मौनी अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में स्नान से पाप नष्ट हो जाते हैं
(29 जनवरी, माघ 'मौनी अमावस्या' पर विशेष)
भारतवर्ष में मनाए जाने वाले विभिन्न पर्वों की खासियत यह है कि ये पर्व - त्योहार किसी न किसी खास आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उद्देश्य से जुड़े होते हैं। ताकि इन त्योहारों के माध्यम से लोगों के अंतर्मन में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना जागृत होती रहे। ऐसे हर पर्वों में अंतर्मन के जागरण का उद्देश्य निहित होता है। भारत में मनाए जाने वाले विभिन्न पर्वों में मौनीअमावस्या एक खास स्थान रखता है । मौन शब्द का अर्थ है, चुप रहना । चुप रहकर अंतर्मन के स्वर से साक्षात्कार करना। आज चारों ओर चीत्कार, हाहाकार और शोर ही स्वर सुनाई दे रहे हैं। ऐसे में इस शोर से खुद को अलग कर मौन होकर, मौन के नि:शब्द स्वर को सुनना ही वास्तविक मौन है। विचारणीय यह है कि शोर की अवस्था में हम किसी बात को ध्यानपूर्वक सुन ही नहीं सकते हैं। जब बातों को सुन ही नहीं सकते हैं, तब ऐसी बातों का हमारे जीवन में क्या अर्थ रह जाता है ? मनुष्य का सबसे श्रेष्ठ अवस्था मौन होती है। हम सब बाहरी तौर पर चुप रहने को ही मौन समझ लेते हैं। जबकि अध्यात्म कहता है कि अंतर्मन का मौन ही वास्तविक मौन की श्रेणी में आता है। अंतर्मन का मौन और मौन की अवस्था के नि:शब्द के स्वर को सुनना ही ईश्वर से साक्षात्कार करने का समान होता है। यही मौन की अवस्था मनुष्य को मोक्ष की ओर ले जाती है। इसी मोक्ष प्राप्ति के लिए ही मनुष्य का बार-बार इस धरा पर जन्म होता रहता है।
मौन होकर पार उत्तर जाने का अवसर हम सबों को मौन अमावस्या प्रदान करता है। बाहर का शोरगुल अथवा बाह्य क्रियाएं मनुष्य को मोह माया के बंधन में फंसाए रखता है। इस मोह माया के स्वर के बंधन से मुक्त होकर अंतर्मन के मौन के निःशब्द स्वर से उत्पन्न होती है, वास्तव में यही राह मनुष्य को इस भवसागर से पार ले जाती है । अमावस्या का पर्व इसी पवित्र उद्देश को लेकर सब सबों के बीच हर वर्ष माघ कृष्ण पक्ष में आती है। आध्यात्मिक गुरु सतगुरु ने कहा है कि अंग्रेजी शब्द 'साइलेंस' वास्तव में बहुत कुछ नहीं कहता है। संस्कृत भाषा में मौन के लिए कई शब्द हैं ।मौन और नि:शब्द दो महत्वपूर्ण हैं । मौन जैसा कि हम आमतौर पर जानते हैं कि मुखसे बोलते नहीं है। यह नि:शब्द बनाने का एक प्रयास है। नि:शब्द का अर्थ है, वह जो ध्वनि नहीं है। शरीर, मन और सभी सृष्टि से परे है । ध्वनि से परे का अर्थ ध्वनि की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि ध्वनि से परे है । मौन का अभ्यास करने और मौन हो जाने में अंतर है । अगर आप किसी चीज का अभ्यास कर रहे हैं, तो जाहिर है कि आप वह नहीं है ।सचेत रूप से मौन की आंकाक्षा करने से मौन हो जाने की संभावना है।
आगे अध्यात्म गुरु सतगुरु कहते हैं कि ध्वनि सतह की है । मौन अंतरात्मा का है । अंतरात्मा ध्वनि की पूर्ण अनुपस्थिति है । ध्वनि की अनुपस्थिति का अर्थ है, प्रतिध्वनि,जीवन, मृत्यु, सृजन की अनुपस्थिति। किसी के अनुभव में सृजन की अनुपस्थिति सृजन के स्रोत की विशाल उपस्थिति की ओर ले जाती है, तो एक ऐसा स्थान, सृजन से परे है। एक ऐसा आयाम जो जीवन और मृत्यु से परे है । उसे मौन या निशब्द कहा जाता है। कोई ऐसा नहीं कर सकता। कोई केवल यह बन सकता है। अगर मनुष्य को वास्तविक शांति चाहिए तो मौन की अवस्था ही उसे शांति प्रदान कर सकती है। मनुष्य शांति की तलाश में न जाने कहां-कहां नहीं भटकता रहता है । लेकिन वास्तविक शांति उसके अंतर्मन में ही निहित होती है। जिसे ढूंढने के लिए वह बाहरी संसार में न जाने कहां-कहां भटकता रहता है। आंखें बंद कर, मौन होकर, मौन के नि:शब्द स्वर को सुनना ही वास्तविक शांति है।
हमारे हिंदू धर्म ग्रंथो के अनुसार माघ मास की अमावस्या जिसे मौनी अमावस्या कहते हैं। यह योग पर आधारित महाव्रत है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन पवित्र संगम में देवताओं का निवास होता है। इसलिए इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस मास को भी कार्तिक के समान पुण्य मास कहा गया है। गंगा तट पर इसी कारण भक्त जन एक मास तक कुटी बनाकर गंगा स्नान व ध्यान करते है। यह ईश्वर की कृपा है कि 29 जनवरी को पड़ने वाला मौनी अमावस्या महाव्रत जगत के कल्याण के लिए उपस्थित हुआ है। इस बार मौनी अमावस्या का महत्व कई गुणा इसलिए बढ़ गया है कि 144 वर्षों बाद कुंभ स्नान के साथ मौनी अमावस्या महाव्रत करने का अवसर भी प्राप्त हो रहा है। आज लाखों नहीं करोड़ों की संख्या में लोग महाकुंभ का स्नान कर रहे हैं।
हमारे धर्म ग्रंथो में संगम में स्नान के संदर्भ में एक कथा का भी उल्लेख है कि जब सागर मंथन से भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए उस समय देवताओं एवं असुरों में अमृत कलश के लिए खींचा-तानी शुरू हो गयी इससे अमृत की कुछ बूंदें छलककर इलाहाबाद
हरिद्वार नासिक और उज्जैन में जा गिरी थीं। यही कारण है कि यहां की नदियों में स्नान करने पर अमृत स्नान का पुण्य प्राप्त होता है। यह तिथि अगर सोमवार के दिन पड़ती है तब इसका महत्व कई गुणा बढ़ जाता है। अगर सोमवार हो और साथ ही महाकुम्भ लगा हो तब इसका महत्व अनन्त गुणा हो जाता है। शास्त्रों में कहा गया है सत युग में जो पुण्य तप से मिलता है द्वापर में हरि भक्ति से, त्रेता में ज्ञान से, कलियुग में दान से, लेकिन माघ मास में संगम स्नान हर युग में अनंत पुण्यदायी होगा। इस तिथि को पवित्र नदियों में स्नान के पश्चात अपने सामर्थ के अनुसार अन्न, वस्त्र, धन, गौ, भूमि, तथा स्वर्ण जो भी आपकी इच्छा हो दान देना चाहिए। इस दिन तिल दान भी उत्तम कहा गया है। इस तिथि को मौनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है अर्थात मौन अमिवस्या। चूंकि इस व्रत में व्रत करने वाले को पूरे दिन मौन व्रत का पालन करना होता इसलिए यह योग पर आधारित व्रत कहलाता है। शास्त्रों में वर्णित भी है कि होंठों से ईश्वर का जाप करने से जितना पुण्य मिलता है, उससे कई गुणा अधिक पुण्य मन का मनका फेरकर हरि का नाम लेने से मिलता है। इसी तिथि को संतों की भांति चुप रहें तो उत्तम है। अगर संभव नहीं हो तो अपने मुख से कोई भी कटु शब्द न निकालें। इस तिथि को भगवान विष्णु और शिव जी दोनों की पूजा का विधान है। वास्तव में शिव और विष्णु दोनों एक ही हैं जो भक्तो के कल्याण हेतु दो स्वरूप धारण करते हैं इस बात का उल्लेख स्वयं भगवान ने किया है। इस दिन पीपल में आर्घ्य देकर परिक्रमा करें और दीप दान दें। इस दिन जिनके लिए व्रत करना संभव नहीं हो वह मीठा भोजन करें।
हमारे धर्म ग्रंथो की मान्यता है कि मौनी अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मौनी अमावस्या का महाव्रत हम सबों को पाप और पुण्य के भेद से परिचित भी करवाता है। यह महाव्रत हम सबों पाप से सदा दूर रहने का संदेश देता है । वहीं दूसरी ओर पुण्य का कोई भी अवसर न छोड़ने की सिख प्रदान करता है । मौन होकर पवित्र नदियों का स्नान का अर्थ यह है कि पाप कर्म का सदा सदा के लिए त्याग। इस त्याग के बाद भी अगर मनुष्य पाप कर्म से लिप्त होता है, तो वह दंड का अवश्य भाग होता है। हम सब मौन होकर कई प्रकार के झंझटों से खुद को दूर रख सकते हैं। जब जीवन में थोड़ी अशांति आ जाए तो प्रयोग के तौर पर एक दिन मौन रखकर देखिए, जीवन में एक नई अनुभूति का अनुभव होगा।