कब बदलेगी झारखंड की तस्वीर ?
15 नवंबर,झारखंड स्थापना दिवस पर विशेष

विजय केसरी:
पिछले दिनों झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने स्थानीयता 1932 खतियानी एवं 27% आरक्षण बिल पास कर दिया। ये दोनों बिल संवैधानिक रूप से स्वीकृति हेतु केन्द्र सरकार को प्रेषित कर दिया गया है। उम्मीद है कि कोई वैधानिक अड़चन ना होने पर ये दोनों बिल पर स्वीकृति की मुहर लग जाएगी। झारखंड विधानसभा से ये दोनों बिल पारित होने के पश्चात हेमंत सोरेन सरकार इसे एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर जनता के समक्ष प्रस्तुत कर रही है । झारखंड अलग प्रांत निर्माण के पश्चात प्रांत के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने स्थानीयता को परिभाषित करने के लिए 1932 खतियान को आधार कर डोमिसाइल बिल को मंजूरी दिया था । तब ब इस डोमिसाइल बिल को लेकर पूरे प्रांत में जमकर हंगामा हुआ था। राज्य की करोड़ों रुपयों की संपत्ति जलकर स्वाहा हो गई थी । बिल के विरोध में कई जाने भी गई थी। प्रांत के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने झारखंड विधानसभा में कहा कि ‘शिबू सोरेन ने लड़कर झारखंड अलग प्रांत दिया। मैंने स्थानीयता और 27%आरक्षण दिया। अब सवाल यह उठता है कि क्या झारखंड विधानसभा से स्थानीयता और 27% आरक्षण बिल पारित होने से झारखंड की तस्वीर बदल गई ? इस विषय पर चर्चा को आगे बढ़ाऊं, इससे पूर्व झारखंड के बीते बाइस वर्षों के इतिहास पर चर्चा करना उचित समझता हूं ।
22 वर्ष पूर्व आज के ही दिन सन 2000 में झारखंड प्रांत अस्तित्व में आया था । उम्मीद थी कि झारखंड की तस्वीर बदल जाएगी। झारखंड में चतुर्दिक विकास होगा। लेकिन यह एक दिवा सपना ही साबित हुआ । झारखंड अलग प्रांत स्थापना के साथ ही अस्थिरता का दौर ऐसा रहा था कि इस अस्थिरता में झारखंड का लगभग 14 बरस बर्बाद होकर रह गया था । इस दरमियान कई सरकारें आई थी। सभी सरकारें समय से पहले ही काल कवलित हो गई थी। अस्थिरता के बाद झारखंड में भाजपा गठबंधन की सरकार रघुवर दास के नेतृत्व में बनी थी। झारखंड में पहली बार कोई एक सरकार पहली बार 5 साल पूरा की थी।
समय के साथ रघुवर दास सरकार को झारखंड की जनता ने विदाई दे दी थी। इसके बाद झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में यूपीए की सरकार आई जो लगभग तीन वर्ष पूरा कर ली है । उम्मीद की गई थी कि हेमंत सोरेन सरकार में विकास की झड़ी लग जाएगी। राज्य में बेरोजगारी दूर होगी । शिक्षा के स्तर पर भी सुधार होगा। लेकिन बीते तीन वर्षों के इनके कार्यकाल पर गौर किया जाए तो यह भी बात अब बेमानी लगने लगती है। हाल के दिनों में झारखंड सरकार ने कुछ महत्वपूर्ण बिलों को पारित किया है । जिसमें प्रांत के दबे कुचले वर्ग के छात्रों को लाभ मिलेगा। राज्य सरकार कुछ नई बहालियां करने जा रही है । इस बहाली पर सिर्फ इतना कहा जा सकता है कि यह ऊंट के मुंह में जीरा का फौरन के समान है । झारखंड की आबादी जिस रफ्तार से बढ़ी है। उसी रफ्तार से यहां बेरोजगारी भी बड़ी है । उम्मीद थी कि झारखंड अलग प्रांत गठन के बाद झारखंड के बेरोजगार नवयुवकों को रोजगार मिलेगा । लेकिन यह संभव नहीं हो पाया । आज भी देश के विभिन्न महानगरों में लाखों की संख्या में झारखंड के महिलाएं और पुरुष गृह कार्य में कार्यरत है। झारखंड में बेरोजगारी दूर होने की जगह बेरोजगारी बढ़ती चली जा रही है । यह बेहद चिंता की बात है ।
झारखंड में अब तक बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, शिबू सोरेन, मधु कोड़ा, हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकारें जरूर बनी । लेकिन एक भी सरकार के कार्यकाल को स्वर्णिम कार्यकाल नहीं कहा जा सकता है। सभी सरकारों ने जनता के बीच जाकर घोषणाओं का अंबार लगा दिया था । लेकिन जब उनकी सरकार गठित हुई तब घोषणाएं धरी की धरी रह गई ।
यह सत्य है कि झारखंड खनिज संपदाओं से भरा एक उत्कृष्ट राज्य है । लेकिन झारखंड के खनिज संपदाओं का जिस हिसाब से दोहहन हुआ। उसका लाभ झारखंड को नहीं मिल पाया। झारखंड में कोयला प्रचुर मात्रा में है। झारखंड में अभ्रक प्रचुर मात्रा में है । झारखंड में बॉक्साइट प्रचुर मात्रा में है । यहां तक कि झारखंड में सोना के भी खदान मिले हैं । इन तमाम खनिज संपदाओं के रहते हुए भी हमारा झारखंड गरीब है । उम्मीद थी कि झारखंड में उपलब्ध खनिज संपदाओं के आधारित उद्योग लगेंगे । लेकिन झारखंड राज्य अस्तित्व में आने के बाद इस दिशा में बिल्कुल ही कार्य नहीं हुआ । झारखंड अलग प्रांत निर्माण के बाद जितनी भी सरकारें आईं। किसी सरकार ने भी उपलब्ध खनिज संपदाओं के आधारित एक भी उद्योगों की शुरुआत नहीं की। यह बेहद ही चिंता की बात है।
झारखंड से कोयला देश के विभिन्न प्रदेशों में जाते हैं। उन प्रदेशों में कोयला आधारित उद्योगों के माध्यम से वहां के उद्यमी और सरकार भी लाभान्वित हो रही है। लेकिन हमारा राज्य इस लाभ से पूरी तरह वंचित है । इस दिशा में झारखंड की सरकार की अनदेखी कई प्रश्नों को खड़ा करती है । झारखंड में अभ्रक काफी मात्रा में उपलब्ध है। एक जमाना था कि यहां के अभ्रक खनन से राज्य को काफी लाभ प्राप्त हो रहा था। यह सर्वविदित है कि अभ्रक का मल्टी परपस इस्तेमाल होता है। इसकी मांग संपूर्ण विश्व में है । लेकिन इस दिशा में झारखंड सरकार की उपेक्षा वाली नीति के कारण अभ्रक खनन की दिशा में कोई भी प्रगति नहीं हो पाया । फलस्वरुप अभ्रक का उत्पादन झारखंड में कमतर होता चला गया। जिस खनन से झारखंड को लाभ मिलना चाहिए, बिल्कुल लाभ नहीं मिल पा रहा है । झारखंड अभ्रक खनन से राज्य को काफी राजस्व की प्राप्ति होती थी। सरकार की उपेक्षा पूर्ण नीति के कारण यह खनन पूरी तरह प्रभावित हो गया है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खनन पट्टा लीज के मामले में फंसे हुए हैं। इस मामले को लेकर चुनाव आयोग का रुख कड़ा है । अब देखिए आगे क्या होता है ? वर्तमान सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर पाती है या नहीं ? अभी निश्चित तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
झारखंड में जड़ी बूटियों की खेती से काफी कुछ राजस्व की प्राप्त हो सकता है। झारखंड में दुर्लभ किस्म के जड़ी बूटी उपलब्ध है। यह जड़ी बूटी झारखंड के विभिन्न जिलों और पहाड़ों पर पैदा होते हैं । इस दिशा में सरकार पूरी तरह कान में तेल देखकर चुप बैठी है । अगर झारखंड के जड़ी बूटी उत्पादन की दिशा में कार्य होता तो झारखंड के लाखों बेरोजगारों को रोजगार मिल पाता । इससे झारखंड को काफी राजस्व की भी प्राप्ति होती। झारखंड में आम, अमरूद, पपीता, केला की पैदावार की भी काफी संभावना है । बहुत सारे किसान आम, केला, पपीता, अमरूद, जामुन आदि फल पैदा कर लाभान्वित हो रहे हैं। लेकिन सरकार के असहयोग के कारण इस दिशा में जो कार्य होना चाहिए, नहीं हो पा रहा है। यह निर्विवाद सत्य है कि यहां के फल अन्य प्रांतों के फलों की तुलना में ज्यादा गुणकारी और लाभकारी है । यहां के फलों की मांग देश के विभिन्न राज्यों में है । लेकिन इस दिशा में राज्य के किसानों को प्रशिक्षित तक नहीं किया गया है। फलस्वरूप झारखंड फल के मामले में बहुत पीछे चला गया है।
झारखंड के जंगली फल केंद, प्यार आदि ऐसे फल है, जो कई गुणों से युक्त है । साथ ही यह जंगली फल औषधि के रूप में भी काम आते हैं । लेकिन इस दिशा में भी जो कार्य होना चाहिए नहीं हो पाया। फलस्वरुप इस क्षेत्र से भी लाभ की जगह हानि ही मिल रही है ।
उम्मीद थी कि झारखंड अलग प्रांत बनने के बाद शिक्षा के क्षेत्र में काफी विस्तार होगा लेकिन। यह बात भी गलत साबित हुई। सरकारी स्कूलों के हालात दिन-ब-दिन सुधरने की जगह बिगड़ते चले जा रहे हैं। जबकि दिल्ली जैसे राज्य के सरकारी स्कूल, निजी स्कूलों की तुलना में काफी आगे निकल गए हैं। आज झारखंड में सरकारी स्कूलों की गिरती शिक्षा व्यवस्था के कारण यहां के अभिभावक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना उचित नहीं समझते हैं। फलस्वरूप झारखंड में शिक्षा का स्तर बहुत ही नीचे चला गया है । वहीं निजी स्कूलों का बोल बाला बढ़ता चला जा रहा है। बीते 22 वर्षों का हम सब मूल्यांकन करें तो पाएंगे कि झारखंड में अन्य राज्यों की तुलना में भारतीय प्रशासनिक सेवा मैं यहां के छात्र कम ही उत्तीर्ण हुए । यह बेहद चिंता की बात है । झारखंड के सरकारी स्कूलों की स्थिति में सुधार कैसे हो ? सरकार इसके प्रति बिल्कुल ही गंभीर नहीं है। बल्कि झारखंड के सभी सरकारी स्कूलों को पारा शिक्षकों के हवाले कर दिया गया है। दूसरी ओर पारा शिक्षकों के लगातार आंदोलन के कारण सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है । पारा शिक्षकों को बिल्कुल कम वेतन दिए जाने के कारण पारा शिक्षकों में काफी असंतोष है। पारा शिक्षकों और राज्य सरकार के बीच बराबर नोकझोंक बनी रहती है । जिस कारण बच्चों की पढ़ाई काफी हद तक प्रभावित हो रही है।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों के हालात में कोई बेहतर सुधार दिख नहीं रहा है। बल्कि सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में व्याप्त अनियमितता की बराबर खबरें अखबारों में छपती रहती हैं । वहीं निजी अस्पतालों की के धांधली की भी खबरें आती हैं । सरकारी अस्पतालों की उदासीनता और निजी अस्पतालों की धांधली के कारण झारखंड की जनता पीसी जा रही है । इसलिए झारखंड स्थापना दिवस पर झारखंड के सभी राज्य वासियों को यह विचार करने की जरूरत है कि झारखंड का सम्यक और चतुर्दिक विकास कैसे हो ? इस विषय पर राज्य सरकार को भी आत्म निरीक्षण करने की जरूरत है। तभी झारखंड की तस्वीर बदल सकती है ।