शब्दवीणा कर्नाटक प्रदेश समिति द्वारा मासिक काव्यगोष्ठी का हुआ आयोजन
शब्दवीणा कर्नाटक प्रदेश समिति द्वारा मासिक काव्यगोष्ठी का हुआ आयोजन

गया। राष्ट्रीय साहित्यिक-सह-सांस्कृतिक संस्था 'शब्दवीणा' की कर्नाटक प्रदेश समिति द्वारा प्रथम मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें शामिल शब्दवीणा कर्नाटक प्रदेश समिति के सभी पदाधिकारी, शब्दवीणा की राष्ट्रीय समिति, विभिन्न प्रदेश एवं जिला समितियों के रचनाकारों ने एक से बढ़कर एक स्वरचित कविताएँ पढ़ीं। काव्य गोष्ठी का संयोजन शब्दवीणा की संस्थापक-सह-राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. डॉ. रश्मि प्रियदर्शनी, कर्नाटक प्रदेश अध्यक्ष सुनीता सैनी गुड्डी एवं प्रदेश उपाध्यक्ष विजयेन्द्र सैनी के निर्देशन में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता शब्दवीणा विजयेन्द्र सैनी ने की तथा संचालन सुनीता सैनी ने किया। राष्ट्रीय अध्यक्ष ने शब्दवीणा कर्नाटक प्रदेश समिति द्वारा आयोजित प्रथम मासिक काव्यगोष्ठी के आयोजन को शब्दवीणा की अन्य प्रदेश तथा जिला समितियों के लिए अनुकरणीय बताते हुए अहिन्दी भाषी प्रदेशों में भी हिन्दी का परचम शान से लहराने हेतु शब्दवीणा परिवार के संकल्प को दुहराया। काव्यगोष्ठी में शब्दवीणा कर्नाटक प्रदेश अध्यक्ष सुनीता सैनी, प्रदेश उपाध्यक्ष विजयेन्द्र सैनी, प्रदेश सचिव आनंद दधीचि, प्रदेश संगठन मंत्री ब्रजेन्द्र मिश्र ज्ञासु, प्रदेश कोषाध्यक्ष पूनम शर्मा, प्रदेश साहित्य मंत्री निगम राज़ एवं प्रदेश प्रचार मंत्री संध्या निगम के अलावा शब्दवीणा महाराष्ट्र प्रदेश संरक्षक प्रो. डॉ. कनक लता तिवारी, उत्तर प्रदेश समिति से संस्कृत प्रवक्ता रमेश चंद्र, हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष अशोक कुमार जाखड़, बिहार के गया से जैनेन्द्र कुमार मालवीय, डॉ. रश्मि प्रियदर्शनी, डॉ रवि प्रकाश, पंकज मिश्र, बेगूसराय से गोविंद कुमार, नवादा से डॉ विनीता प्रिया एवं औरंगाबाद से जिला अध्यक्ष सुरेश विद्यार्थी शामिल हुए। सभी रचनाकारों ने प्रकृति, प्रेम, देशभक्ति, भारत के इतिहास, राजनीतिक परिवेश, मानवीय व्यवहार आदि विविध विषयों पर रचनाएँ पढ़ीं। कार्यक्रम का शुभारंभ शब्दवीणा कर्नाटक प्रदेश प्रचार मंत्री वंदना निगम द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ। डॉ. रश्मि प्रियदर्शनी ने प्रकृति के विविध रूपों को मुखरित करती अपनी रचना 'आज प्रातः नींद जब मेरी खुली' का सस्वर पाठ किया। गरमी की दाहकता को चित्रित करती डॉ रश्मि की कविता 'चहुँदिश गरमी ही गरमी' की 'लहक रही है धरती सारी, दहक रही ज्वाला-सी धूप। मन आकुल, तन व्याकुल, धरा सूर्य ने कैसा निर्दय रूप। सूखी नदियाँ, सूखे पोखर, सूख गये जीवों के प्राण। बन निर्मोही कैसे दिनकर मार रहा किरणों के बाण' पंक्तियों को खूब सराहना मिली।
काव्यगोष्ठी में सुनीता सैनी के गीत 'माँ की पायल' की 'घर आंगन में घूमती-फिरती, न्यारी लगती है। माँ की पायल बड़ी प्यारी लगती है' जैसी हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ सुन श्रोतागण भावुक हो उठे। पूनम शर्मा की 'सिर्फ बेटियाँ ही परायी नहीं होतीं, बेटे भी पराये होते हैं', निगम राज़ की 'मेरा ये ख़्वाब नया है, साथी बेताब नया है, प्यार मोहब्बत का दिल में सैलाब नया है', संध्या निगम की 'अब अर्चना का वक्त नहीं, वंदना का वक्त नहीं, बहादुरी से दुश्मनों का सामना करो', ब्रजेन्द्र मिश्र की 'गौरी में सामर्थ्य कहाँ था कि पृथ्वीराज को मारे! पृथ्वीराज तो अपने कुल के जयचंदों से हारे' पंक्तियों पर भी खूब वाहवाहियाँ लगीं। महाराष्ट्र प्रदेश संरक्षक डॉ. कनक लता तिवारी की बेहतरीन ग़जलों ने सभी का दिल जीत लिया। शब्दवीणा गया जिला अध्यक्ष जैनेन्द्र कुमार मालवीय ने प्रकृति पर रचित गीत की सुमधुर प्रस्तुति दी। कवि आनंद दधीचि एवं रमेश चंद्र की रचनाएँ भी अति सुंदर थीं। कार्यक्रम के समापन में कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कवि विजयेन्द्र सैनी ने काव्यगोष्ठी की समीक्षा की। काव्यगोष्ठी का सीधा प्रसारण शब्दवीणा केन्द्रीय पेज से किया गया, जिससे जुड़े पुरुषोत्तम तिवारी, अजीत अग्रवाल, पी. के. मोहन, हीरा लाल साव महावीर सिंह वीर, प्रो. सुबोध कुमार झा, प्रो सुनील कु. उपाध्याय, प्रो. शैलेन्द्र श्रीवास्तव सहित सभी दर्शकों ने रचनाकारों का उत्साहवर्द्धन किया।