अन्तर्मन रौशन करती ‘भगवद्गीता पद्य रूपांतरण’

गीता ही एक शास्त्र है, जिसे देवकीपुत्र भगवान ने अपने मुख से गायन किया है। श्री कृष्ण ही एक प्राप्त करने योग्य देव हैं।

अन्तर्मन रौशन करती ‘भगवद्गीता पद्य रूपांतरण’

विजय केसरी

भगवद्गीता के संदेश में मानव मन में उठते हर सवालों के जवाब अन्तर्निहित है। भगवद्गीता में जीवन का सार छुपा है । भगवद्गीता एक मात्र ऐसा धर्म ग्रंथ है, जिसका अनुवाद विश्व के कई प्रमुख भाषाओं में हुआ । विश्व के कई नामचीन विश्वविद्यालयों में भगवद्गीता की पढ़ाई होती है । विश्व भर में हजारों की संख्या में भगवद्गीता पर शोध कार्य चल रहे हैं । भगवद्गीता पर हर शोध कुछ न कुछ नए निष्कर्षों के साथ सामने उपस्थित होता रहता है । यह भगवद्गीता की विशेषता है। भगवद्गीता जितनी बार भी पढ़ी जाती है, भावार्थ नए रूपों में प्रकट होते रहते हैं। अंतर्मन को रोशनी से भर देती है, भगवद्गीता । पिछले दिनों प्रगतिशील प्रकाशन, नई दिल्ली से ‘भगवद्गीता सार पद्य रूपान्तरण’ नाम से भगवद्गीता पर एक नई पुस्तक का प्रकाशन हुआ। इस पुस्तक के लेखक हैं, विनोबा भावे विश्वविद्यालय, विभागाध्यक्ष अंग्रेजी से सेवानिवृत्त जाने-माने प्राध्यापक डॉ० जमुना प्रसाद अग्रवाल। इनके अंतर्गत अब तक लगभग एक दर्जन विद्यार्थी पीएचडी पूरी की। इस पुस्तक के अलावा कई अन्य पुस्तकें भी प्रकाशित हैं। देश की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में विभिन्न विषयों पर आलेख प्रकाशित होते रहते हैं। डॉ० जमुना प्रसाद अग्रवाल सहज, सरल, प्रकृति के व्यक्ति है। सेवानिवृत्ति के पश्चात भी लेखन,व्याख्यान और समाजिक कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते रहते हैं।
डॉ० जमुना प्रसाद अग्रवाल द्वारा लिखित ‘भगवद्गीता सार पद्य रूपांतरण’ की खासियत यह है कि हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में एक ही पुस्तक में प्रकाशित है। श्री मद भागवद्गीता पर देश के कई जाने-माने महापुरुषों ने भी अपनी कलम चलाई । भगवद्गीता पर ज्यादातर पुस्तकें गद्य में ही दर्ज हैं। बहुत कम पुस्तकें पद्य में लिखी गई हैं। डॉ० जमुना प्रसाद अग्रवाल ने भगवद्गीता का पद रूपांतरण कर सराहनीय पहल की है। डॉ० अग्रवाल अंग्रेजी के विद्वान हैं, भगवदगीता सार का अंग्रेजी में पद्य रूपांतरण कर अंग्रेजी के पाठकों को एक बेहतर तोहफा प्रदान किया है। इन्होंने गीता सार का पद्य रूपांतरण इतनी सरल शब्दों में की है कि पाठन प्रारंभ करने के साथ ही आगे और पढ़ने का मन हो उठाता है। अर्थात भगवद्गीता सार का हिंदी और अंग्रेजी दोनों पद्य रूपांतरणों में पठनीयता के भाव कूट-कूट कर भरे हुए हैं। डॉ० यमुना प्रसाद अग्रवाल ने प्रस्तुत पुस्तक के प्राक्कथन में दर्ज किया है कि ‘भगवद्गीता तो महासागर से भी ज्यादा गहरी है, इसमें जो जितनी गहराई में, जितनी लगन से गोता लगाएगा, वह उतना ही ज्ञान – मोती पाएगा। इसके गहरा, गहन और गंभीर श्री कृष्ण – अर्जुन संवाद पर इतना लिखा जा चुका है, इतना लिखा जा रहा है और इतना लिखा जाएगा कि विश्व के इस महान क्लासिक ग्रंथ पर मेरे समान अल्प ज्ञानी साधारण व्यक्ति अगर कुछ कहना भी चाहे तो वह सूर्य को दीपक दिखाना ही होगा’। डॉ० अग्रवाल की उपरोक्त बातों से उनकी सहजता और सरलता को समझा जा सकता है। उन्होंने भागवद्गीता की गहराई की बात कही है, जो भी पाठक मन की गहराई से भगवद्गीता का अध्ययन करेंगे, उन्हें ज्ञान रूपी मोती की प्राप्ति होगी। उन्हें भगवद्गीता सार के पद्य रूपांतरण लिखने की प्रेरणा कहां से मिली ? इस विषय पर डॉ० अग्रवाल ने दर्ज किया है कि 1965 में मगध विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में मुझे स्नातक की डिग्री के साथ भगवद्गीता सार की एक लघु प्रति लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने दी थी । तब से अब तक भगवद्गीता सार की वह प्रति उनके पास सुरक्षित है । यही प्रति भगवद्गीता सार पद्य रूपांतरण लिखने की प्रेरणा बनी। डॉ० अग्रवाल का मानना है कि भगवद्गीता सार में मानव मन में उठते हर सवालों का जवाब निहित है। बस ! इस गीता सार को मन से पढ़ने और अपने चरित्र में उतारने की जरूरत है। आज दुनिया भर में जो भी अशांति और घृणा के भाव विद्यमान हैं, यह सब इसलिए है कि हम सब ने इस मायावी दुनिया को ही सब कुछ मान लिया हैं । यही हमारी अशांति और दुःख के कारण है। भगवद्गीता हम सबों को इस दुःख से उबरने का मार्ग प्रशस्त करती हैं। जीवन क्या है ? मृत्यु क्या है ? जीवन से पूर्व हम कहां थे ? मृत्यु के बाद हम कहां जाएंगे ? जीवन मरण का अर्थ क्या है ? मोक्ष क्या है ? कर्म क्या है? पार्क क्या है ? पुण्य क्या है ? भगवद्गीता सार इन्हीं प्रश्नों के निवारण कर आगे बढ़ती चली जा रही है।
भगवद्गीता सार पद्य रूपांतरण में डॉ० यमुना प्रसाद अग्रवाल ने गीता क्या है ? इस प्रश्न पर उन्होंने ‘एक ही गीता एक ही कृष्ण’ के माध्यम से ‘गीता – माहात्म्य’ पर कुछ पंक्तियां दर्ज की हैं। ‘एकं शास्त्रं देवकीपुत्र गीतम्, एको देवो देवकीपुत्र एव,एको मंत्रस्तस्य नामानि यानी, कर्माष्येकं तस्य देवस्य सेवा’। अर्थात गीता ही एक शास्त्र है, जिसे देवकीपुत्र भगवान ने अपने मुख से गायन किया है। श्री कृष्ण ही एक प्राप्त करने योग्य देव हैं। उस गायन में एक ही सत्य बताया कि सिवाय आत्मा के कुछ भी शाश्वत नहीं है। गीता में एक ही मंत्र ओम् अक्षय परमात्मा का नाम बताया गया है, जिसका जप करना है। एक ही कर्म है, परमात्मा की सेवा। उपरोक्त बातों ने यह सिद्ध कर दिया है कि परमात्मा के नाम का जप करना ही मनुष्य के जीवन का श्रेष्ठ अध्यात्मिक कार्य है। परमात्मा की सेवा ही सर्वोत्तम कर्म की श्रेणी में रखा गया है। हम सबों को यह विचार करने की जरूरत है कि जो कर्म कर रहे हैं। उस कर्म से परमात्मा की सेवा कितनी हो रही है ? आज दुनिया आग के अंगारों बीच आ खड़ी हुई है। यूक्रेन – रूस युद्ध हम सबों के सामने हैं। सिर्फ अपने वर्चस्व को कायम रखने के लिए ना जाने कितने परमात्मा की संतानों की बलि चढ़ा दे रहे हैं । भगवद्गीता ऐसे कर्म से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है।
डॉ० यमुना प्रसाद अग्रवाल ने ‘गीता किसके लिए ?’ शीर्षक के माध्यम से कुछ पंक्तियों में अपनी बातों को इस प्रकार प्रस्तुत किया है । ‘परेशान हो जो राग द्वेष के उलझनों से/ जिसमें अपनी कमजोरियों का पूर्ण ज्ञान हो / उठ रहे हो अंदर मैं कौन हूं कि ज्वार – भाटें/ देव – दानव का भी संग्राम अंदर चल रहा हो / चाहता हो जो मुक्ति अपनी कमजोरियों से / सीखने अपनी राह पर गुरु खोज लेता हो /जानता हो पूछना सही प्रश्न सही जगहों पर/ जिसमें भक्ति, समर्पण, कृतज्ञता का भाव हो/ प्राप्त ज्ञान के अनुसार जानता हो जीना गीता / कर्म करता धर्म मान, कर्म फल की न हो चाहे।’ उपरोक्त पंक्तियों में डॉ० अग्रवाल ने गीता सार हो अपनी पतियों के माध्यम से और भी लघु बना दिया है। उन्होंने दर्ज किया है कि आज मनुष्य परेशान है। अपने राग द्वेष के उलझनों से। जिन्हें अपनी कमजोरियों का पूर्ण ज्ञान है। वही मन में चल रहे देव – दानव संग्राम में विजयी हो सकता है। साथ ही उन्होंने यह भी बड़ी विनम्रता के साथ अपनी पंक्तियों में निवेदन किया है कि जो मनुष्य कर्म को धर्म मान कर करता है, तथा कर्म फल की इच्छा ना रखता हो, सच्चे अर्थों में असली कर्मयोगी वही है।
‘भगवद्गीता सार पद्य रूपांतरण’ पुस्तक के प्रकाशन पर देश के जाने-माने कई मनीषियों ने अपनी ओर से शुभकामना प्रकट की है। महामंडलेश्वर स्वामी असंड्गानंद सरस्वती ने दर्ज किया है कि ‘विश्व में भागवत् गीता अद्भुत अद्वितीय आदरणीय ग्रंथ है। यह पवित्र ग्रंथ अनेक विशेषताओं से परिपूर्ण है। इसमें कर्म, ज्ञान, भक्ति तीनों का अद्भुत समन्वय है। मुख्य रूप से निष्काम – भगवद् अर्पण भाव से किए गए कर्मों के महत्व पर बल दिए गए हैं । फलांश एवं कर्तृत्व भाव त्यागकर किए गए कर्मों से व्यक्ति सहज भाव से ज्ञान का अधिकारी बनकर सहज मुक्त हो जाता है।
‘भगवद्गीता सार पद्य रूपांतरण’ में अठारह उप शीर्षकों के माध्यम से पुस्तक के लेखक डॉ० यमुना प्रसाद अग्रवाल ने गीता सार को पद्य रूप में अपनी बातों को बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। विषाद योग, सांख्य योग, कर्म योग, ज्ञान कर्म -सन्यास योग, कर्म सन्यास योग, ध्यान योग, ज्ञान – विज्ञान योग,अक्षर ब्रह्मयोग, राज विद्या योग राजगुहम् योग, विभूति योग, विश्वरूप दर्शन योग, भक्ति योग, क्षेत्र -क्षेत्रज्ञ विभाग योग, गुणत्रय विभाग योग, पुरुषोत्तम योग, देवासुर संम्पद् विभाग योग, श्रद्धा – त्रय विभाग योग, मोक्ष -सन्यास योग उपशीर्षक के माध्यम से डॉ० यमुना प्रसाद अग्रवाल ने गीता सार के संदेशों को बहुत ही भाव पूर्ण तरीके से गुंथा है। पुस्तक की सफलता के लिए मेरी ओर से ढेर सारी मंगलकामनाएं।