सरकारी अफ़सरों का तबादला ! पुरानी परम्परा है या इसके पीछे कोई गहरी सोच है -अभयानंद (पूर्व डी जी पी)
गंभीर प्रश्न है - सरकारी अफ़सरों का तबादला क्यों होता है? पुरानी परम्परा है? प्राकृतिक प्रक्रिया है? या इसके पीछे कोई गहरी सोच है? पूर्व डी जी अभयानंद बताते हैं की कैसे इसका दुरुपयोग होने लगे तो सर्वनाशी बन जाता है ?
संविधान में भी हर पॉंच साल पर आम चुनाव कराए जाने का प्रावधान है। ऐसा क्यों? अगर एक बार प्रतिनिधि चुन लिया गया तो उसे आजीवन रहने क्यों नहीं दिया जाता? तबादले की आवश्यकता होती ही क्यों है?
एक सरकारी पदाधिकारी जब किसी एक स्थान पर दो वर्षों से अधिक रह जाता है तो वह मानसिक रूप से आश्वस्त हो जाता है और स्वाभाविक रूप से निश्चिंत हो जाता है कि वह उस स्थान पर अनंत काल के लिए रहने वाला है। इस परिस्थिति में गलती पर गलती करता जाता है यह मान कर कि कोई अगला अफ़सर उस स्थान पर कभी नहीं आएगा जो उसकी गलतियों को उजागर कर सकेगा।
यह सोच घातक है। धीरे-धीरे यह सोच अहंकार का रूप ले लेती है। अगर प्रत्येक दो वर्षों में तबादले होते रहे तो गन्दगी को एक स्थान पर जमा होने का मौका नहीं मिलेगा।
कई अन्य लाभ भी हैं तबादलों के। एक माहौल में रहने पर जड़ता का बोध होता है। किसी भी समस्या पर नए ढंग से सोचने की शक्ति का ह्रास हो जाता है। अगर छोटे से लेकर बड़े पदाधिकारियों पर तबादले की नीति लागू होती है तो सरकार में काम कर रहे जन प्रतिनिधियों पर भी इस नीति को लागू होना चाहिए। उनका कार्यकाल भी 5 वर्षों से अधिक का नहीं होना चाहिए, नहीं तो घोटालों की शृंखला बनती जाएगी।
बहती नदी में काई नहीं जमती
अंग्रेज़ों ने एक स्वस्थ प्रशासनिक परम्परा बनाई थी जिसका नाम “निरीक्षण” था। IAS और IPS अफ़सरों से लगातार निरिक्षण करते रहने की अपेक्षा होती थी। यही कारण है कि पुलिस विभाग में वरीय पदनाम में इंस्पेक्टर शब्द रखा गया। समय के साथ यह परम्परा धराशायी हो गई।
नीतिगत रूप से तबादला बहुत अच्छा प्रशासनिक कदम है परन्तु अगर इसका दुरुपयोग होने लगे तो सर्वनाशी बन जाता है जैसा वर्तमान में दिख रहा है।