रक्षाबंधन पर भाइयों ने लिया रक्षा का संकल्प
गया । भाई-बहन के अटूट स्नेह का पर्व रक्षाबंधन परंपरागत रूप से हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया। हर वर्ष की तरह सावन पूर्णिमा की तिथि पर बहनों ने रक्षा सूत्र से भाइयों की कलाइयां सजाई ।रेशम की डोरी की धागे भले ही कच्चे हो लेकिन इसके पीछे का स्नेह अटूट और बेहद मजबूत होता है। बहन-भाई के प्यार का प्रतीक इस त्यौहार को लेकर घर-घर में व्यापक तैयारियां की गई थी। सुबह लोग स्नान कर मंदिरों में देवी-देवताओं की पूजा अर्चना किया। इसके उपरांत बहनों ने तिलक कर भाइयों की कलाई में रक्षा सूत्र बांधकर जन्म जन्म तक सुख-दुख में साथ देने का वचन भाइयों से लिया। वही बहनों को उपहार देकर भाइयों ने हमेशा साथ निभाने का वादा किया। इस दौरान मुंह मीठा करने का दौर भी जारी रहा। दोपहर बाद अधिकांश बहनों ने भाई की कलाई पर राखी सजाई और उपहार पाकर अपनों के साथ खुशियां मनाई। सुबह से ही इन्हीं भावनाओं के साथ तैयारी कर रहे बहनों ने भाइयों की हाथों में राखियां बांधने में मशगूल दिखी। छोटे-छोटे भाई-बहनों में पर्व को लेकर खासा उत्साह देखा गया। नए-नए कपड़ों में बच्चे और रंग-बिरंगे परिधानों में महिलाओं और युवतियों ने थाल सजाकर भाइयों के घर जाकर रक्षा सूत्र बांधी। कई बहनों ने अपने परिवार से दूर रहकर हमारी रक्षा कर रहे वीर सैनिकों की कलाइयों पर रक्षा सूत्र बांधकर प्रेम और अपनत्व दर्शाया। बहनों ने अपने बंदी भाइयों की कलाई पर प्राची सजाई और मिठाई खिलाकर सिर्फ आई की कामना की। हालांकि रक्षाबंधन और श्रावणी पर्व मनाए जाने को लेकर कई दिनों से असमंजस की स्थिति बनी हुई थी।कुछ लोगों ने बुधवार को श्रावणी पर्व मनाया तो कुछ लोगों ने गुरुवार को मनाया। सुबह शुभ मुहूर्त में रक्षाबंधन का पर्व मनाना शुरू हो गया। भारत में रक्षाबंधन को लेकर पौराणिक और ऐतिहासिक परंपरा रही है। कहा जाता है कि असुर देवता संग्राम में इंद्र को उनकी पत्नी इंद्राणी ने अभिमंत्रित रेशम का धागा बांधा था, जिसकी शक्ति से वे विजयी हुए। भगवान श्री कृष्ण को द्रौपदी द्वारा उनके घायल उंगली में साड़ी की पट्टी बांधने को भी रक्षाबंधन से जोड़कर देखा जाता है। रक्षाबंधन को लेकर राखी और मिठाइयों की खरीदारी के लिए ग्राहकों की भीड़ दुकानों पर देखी गई। शहर में रक्षाबंधन पर्व को लेकर चारों तरफ चहल-पहल दिखाई दी।