रक्षा बंधन पर्व  का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण की रक्षा हो

(19 अगस्त,सावन पूर्णिमा, रक्षाबंधन पर्व पर विशेष)

रक्षा बंधन पर्व  का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण की रक्षा हो

आज की बदली  पर्यावरणीय हालात को ध्यान में रखकर हम सबों को पर्यावरण   की रक्षा के लिए आगे आना चाहिए। पर्यावरण की रक्षा, 'रक्षा बंधन' पर्व का उद्देश्य बने।  इसलिए पर्यावरण की रक्षा के लिए पेड़ों को रक्षा सूत्र बांधकर  उसकी रक्षा का संकल्प लेना चाहिए।  भाई बहन का यह पर्व भारत सहित दुनिया  भर में बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । रक्षाबंधन पर्व में  बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधकर अपनी रक्षा की चाह रखती हैं। यह पर्व भाई बहन के रिश्ते को और भी मजबूत बनाती है। भाई बहन के रिश्ते पर आधारित यह एक अनूठा पर्व है।
 आज  इस उद्देश्य पूर्ण  पर्व पर समाज के हर भाई-बहनों  को पर्यावरण की रक्षा का संकल्प लेना चाहिए । धरती पर विराजमान पेड़  हम सबों को ऑक्सीजन देकर नया जीवन प्रदान करते हैं। विकास के नाम पर और खुद की जरूरतों के लिए जिस तरह पेड़   काटें जा रहे हैं , इससे संपूर्ण मानव जीवन पर बहुत ही बड़ा संकट उत्पन्न हो गया है। इसलिए संपूर्ण मानव जाति को  ऑक्सीजन देने वाले  पेड़ों को बचाना बहुत जरूरी है। 
   आज हम सबों  को यह विचार करना चाहिए कि पर्यावरण प्रदूषण के कारण मानव जीवन पर खतरा बढ़ता  चला जा रहा है। सांस से संबंधित बीमारियां पूरे वैश्विक स्तर पर बढ़ती चली जा रही है। हर वर्ष लाखों की संख्या में लोग पर्यावरण प्रदूषण के कारण असमय मर जाते हैं।  मरने वालों की संख्या हर साल बढ़ती चली जा रही है। यह मानव जाति के समक्ष एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ खड़ी हो गई  है।  सिर्फ और सिर्फ पर्यावरण प्रदूषण ही इसका मुख्य कारण है । आज पर्यावरण को बचाए रखने के लिए वैश्विक स्तर पर कई आंदोलन भी हो रहे हैं।  अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई प्रस्ताव भी पारित हो रहे हैं।  इन तमाम कोशिशें के बावजूद पर्यावरण प्रदुषण कम हो नहीं रहा है। यह बेहद चिंता की बात है।  इसलिए आज रक्षा बंधन जैसे पवित्र त्योहार पर हम सब पर्यावरण की रक्षा के लिए कम से कम एक पेड़  पर रक्षा सूत्र जरूर बांधें।  जिस तरह वैश्विक स्तर पर जनसंख्या बढ़ती चली जा रही है, साथ साथ मानव उपभोग की ज़रूरतें भी  बढ़ती चली जा रही हैं । जिस कारण जंगलों की बेहिसाब कटाई होती चली जा रही है।  शहरीकरण के  बढ़ते कदम और नए मार्गो के निर्माण ने जंगलों की  सूरत ही बिगाड़ कर रख दी है। वातावरण में  विषैले गैसों के बढ़ते स्तर और ऑक्सीजन के कम होते स्तर  पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पहले ही आगाह कर दिया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने  चेतावनी दी है कि पर्यावरण प्रदूषण उन्मूलन पर ध्यान नहीं दिया गया तो संपूर्ण मानव जीवन पर बहुत ही बड़ा खतरा उत्पन्न हो सकता है । इसलिए विश्व के हर देश को यह सुनिश्चित करना होगा कि पर्यावरण को प्रदूषण से कैसे कम से कम स्तर पर लाया जाए। पर्यावरण प्रदूषण के खतरे भारत के हर प्रान्तों में देखने को मिल रहे हैं।‌ इसकी चपेट में आने वाले रोगियों की जांच से चिकित्सकों ने स्पष्ट किया है कि पर्यावरण प्रदूषण के कारण ही ये बीमारियां उत्पन्न हुई हैं। खासकर दिल्ली, मुंबई, मद्रास, कोलकाता जैसे महानगरों में रहने वाले छोटे-छोटे बच्चों पर इसका बहुत ही बुरा असर दिख रहा है। 
   पर्यावरण प्रदूषण के कारण ही वैश्विक स्तर पर तापमान में वृद्धि हुई है।  फलस्वरुप अतिवृष्टि,  सुखाड़,भूस्खलन, पहाड़ों का गिरना आदि प्राकृतिक आपदा के रूप में देखने को मिल रही है। ये सारी आपदाएं मनुष्य जीवन को समाप्त करने के लिए प्रयाप्त हैं। इसलिए हम सबों को रक्षाबंधन जैसे पवित्र पर्व पर   यह संकल्प लेने की जरूरत है।   हम सब  पर्यावरण की रक्षा अपने-अपने स्तर पर  कैसे कर सकते हैं ? यह सिर्फ सरकार की जवाबदेही है, यह कहकर अपने दायित्व से बच नहीं सकते हैं । प्रकृति को बचाने की जवाबदेही हर एक मनुष्य की  है। इसी प्रकृति से हम शुद्ध हवा लेते हैं । शुद्ध भोजन प्राप्त करते हैं। इसी धरती पर आराम से विश्राम भी करते हैं।  इसलिए प्रकृति ही हम सबों की जननी है।  आज इस प्रकृति पर पर्यावरण प्रदूषण जैसी विभिषिका का आ खड़ी हुई है ।‌यह कहीं बाहर से नहीं आई है बल्कि हम सब मनुष्य जाति ने  ही इसका सृजन किया है।  इसलिए इस प्रकृति को पर्यावरण प्रदूषण से मुक्त करने के लिए हम सबों का प्रयास ही सर्वोत्तम उपाय होगा। जंगलों की अवैध कटाई पर अभिलंब रोक लगाई जाए।  अधिक से अधिक जंगल लगाया जाएं। जनसंख्या नियंत्रण नियम का कठोरता के साथ पालन हो।  जो वृक्ष हमारे आसपास नजर आते हैं, उन्हें रक्षा सूत्र बांधकर, उसकी रक्षा का संकल्प लें। यह कार्य सच्चे अर्थों में रक्षा बंधन होगा।
   उपरोक्त बातों के माध्यम से पर्यावरण की रक्षा कैसे की जाए ?  पर प्रकाश डाला गया है। जो आज की बदली  पर्यावरणीय परिस्थिति के लिए आवश्यक है।‌ हमारे विविध पर्व व  त्यौहार का उद्देश्य यही है कि मानव जीवन संकट से मुक्त रहे और खुशहाल रहे। इसलिए रक्षाबंधन को पर्यावरण से जोड़कर कुछ बातें रखी गई हैं। सावन मास के पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन पर्व को बहुत ही हंसी-खुशी के साथ लोग मनाते हैं।  इस पर्व से जुड़ी कुछ पौराणिक और ऐतिहासिक बातों का जिक्र करना भी  लाजिमी हो जाता है। हिंदू धर्म के पौराणिक कथाओं के अनुसार राखी की शुरुआत भगवान इंद्र की पत्नी शची से हुई थी।  जिन्होंने दुष्ट राजा बलि से अपनी रक्षा के लिए अपने  ही पति को  राखी बांधी थी।  उस कालखंड में इससे प्रेरित होकर सभी पत्नियों इस शुभ दिन पर अपने पतियों को ही राखी बांधा करती थी। तब के रक्षाबंधन के कुछ मायने और थे।‌ बाद के कालखंड में इसके मायने बदलते चले गए।  लेकिन बाद में यह त्यौहार भाई-बहन के बीच, सुरक्षा,एकता और प्रेम बनाए रखने के लिए मनाए जाने लगे।
  भारत का इतिहास बताता है कि रक्षाबंधन की शुरुआत  सबसे पहले रानी कर्णावती  द्वारा सम्राट हूमायूँ को रक्षा सूत्र भेजकर हुई थी। इतिहास के पन्नों में यह उल्लेख मिलता है कि मध्यकालीन युग में राजपूत और  मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था। रानी कर्णावती चितौड़ के राजा की विधवा थीं। उस दौरान गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख रानी ने हूमायूँ को राखी भेजी थी। तब हूमायूँ ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था। जब तक हुमायूं जीवित रहे, उन्होंने इस धर्म का पालन पूरी निष्ठा के साथ किया था।
    रक्षाबंधन से जुड़ी कई किवदंतियां भी इतिहास के पन्नों पर दर्ज है। विश्व प्रसिद्ध विजेता बहादुर अलेक्जेंडर और  पुरू के बीच का माना जाता है। कहा जाता है कि हमेशा विजयी रहने वाला अलेक्जेंडर भारतीय राजा पुरू की प्रखरता से काफी विचलित हुआ। इससे अलेक्जेंडर की पत्नी काफी तनाव में आ गईं थीं। उसने रक्षाबंधन के त्योहार के बारे में सुना था।, तब उन्होंने भारतीय राजा पुरू को राखी भेजी थी। तब जाकर युद्ध की स्थिति समाप्त हुई थी। क्योंकि भारतीय राजा पुरू ने अलेक्जेंडर की पत्नी को बहन मान लिया था। इस तरह के किस्से  व अनगिनत कहानियां रक्षाबंधन से जुड़ी हुई है।
  द्वापर में भी रक्षाबंधन से जुड़ी एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात दर्ज है। कृष्ण और द्रोपदी एक दूसरे के भाई-बहन कैसे बने ? एक बड़ी दिलचस्प कहानी है। कृष्ण भगवान ने दुष्ट राजा शिशुपाल को मारा था। युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएँ हाथ की अँगुली से खून बह रहा था। इसे देखकर द्रोपदी बेहद दुखी हुईं थीं ।‌ तब उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की अँगुली में बाँधा दिया था,जिससे उनका खून बहना बंद हो गया था । तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। वर्षों बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे। जब द्रोपदी का  भरी सभा में चीरहरण हो रहा था,तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी।
   रक्षाबंधन पर्व से जुड़ी कई पौराणिक और ऐतिहासिक बातें हिंदू धर्म ग्रंथो और इतिहास के पन्नों पर दर्ज हैं । ये  सभी दर्ज बातें मानव जाति की रक्षा  से जुड़ी हुई है। रक्षाबंधन का त्यौहार   संपूर्ण देश में बहुत ही हंसी खुशी के साथ  मनाया जाता है।  बहनें बहुत ही श्रद्धा के साथ अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं । भारतीय चलचित्र ने भाई बहनों के प्रेम पर आधारित कई मार्मिक फिल्मों का निर्माण भी किया है।  चूंकि आज बात रक्षा की हुई है। यह पर्व हम सबों को रक्षा का ही संदेश देता है । इसलिए हम सब अपनी अपनी बहनों की रक्षा के साथ  पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त करने का भी संकल्प लें । यह संकल्प भाई और बहन दोनों एक साथ मिलकर लें। सच्चे अर्थों में  प्रकृति की रक्षा ही रक्षा बंधन है।