2030 तक आर्थिक वृद्धि दर सात फ़ीसदी से काफी ऊपर
अंतरिम बजट से पूर्व वित्त मंत्रालय एक रिपोर्ट जारी किया है। इस रिपोर्ट में इस बात की उम्मीद जाहिर की गई है कि आने वाले सालों में भारत की आर्थिक वृद्धि दर सात फ़ीसदी से ठीक-ठाक ऊपर रह सकती है। रिपोर्ट के अनुसार साल 2030 तक आर्थिक वृद्धि दर सात फ़ीसदी से काफी ऊपर निकल सकती है। जिस रफ्तार से फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम हो रहा है। बैलेंस शीट मजबूत हो रहा है। देश तेजी से बढ़ रही डिजिटल बुनियादी संरचना के चलते संस्थागत दक्षता में सुधार और तकनीकी प्रगति को देखते हुए यह संभव लग रहा है। इन संस्थागत सुधारों से यह उम्मीद की जा सकती है कि इस बार के अंतरिम बजट में रोजमर्रा के उपभोग होने वाले वस्तुओं की कीमतें स्थिर बनी रहे, बजट में इस तरह के प्रावधान की उम्मीद है।
क्या होता है अंतरिम बजट ?
बजट पर चर्चा को आगे बढ़ाएं, इससे पूर्व यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर अंतरिम बजट क्या होता है ? भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 के तहत हर वित्तीय वर्ष की शुरुआत से पहले सरकार संसद में केंद्रीय बजट पेश करती है। बजट किसी वित्तीय वर्ष में होने वाली सरकार की आमदनी और खर्चों से जुड़ा दस्तावेज है। यह वित्तीय वर्ष हर साल 1 अप्रैल से शुरू होकर अगले साल 31 मार्च को समाप्त होता है। इस साल आम चुनाव होना हैं । इसलिए इस बार यह अंतरिम बजट होगा। इस बार सरकार जो बजट पेश करेगी वह सिर्फ नई सरकार के आने तक सरकारी खर्चों को पूरा करने के लिए होगा। आम चुनावों के बाद चुनी गई नई सरकार की ओर से जुलाई में वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए पूर्ण बजट पेश किया जाएगा।
अंतरिम बजट से नए रोजगार सृजन की उम्मीद
देश में महंगाई दर बीते 9 वर्षों के दरमियान सबसे ऊंचे मुकाम पर है। देश की आम जनता बढ़ती महंगाई से त्राहिमाम त्राहिमाम कर रही है। इस बढ़ती महंगाई से सबसे अधिक गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोग परेशान हैं। देश में जिनकी संख्या 25 से 30 करोड़ के आसपास है। वहीं मध्यम वर्गीय आय वाले लोग भी इस बढ़ती महंगाई से काफी त्रस्त हैं। जबकि भारत सरकार गरीबी रेखा के नीचे जीवन गुजार रहे लोगों को मुफ्त अनाज एवं अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ दे रही है। इन सरकारी योजनाओं का लाभ गरीबी रेखा के नीचे रह रहे लोगों को जरूर मिल रहा है। लेकिन अपने दैनंदिन जीवन में होने वाले रोजमर्रा की आवश्यकताओं के लिए उन्हें बाजार जाना ही पड़ता है । जहां बढ़ी महंगाई उसे परेशान कर ही देती है। मध्यम वर्गीय लोगों को उम्मीद है कि आने वाला यह अंतरिम बजट उनके घर के बजट को दुरुस्त कर देगा। देश में मध्यम वर्गीय लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। इस वर्ग के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि परिवार के एक दो लोग ही रोजगार से जुड़े होते हैं। शेष परिवार लोग इन पर ही आश्रित होते हैं । इस वर्ग के पास बेरोजगारों की सबसे लंबी सूची है। इस वर्ग को इस बजट से यह भी उम्मीद है कि बजट के प्रावधानों से देश में नए रोजगार का सृजन हो ताकि घर में बैठे बेरोजगार लोगों को रोजगार हासिल हो सके और घर का बजट दुरुस्त हो सके।
ग्यारह साल की लड़की भूख से मर गई थी
देशवासियों के बीच यह भी चर्चा होती रहती है कि भारत, विश्व की पांचवी सबसे बड़ी इकोनॉमी वाला देश बन चुका है। वहीं देश के प्रधानमंत्री ने कहा है कि ‘भारत 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनामिक में शामिल हो जाएगा और 2075 तक दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी वाला देश बन जाएगा’। ये बातें सुनने में बहुत ही अच्छी और मान बढ़ाने वाली लगती हैं। लेकिन जमीनी स्तर पर आर्थिक विकास दिखता क्यों नहीं है ? यह सबसे बड़ा सवाल है। एक और देश में बेरोजगारों की संख्या दिन प दिन बढ़ती चली जा रही है। एक मामूली सी चपरासी की नौकरी के लिए लाखों की संख्या में आवेदन पढ़ते हैं। जब देश के ऐसे आंतरिक हालात हैं । तब देश कैसे विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी बन गया है ? यह सवाल उठना लाजिमी है। कुछ वर्ष पूर्व झारखंड के सिमडेगा जिला अंतर्गत कारीमाटी ग्राम में संतोषी नाम की एक ग्यारह साल की लड़की भूख से मर गई थी। देश के लिए यह पहली घटना नहीं थी। बल्कि भूख से आए दिन इस तरह की दिल दहला देने वाली घटनाएं घटती ही रहती है । एक सर्वे बताता है कि आज भी देश में लाखों लोग भूखे पेट सो जाते हैं।
सत्ता का लाभ समाज के अंतिम आदमी तक पहुंचे : गांधी जी
अब सवाल यह उठता है कि भारत, विश्व की पांचवी सबसे बड़ी इकोनॉमी में शामिल हो चुका है, तब देश के आंतरिक हालात ऐसे क्यों है ? केंद्र की सरकार को देश में उठते इन सवालों पर गंभीरता पूर्वक विचार करने की जरूरत है। बजट में ऐसे प्रावधान होने चाहिए जिससे कि देश का कोई भी नागरिक भूख से ना मरे । देश का कोई भी नागरिक भूखे ना सोए । देश का कोई भी नागरिक कुपोषण का शिकार ना हो। सबों के लिए उचित भोजन की व्यवस्था हो। सबों के लिए घर हो । सबों को रोजगार हो। तभी देश का बजट कारगर हो सकता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देश की आजादी के बाद सत्ता पर काबिज सत्तासीनों से आग्रह पूर्वक या कहा था कि सत्ता का लाभ समाज के अंतिम आदमी तक पहुंचे । देश की आजादी के बाद हर वर्ष नए बजट नई उम्मीदों को लेकर आता है। लेकिन बजट जनता के बीच उम्मीदों पर कितना खरा उतरता है ? यह ज्वलंत मुद्दा है। बजट के माध्यम से केंद्र सरकार वाहवाही जरूर लूट ले जाती है। वोट में उसका लाभ भी उन्हें मिल जाता है। लेकिन बजट का जो लाभ आम जनता तक पहुंचना चाहिए, वह पहुंच पाता है अथवा नहीं ? यह सवाल खड़ा ही रह जाता है।
देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने एक जनसभा में कहा था कि ‘केंद्र से भेजा गया एक रुपया में से जनता तक पहुंचते-पहुंचते मात्र 15 पैसे बच जाता है’। भारत सरकार को अपने बजट को भ्रष्टाचार से मुक्त बनाने की जरूरत है। तभी इसका लाभ आम जनता तक पहुंच पाएगा। अन्यथा बजट, बजट ही बनकर रह जाएगा।