जब सोनिया गांधी नटवर सिंह के घर माफ़ी माँगने पहुँच गई थी.............
ईरान को तेल के बदले अनाज कांड को लेकर रिपोर्ट सामने आई थी। इसमें नटवर सिंह का नाम शामिल था। इसके बाद रिश्तों में खटास आ गई। जिसके कारण उन्हें 2005 में मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था।
देश के प्रमुख कांग्रेसी नेता और पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह का शनिवार की रात लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। वे 95 साल के थे। उन्होंने गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे कुछ हफ्तों से अस्पताल में भर्ती थे। उनका अंतिम संस्कार 12 अगस्त को लोधी रोड श्मशान घाट पर किया जाएगा।
गांधी परिवार के क़रीब रहे
अपने राजनीतिक करियर में कई अहम पदों पर रहने वाले नटवर सिंह के सोनिया गांधी और कांग्रेस पार्टी से रिश्ते कभी मधुर, तो कभी तल्ख रहे। कांग्रेस हाईकमान के करीबियों में हमेशा नटवर सिंह का नाम शुमार रहा। यही वजह है कि वे कांग्रेस के राजदार भी माने जाते थे। गांधी परिवार से करीबी ही उनकी सियासत में एंट्री की मजबूत वजह बनी। नौकरशाह से राजनीतिज्ञ तक का सफर एक जैसा नहीं रहा। पार्टी में रहे या फिर खुद को अलग किया, तब भी अपने कद के साथ समझौता नहीं किया।
1984 में मिला पद्म भूषण
1984 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। नटवर सिंह ने कई पुस्तकें और संस्मरण लिखे हैं। उनकी आत्मकथा 'वन लाइफ इज नॉट इनफ' काफी पॉपुलर है, जिसमें उन्होंने अपने जीवन और राजनीतिक अनुभवों के बारे में विस्तार से लिखा है।
राजस्थान के भरतपुर से चुनाव जीतकर राजनीति की शुरुआत
नटवर सिंह का प्रशासनिक सेवा का सफर 1953 में शुरू हुआ। जब वे भारतीय विदेश सेवा (IFS) के लिए चुने गए। उन्होंने कई अहम पदों पर अपनी सेवाएँ दी। वे पाकिस्तान, अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत रहे। इसके अलावा उन्होंने यूके, अमेरिका और चीन में भी सेवाएं दी। 1966 से 1971 तक वे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यालय से जुड़े रहे और उनके विशेष सहायक के रूप में काम किया।इस बीच पाकिस्तान में भारत के राजदूत भी थे। लेकिन फिर सियासत के प्रति रुचि और गांधी परिवार से नजदीकी के चलते उन्होंने नौकरी छोड़ दी।1984 में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। तब इंदिरा गांधी ने उन्हें राजस्थान के भरतपुर से चुनावी मैदान में उतारा और सफर का आगाज शानदार जीत से हुआ। बतौर सांसद सदन में पहुंचे।
1985 में बने केंद्रीय राज्य मंत्री
1985 में उन्होंने केंद्रीय राज्य मंत्री के रूप में इस्पात, कोयला और खान तथा कृषि विभाग की जिम्मेदारी संभाली। वह 1987 में न्यूयॉर्क में आयोजित निरस्त्रीकरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के अध्यक्ष चुने गए। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 42वें सत्र में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व भी किया था।
2005 में सोनिया गांधी से रिश्ते बिगड़ गये थे
जानकारों की मानें तो नटवर सिंह ही वही शख्स थे, जिन्होंने राजीव गांधी की मौत के बाद सोनिया गांधी को राजनीति में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के साथ उनका रिश्ता बहुत अच्छा था। 2004-05 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में विदेश मंत्री के तौर पर अपनी सेवाएँ दी, लेकिन जल्द ही उनके रिश्ते सोनिया गांधी से बिगड़ भी गए थे । वजह तेल के खेल नाम से सुर्खियों में रही। ईरान को तेल के बदले अनाज कांड को लेकर रिपोर्ट सामने आई। इसमें नटवर सिंह का नाम शामिल था। इसके बाद रिश्तों में खटास आ गई। जिसके कारण उन्हें 2005 में मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था।
कई किताबें लिखे
नटवर सिंह ने ‘द लिगेसी ऑफ नेहरू: ए मेमोरियल ट्रिब्यूट’ और ‘माई चाइना डायरी 1956-88’ सहित कई किताबें भी लिखीं। उन्होंने उनकी आत्मकथा ‘वन लाइफ इज नॉट इनफ’ में गांधी परिवार को लेकर कई दावे भी किए। जिस पर सियासी भूचाल आ गया। उन्होंने दावा किया था कि साल 2004 में जब लोकसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आए तो सोनिया गांधी ने राहुल की वजह से प्रधानमंत्री का पद नहीं संभाला। क्योंकि राहुल को डर था कि सोनिया के साथ भी इंदिरा और राजीव गांधी जैसी कोई अनहोनी न हो जाय।
सोनिया गांधी ने माफ़ी माँगी
बताते हैं कि नटवर सिंह की किताब के बाजार में आने से पहले सोनिया और प्रियंका गांधी उनके घर भी गई थीं, उनसे माफी मांगी थी। जब-जब नटवर सिंह उनकी आत्मकथा को लेकर सवाल किया जाता था तो वह इसे टाल दिया करते थे। उन्होंने कभी अपनी आत्मकथा में लिखी बातों पर सफाई नहीं दी।