सुबोधकांत सहाय ने कृषि अध्यादेशों को बताया किसान विरोधी

15 बिन्दुओं पर उठाए सवाल

सुबोधकांत सहाय ने कृषि अध्यादेशों को बताया किसान विरोधी

रांची। पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुबोधकांत सहाय ने मोदी सरकार द्वारा पेश किए गए तीन किसान बिलों को किसान विरोधी और कॉरपोरेट समर्थक घोषित किया है। उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा और राज्यसभा से पारित कराए गए कृषि संबंधी अध्यादेश पूरी तरह से किसान विरोधी और जनविरोधी है इन अध्यादेश से किसानों का हित नहीं होने वाला है बल्कि किसानों की समस्याएं और अधिक बढ़ जाएगी और देश के किसान पूंजीपतियों की गिरफ्त में रहेंगे। उन्होंने मोदी सरकार से इन विधेयकों से संबंधित 15 सवाल पूछे हैं। साथ ही देशवासियों से भी यह प्रश्न पूछने की अपील की है।
श्री सहाय ने क्रमवार केन्द्र सरकार से प्रश्न किया है।

  1. अगर न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर सरकार की नीयत साफ है, तो मंडियों के बाहर होने वाली खरीद पर किसानों को इसकी गारंटी दिलवाने से क्यों इंकार किया जा रहा है?
  2. न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम खरीद पर प्रतिबंध लगाकर, किसानों को कम दर देने वाली निजी एजेंसी पर कानूनी कार्रवाई करने के प्रावधान की मांग को सरकार खारिज क्यों कर रही है?
  3. कोरोना संक्रमण काल के दौरान ही तीन कृषि कानूनों को लागू करने की मांग कहां से आई? ये मांग किसने की? सही मायने में किसानों ने या औद्योगिक घरानों ने?
  4. देश-प्रदेश के किसानों की मांग थी कि सरकार अपने वादे के मुताबिक स्वामीनाथन आयोग के सी2 फार्मूले के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य दे, लेकिन सरकार ठीक इसके विपरीत बिना न्यूनतम समर्थन मूल्य के प्रावधान के कानून ले आई। आखिर इन कानूनों की मांग किसने की?
  5. निजी एजेंसियों को अभी किसने रोका है, किसान को फसल के ऊंचे दर देने से? फिलहाल प्राइवेट एजेंसीज मंडियों में न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे पिट रही धान, कपास, मक्का, बाजरा और दूसरी फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य या उससे ज्यादा दर क्यों नहीं दे रहीं?
  6. उस राज्य का नाम बताएं जहां पर हरियाणा-पंजाब का किसान अपनी धान, गेहूं, चावल, गन्ना, कपास, सरसों, बाजरा की फसल बेचने जाएगा, जहां उसे हरियाणा-पंजाब से भी ज्यादा मूल्य मिल जाएगा?

7.. जमाखोरी पर प्रतिबंध हटाने का फायदा किसको होगा? किसान को, उपभोक्ता को या जमाखोर को?

  1. सरकार नए कानूनों के जरिए बिचौलियों को हटाने का दावा कर रही है, लेकिन किसान की फसल खरीदने या उससे अनुबंध करने वाली प्राइवेट एजेंसी, अडानी या अंबानी को सरकार किस श्रेणी में रखती है? उत्पादक, उपभोक्ता या बिचौलिया?
  2. जो व्यवस्था अब पूरे देश में लागू हो रही है, लगभग ऐसी व्यवस्था तो बिहार में 2006 से लागू है। तो बिहार के किसान इतना क्यों पिछड़ गए?
  3. बिहार या दूसरे राज्यों से हरियाणा में बीजेपी-जेजेपी सरकार के कार्यकाल के दौरान धान घोटाले के लिए सस्ते चावल मंगवाए जाते हैं। तो सरकार या कोई प्राइवेट एजेंसी किसानों को दूसरे राज्यों के मुकाबले मंहगा दर कैसे देगी?
  4. टैक्स के रूप में अगर मंडी की आमदनी बंद हो जाएगी तो मंडियां कितने दिन तक चल पाएंगी?
  5. क्या रेलवे, टेलीकॉम, बैंक, एयरलाइन, रोडवेज, बिजली महकमे की तरह घाटे में बोलकर मंडियों को भी निजी हाथों में नहीं सौंप दिया जाएगा?
  6. अगर खुले बाजार किसानों के लिए फायदेमंद हैं तो फिर “मेरी फसल मेरा ब्योरा” के जरिए क्लोज मार्केट करके दूसरे राज्यों की फसलों के लिए प्रदेश को पूरी तरह बंद करने का ड्रामा क्यों किया?
  7. अगर हरियाणा सरकार ने प्रदेश में तीन नए कानून लागू कर दिए हैं, तो फिर मुख्यमंत्री खट्टर किस आधार पर कह रहे हैं कि वह दूसरे राज्यों से हरियाणा में मक्का और बाजरा नहीं आने देंगे?
  8. अगर सरकार सरकारी खरीद को बनाए रखने का दावा कर रही है, तो इस साल सरकारी एजेंसी फूड कारपोरेशन ऑफ इंडिया की खरीद का बजट क्यों कम दिया?
    जिस तरह से सरकार सरकारी खरीद से हाथ खींच रही है, क्या इससे भविष्य में गरीबों के लिए जारी पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम में भी कटौती होगी?
    क्या राशन डिपो के माध्यम से जारी पब्लिक डिस्ट्रीब्युशन सिस्टम, ख़रीद प्रक्रिया के निजीकरण के बाद अडानी-अंबानी के स्टोर के माध्यम से प्राइवेट डिस्ट्रीब्युशन सिस्टम बनने जा रहा है?
    पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री सहाय ने कहा कि देश की 86 प्रतिशत आबादी को रोजी-रोटी देने वाले कृषि क्षेत्र के संबंध में इतना बड़ा फैसला लेने के पहले किसान संगठनों, मंडी संचालकों, विपक्षी दलों और अर्थशास्त्रियों के साथ विचार-विमर्श करना चाहिए था। 2014 के बाद मोदी जी के उर्वर मस्तिष्क से जितने भी फैसले निकले वे देश के लिए विनाशकारी साबित हुए। उन्होंने कहा कि कम से कम अब तो अपनी तुगलकशाही से बाज आना चाहिए। उन्होंने कहा कि जनता को यह समझ लेना चाहिए कि नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री नहीं,बल्कि अडानी-अंबानी के प्रधान सेवक हैं।