प्रभु राम के चरण वनवास के दौरान झारखंड पर भी पड़े थे
(22 जनवरी, अयोध्या में प्रभु रामलला 'प्राण प्रतिष्ठा' कार्यक्रम पर विशेष)
भगवान विष्णु के अवतार के रूप में जाने जाते हैं। प्रभु राम का प्रादुर्भाव असत्य पर सत्य का परचम लहराने के लिए हुआ था । त्रेतायुग में सत्य को प्रतिष्ठित करने के लिए प्रभु राम को कठिन संघर्ष से गुजरना पड़ा था। राजतिलक से कुछ घंटे पूर्व प्रभु राम को चौदह बरसों के लिए वनवास का आदेश प्राप्त हुआ था। पिता दशरथ के वचन का पालन करते हुए माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वनवास के लिए निकल पड़े थे। त्याग का ऐसा उदाहरण विश्व के किसी भी शास्त्र में देखने को नहीं मिलता है।
प्रभु के स्वागत में पेड़ों के पत्ते तक झूम उठे थे
जन श्रुति और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चौदह बरसों के वनवास के दौरान प्रभु राम के चरण झारखंड की पवित्र भूमि पर भी पड़े थे । साथ-साथ माता सीता और भ्राता लक्ष्मण के चरणों से यह झारखंड की धरती अभिभूत हो उठी थी। जिस कालखंड में भगवान राम, माता सीता और भ्राता लक्ष्मण के चरण झारखंड की पड़े थे। यह पूरा क्षेत्र सघन जंगलों से आह्लादित था । दूर-दूर तक मनुष्य दिखाई नहीं दे रहे थे। जैसे ही भगवान राम, माता सीता और भ्राता लक्ष्मण के चरण झारखंड की धरती पर पड़े, जंगल के सभी पेड़ – पौधे उन सबों के स्वागत में हर्षित होकर पत्तों और डालियां हिलाने लगे थे । जंगल में रहने वाले सभी पशु – पक्षी उन तीनों के लिए स्वागत गान करने के लिए उठ खड़े हुए थे । जंगल का हर कोना-कोना और पल्लवित-पुष्पित हो उठा था। सभी अपने-अपने धन्य मान रहे थे कि प्रभु राम के दर्शन हो गए।
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सिमडेगा, गुमला, लोहरदगा, पश्चिमी सिंहभूम, बोकारो, हज़ारीबाग़ और देवघर से गुजरे थे
वनवास के दौरान प्रभु राम, माता सीता और भ्राता लक्ष्मण झारखंड के सिमडेगा, गुमला, लोहरदगा, पश्चिमी सिंहभूम, बोकारो, हज़ारीबाग़ और देवघर के कई स्थानों से गुजरे थे। लाखों वर्ष बीत जाने के बाद भी प्रभु राम माता सीता और भ्राता लक्ष्मण के चरण के निशान इन स्थानों पर देखने को मिलते हैं । आज भी लोग उन्हीं मान्यताओं के अनुसार इन स्थलों की पूजा और अर्चना करते नजर आते हैं। झारखंड का एक जिला सिमडेगा है। झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 260 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सिमडेगा जिला के अंतर्गत बानो प्रखंड से 5 किलोमीटर की दूरी पर केतुंगा धाम स्थित है। यहां शिव का अति प्राचीन मंदिर है । केतुंगा धाम देवनदी व मालगो नदी के संगम स्थल पर स्थित है। मान्यता है कि प्रभु राम, माता सीता एवं भ्राता लक्ष्मण वनवास के दौरान देवनदी पार कर रामरेखा आए थे। यहां के चट्टानों पर उनके पद चिन्ह बिल्कुल स्पष्ट दिखाई देते हैं।
प्रभु ने अपने हाथों से खींची थी रेखा जो आज भी है
यह मेरा सौभाग्य है कि सिमडेगा स्थित रामरेखा धाम जाने का कई बार अवसर प्राप्त हुआ। निश्चित तौर पर यह जगह बहुत ही रमणीय प्रतीत होता है । यहां एक गजब की शांति की अनुभूति होती है। रामरेखा धाम श्रद्धा और आस्था का प्रतीक के बन चुका है। यह स्थल प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है। लोगों की मान्यता है कि बड़ी-बड़ी शिलाओं से ढके गुफा पर माता सीता को पानी से बचने के लिए प्रभु राम ने अपने ही कर कमलों से एक रेखा खींची थी, जिस कारण इस क्षेत्र का नाम रामरेखा धाम पड़ गया। वह रेखा से चीर दी गई गुफा आज भी उसी तरह मौजूद है। प्रभु राम को यह स्थल इतना पवित्र, सुंदर और मोहक लगा था कि अपने चौदह वर्षों के वनवास काल में कई दिनों तक यहां रुके रहे थे। रामरेखा धाम में मौजूद पौराणिक प्रतीक सीता चूल्हा, गुप्त गंगा, भगवान के चरण पादुका यह बताते हैं कि प्रभु राम, माता सीता और लक्ष्मण इसी रास्ते से होकर रामेश्वर गए थे। रामरेखा धाम परिसर में प्रभु राम, माता सीता, भ्राता लक्ष्मण, भक्त हनुमान और भगवान शिव की प्रतिमाएं स्थापित है । इस स्थल का दर्शन करने के लिए झारखंड के अलावा कई राज्यों से यहां श्रद्धालु आतें हैं। हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं, और भगवान राम का दर्शन करते हैं।
बोकारो के कसमार में आज भी हैं प्रभु के चरण पादुका
बोकारो जिला के कसमार प्रखंड के अंतर्गत मृगखोह में प्रभु राम के पद चिन्ह शीला पट पर मौजूद है। यहां श्रद्धालु दूर-दूर से उनके दर्शन और पूजा अर्चना के लिए पहुंचते हैं। यह स्थान पहाड़ी पर हरी भरी वादियो के बीच बसा है । यहां आने वाले श्रद्धालु प्रभु राम के पद चिन्ह देखकर और स्पर्श कर अपने आपको कृतार्थ मानते हैं। यह स्थल भी एक तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाने लगा है। चास – धनबाद मुख्य पथ से करीब दस किलोमीटर दूर पूरब दिशा में स्थित कुम्हरी पंचायत में दामोदर नदी पर बरनी घाट है । भगवान राम वनवास के दौरान माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ यहां से होकर गुजरे थे । उन तीनों ने यहां रात्रि में विश्राम किया था। सुबह तीनों यहां के पवित्र जल में स्नान कर ब्रह्म मुहूर्त के समय ही पूजा अर्चना की थी। सूर्योदय से पूर्व ही वे सब वहां से आगे की ओर गमन कर कर गए थे। आज भी यहां पर पौराणिक पत्थर और उनकी चरण पादुका मौजूद हैं। इस पवित्र स्थल को देखने के लिए हर रोज काफी संख्या में श्रद्धालु आते ही रहते हैं।
वनवास के दौरान माता सीता ने देवघर में शिवलिंग की पूजा की थी
देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम, देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में एक हैं। लंकाधीपति रावण कैलाश पर्वत से यह शिवलिंग लेकर लंका की ओर जा रहे थे। रावण को मूत्र त्याग की अनुभूति होने पर उन्होंने एक राहगीर बैजू को उक्त शिवलिंग को थोड़ी देर रखने के लिए दिया था। ऐसी मान्यता है कि बैजू के रूप में भगवान विष्णु स्वयं अवतरित हुए थे। जब मूत्र त्याग कर रावण आए, तब उन्होंने देखा कि शिवलिंग धरती पर स्थापित हो गया था। तब से शिवलिंग उसी स्थल पर स्थापित है। यह स्थापित शिवलिंग बाबा बैद्यनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वनवास के दौरान माता सीता ने इसी शिवलिंग की पूजा और अर्चना कर प्रभु राम और लक्ष्मण के लिए मंगल कामना की थी।
नोवामुंडी में वैशाली नदी के तट पर प्रभु राम ने की थी पूजा : रामतीर्थ धाम
पश्चिम सिंहभूम जिला अंतर्गत नोवामुंडी प्रखंड के देवगांव में रामतीर्थ धाम स्थित है। यह धाम वैशाली नदी के तट पर स्थित है। यहां भगवान राम के पैरों के निशान मौजूद है । पौराणिक मान्यता है कि भगवान राम वनवास के दौरान सीता और लक्ष्मण के साथ यहाँ पधारे थे । उन्होंने यहां शिवलिंग स्थापित कर पूजा अर्चना की थी। राम के यहां ठहरने के कारण इस क्षेत्र का नाम रामतीर्थ धाम पड़ गया। यहां भी लोग काफी संख्या में भगवान राम द्वारा स्थापित शिवलिंग और उनके पद चिन्हों का दर्शन करने के लिए आते हैं।
हजारीबाग में प्रभु के बनाये सूरजकुंड में स्नान कर कुष्ठ रोगी ठीक हो जाता है
हजारीबाग जिला से 60 किलोमीटर की दूरी पर गमर झरना पानी स्थित है । यह स्थल सूरजकुंड के नाम से जाना जाता है। यहां कुल पंच कुंड स्थित हैं। इन कुंडों को नाम क्रमशः सूरजकुंड, रामकुंड, लक्ष्मण कुंड ,सीता कुंड और ब्रह्मा कुंड के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि प्रभु राम वनवास के दौरान जब इस क्षेत्र से गुजर रहे थे, तब उन्होंने एक कुष्ठ रोगी को कुष्ठ रोग से ग्रसित देखा। प्रभु राम ने उसकी तकलीफ की अनुभूति कर अपने वाण से पांच जल कुंडों का निर्माण किया। आगे उन्होंने उक्त कुष्ठ रोगी को सूरजकुंड में स्नान करवाया। स्नान करते ही कुष्ठ रोगी का कुष्ठ खत्म हो गया। आज भी प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में चर्म रोगी इस सूरजकुंड में स्नान करते हैं और चर्म रोग से मुक्ति पा जाते हैं।
हनुमान जी की भी जन्मस्थली भी झारखंड में ही आंजनगांव रही थी
इसके अलावा भी कई अन्य जनश्रुतियां और किंवदंतियां यह बतातीं हैं कि प्रभु राम, माता सीता और भ्राता लक्ष्मण के सामवेत चरण झारखंड के विभिन्न क्षेत्रों पर पड़े थे। उन्हीं पौराणिक मान्यताओं के आधार पर आज भी इन क्षेत्रों में भगवान राम के नाम पर मेले आयोजित होते हैं। भगवान राम के अनन्य भक्त हनुमान जी की भी जन्मस्थली झारखंड के गुमला जिला के आंजनगांव रही थी।
भगवान परशुराम ने भी गुमला के टांगीनाथ धाम में भगवान शिव की उपासना की थी
प्रभु राम के समकालीन परशुराम ने गुमला जिला के टांगीनाथ धाम में अपने फरसा को जमीन पर गाड़कर भगवान शिव की उपासना की थी। यह स्थल टांगीनाथ धाम के नाम से जाना जाता है।
झारखंड का रामनवमी ऐतिहासिक है
भगवान राम के जन्मदिन पर हर साल चैत मास के रामनवमी के दिन संपूर्ण झारखंड में ऐतिहासिक जुलूस निकाले जाते हैं। रामनवमी पर झारखंड में निकलने वाला रामनवमी जुलूस अब अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुका है। अयोध्या में भगवान रामलला के बाल रूप मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा ने संपूर्ण भारत के सनातनियों को एक सूत्र में बांध दिया है। जिस सूत्र को बांधने की शुरुआत आज से 2500 सौ वर्ष पूर्व आदि गुरु शंकराचार्य ने देश के चार कोनों पर चार पीठों की स्थापना से की थी।