प्रवासी मजदूरों की घर वापसी, सभी दावे हवा-हवाई,वसूले जा रहे भाड़े
सुविधाओं के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति,सिर्फ कहने को क्वारेंटाइन सेंटर
सुनील सौरभ की कलम से
गया : वैश्विक बीमारी कोरोना ने हर आम व खास को आज अपनी औकात का अहसास करा रहा है। फिर भी ऐसे में भी कुछ लोग हैं जो लोगों की सहायता करने की बजाय मौके का लाभ उठाने से बाज नहीं आ रहे हैं। इसमें सरकारी तंत्र भी शामिल है। दूसरे राज्यों से लौट रहे प्रवासी मजदूरों की मजबूरी का फायदा उठाने में गैर सरकारी से लेकर सरकारी लोग भी लगे हैं। विभिन्न राज्यों से स्पेशल ट्रेनों से अपने प्रदेश लौट रहे मजदूरों को ट्रेन किराया से लेकर खाना, पानी और अपने जिले ,प्रखंडों स्थित क्वारेंटाइन सेंटरों पर भेजने ,वहां 21 दिनों तक रहने की सभी व्यवस्था निःशुल्क करने की बात और घोषणा बिहार सरकार कर चुकी है। जब प्रवासी मजदूरों को लेकर स्पेशल ट्रेने नहीं आयी थी तो लोगों के लिए यह घोषणा अच्छी लगी थी। लेकिन जैसे ही प्रवासी मजदूरों का आना शुरू हुआ कि सरकारी व्यवस्था की पोल खुलनी शुरु हो गयी। पहले तो कहा गया कि मजदूरों को रेलवे का कोई किराया नही देना होगा। लेकिन ट्रेन पर चढ़ने से पूर्व ही दलालों ने टिकट पर प्रिंट से अधिक राशि लेकर टिकट दिया। रास्ते मे खाने- पीने की व्यवस्था थी। परन्तु अपने जिले में बसों से भेजने में नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। सिर्फ ड्राइवर-खलासी के सहारे अपने प्रखंड के क्वारेंटाइन सेंटर पर पहुँचने पर कुव्यवस्था का सामना करना पड़ रहा है । स्पेशल ट्रेनों से प्रतिदिन बिहार लौट रहे प्रवासी मजदूरों को घर लौटने की खुशी तो है ,वहीं घर पहुंच कर भी सरकार की घोषणा के मुताबिक क्वारेंटाइन सेंटर पर 21 दिनों तक कुव्यवस्था के बीच रहने को विवश हैं ।
7 मई 2020 को गुजरात से स्पेशल ट्रेन से गया पहुंचे प्रवासियों ने बताया कि घर लौटने के लिए गुजरात के वीरमगाम से पुलिस द्वारा पंजीकरण कराया,जहां उन सबों से सात-सात सौ रूपये लिए गए फिर टिकट मिला। 9 मई 2020 सूरत से स्पेशल ट्रेन से आये श्रमिकों ने बताया कि 675 रुपये के प्रिंट टिकट के 830 रुपये देने पड़े।
विभिन्न राज्यों से मजदूरों को ला रहे ट्रेन गया, दानापुर ,बरौनी, समस्तीपुर आदि स्थानों पर आ रहा है।वहां से बसों से जिला मुख्यालय भेजा जा रहा है, फिर वहां से प्रखंड मुख्यालय में भेजा जा रहा है। राज्य मुख्यालय या जिला मुख्यालय में तो क्वारेंटाइन सेंटर की स्थिति ठीक है लेकिन प्रखंडों या पंचायतों में जो क्वारेंटाइन सेंटर बनाये गए हैं, वहां बड़ी खराब स्थिति है। सबसे बड़ी समस्या शौचालय की है। क्वारेंटाइन में रखे गए मजदूरों को शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है, जिससे गांव वालों का कोपभाजन बनना पड़ता है। कई स्थानों से तो मजदूर भाग भी रहे हैं। नवादा जिले के सिरदला आदर्श इंटर विद्यालय स्थित क्वारेंटाइन सेंटर में अव्यवस्था से नाराज होकर करीब सौ प्रवासी मजदूर भाग गए। इससे पहले सभी ने जमकर हंगामा किया। गया जिले के मोहड़ा प्रखंड के गेहलौर पंचायत अंतर्गत ठाकुर राणा रणजीत उच्च विद्यालय बेला में बनाये गए क्वारेंटाइन सेंटर पर सूरत,मुम्बई, बनारस, केरल समेत कई स्थानों से आये और यहां रखे गए मजदूरों ने कुव्यवस्था के खिलाफ जमकर हंगामा किया। यहां 60 लोगो को रखा गया है,लेकिन सोने के लिए सिर्फ 20 बेड की व्यवस्था की गई है। गमछा बिछा कर लोग सोने को विवश हैं। एक व्यक्ति को बिच्छू ने डांक मार दिया था, जिससे अफरातफरी मच गया था।
गया जिले के डुमरिया प्रखंड के मैगरा में स्थित आई टी आई भवन में क़वारन्टीन किये गए प्रवासी मजदूरों ने कुव्यवस्था से नाराज होकर डुमरिया -इमामगंज सड़क को जाम कर दिया। लोगो ने बताया कि प्लास्टिक में खाना दिया जा रहा है । खाना का स्तर भी ठीक नहीं है। दाल के नाम पर पानी दिया जा रहा है। क्वारेंटाइन सेंटर पर प्रतिदिन संदिग्धों की जांच करनी है, परन्तु यहाँ जांच नही की जा रही है। गया जिले के टनकुप्पा के बी डी ओ ने स्वास्थ्य विभाग को लिखे पत्र में इस बात की जानकारी दी है। ऐसी बात नहीं है कि सिर्फ मगध के क्षेत्र में क्वारेंटाइन सेंटर में ही कुव्यवस्था की बात है बल्कि पूरे बिहार के ग्रामीण इलाकों में बनाये गए क्वारेंटाइन सेंटर की ऐसी ही स्थिति है। जिस रफ्तार से मजदूरों का बिहार आना हो रहा है, उससे तो क्वारेंटाइन सेन्टरों पर औऱ खराब स्थिति का सामना प्रवासी मजदूरों को करना पड़ सकता है। क्योंकि सभी सरकारी दावे हवा-हवाई है।