झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री और रिम्स के निदेशक के बीच बढ़ती टकराहट के मायने
एक तरफ राज्य के स्वास्थ्य प्रमुख डॉ इरफान अंसारी हैं, तो दूसरी ओर रिम्स के निदेशक डॉ राजकुमार एक दूसरे पर आरोप लगाने के कोई भी अवसर को छोड़ नहीं रहे। कार्यपालिका और विधायिका की इस टकराहट में रिम्स में भर्ती मैरिज जरूर पीसे जा रहे हैं। दोनों अपनी जिद में अड़े हुए हैं।

झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री डॉ इरफान अंसारी और रिम्स के निदेशक डॉ राज कुमार के बीच बढ़ती टकराहट ने विधायिका और कार्यपालिका को आमने-सामने ला दिया है । यह किसी भी सूरत में झारखंड की स्वास्थ्य सेवा के लिए उचित नहीं है। एक तरफ राज्य के स्वास्थ्य प्रमुख डॉ इरफान अंसारी हैं, तो दूसरी ओर रिम्स के निदेशक डॉ राजकुमार एक दूसरे पर आरोप लगाने के कोई भी अवसर को छोड़ नहीं रहे। कार्यपालिका और विधायिका की इस टकराहट में रिम्स में भर्ती मैरिज जरूर पीसे जा रहे हैं। दोनों अपनी जिद में अड़े हुए हैं। रिम्स में भर्ती मरीज जाए भाड़ में। यह हम सबों को जानना चाहिए कि झारखंड की राजधानी रांची स्थित रिम्स में जहां हर दिन सैकड़ो की संख्या में राज्य भर से गंभीर और दुर्घटना ग्रसित मरीज समुचित इलाज के लिए आते हैं । लेकिन यहां तो रिम्स के निदेशक और स्वास्थ्य मंत्री के बीच सीधे तौर पर वाक् व पावर के चल रहे हैं। जारी इस युद्ध में मरीजों का क्या हाल हो रहा है ? इसे आसानी से समझा जा सकता है।
ध्यातव्य है कि पिछले दिनों प्रांत के स्वास्थ्य मंत्री डॉ इरफान अंसारी ने रिम्स के निदेशक राजकुमार को उनकी सेवा से असंतुष्ट होकर उन्हें पद से हटाने का एक आदेश निर्गत किया था। रिम्स के निदेशक डॉ राजकुमार ने उक्त आदेश के विरुद्ध हाई कोर्ट में एक याचिका दायर किया । उन्होंने ने अपने याचिका में स्वास्थ्य मंत्री द्वारा रिम्स के निदेशक पद से हटाए को असंवैधानिक बताया था। साथ ही उन्होंने अपने याचिका में यह भी दर्ज किया कि उनका पद से हटाया जाना न ही विधि सम्मत है ।और न ही नियम पूर्वक है । उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य मंत्री के द्वारा रिम्स के निदेशक पद से डॉ राजकुमार को हटाए जाने के निर्देश पर रोक लगा दिया। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने 6 मई तक विस्तृत सुनवाई के लिए तारीख मुकर्रर किया ।
न्यायपालिका के उक्त फैसले के बाद विधायिका और कार्यपालिका खुलकर आमने-सामने आ गए हैं । जनता द्वारा चुनी गई विधायिका के अधिकारों पर न्यायपालिका ने लगाम लगाकर किस तरह के संवैधानिक मूल्यों की रक्षा की है ? यह तो न्यायपालिका ही जाने। रिम्स निदेशक डॉ राजकुमार एक डॉक्टर के साथ रिम्स प्रशासन के प्रमुख हैं। वे प्रांत के स्वास्थ्य मंत्री के मातहत काम करते हैं । उनका स्वास्थ्य मंत्री के आदेश के विरुद्ध हाईकोर्ट जाना कितना न्याय संगत है ? कितना संवैधानिक है ? इस तरह के कई सवाल उठ रहे हैं। विचारणीय यह है कि न्यायपालिका को यह भी विचार करना चाहिए कि उसके उक्त फैसले से कहीं विधायिका और कार्यपालिका आमने-सामने एक दूसरे के विरुद्ध खड़े न हो जाएं । जैसा कि इस प्रकरण में हुआ है । न्यायपालिका को रिम्स के निदेशक डॉ राज कुमार ने अपने तबादले से संबंधित जो भी कागजात समर्पित किया, उसके आलोक में न्यायपालिका को राज्य के स्वास्थ्य मंत्री द्वारा रिम्स के निदेशक डॉ राज कुमार को उनके पद से हटाए जाने के औचित्य से संबंधित बातों को सुनने का एक अवसर देना चाहिए था। तब दोनों की बातों को सुनकर न्यायपालिका को फैसला लेना चाहिए था। जबकि न्यायपालिका ने ऐसा न कर स्वास्थ्य मंत्री के उक्त आदेश को अगले 6 मई तक रोक लगा दिया। स्वाभाविक है कि न्यायपालिका के उक्त आदेश से विधायिका और कार्यपालिका के बीच टकराहट बढ़ जाएगी।
इस तरह के मामलों में न्यायपालिका को बहुत ही सोच समझकर विधि सम्मत निर्णय लेना चाहिए । कल के दिन प्रांत के मुख्यमंत्री द्वारा किसी जिले के उपयुक्त अथवा आरक्षी अधीक्षक का तबादला किया जाता है । तब ऐसी स्थिति में उक्त जिले के उपायुक्त और आरक्षी हाई कोर्ट जाते हैं। और न्यायपालिका द्वारा मुख्यमंत्री के आदेश पर रोक लगा दिया जाता है। तब राज्य में विधायिका और कार्यपालिका के बीच टकराहट बढ़ जाएगी। न्यायपालिका को यह समझना चाहिए कि विधायिका जनता द्वारा चुनी जाती है। जिसका कार्य होता है राज्य में विधि सम्मत जनतांत्रिक ढंग से प्रशासन प्रदान करना। विधायिका और कार्यपालिका के बीच टकराहट बढ़ने से प्रशासनिक दृष्टि से किसी भी राज्य के संचालन के लिए विधि सम्मत नहीं है। विधायिका और कार्यपालिका के बीच बेहतर तालमेल होना चाहिए। तभी किसी राज्य का संचालन बेहतर ढंग से हो सकता है।
इस प्रकरण में विचारणीय यह है कि जब रिम्स के निदेशक डॉ राजकुमार को उनके पद से हटा दिया गया। तब इस निर्देश के विरुद्ध उन्होंने हाईकोर्ट में शरण लिया । हाईकोर्ट ने 6 मई तक स्वास्थ्य मंत्री के आदेश पर रोक लगा दिया। इसके साथ ही 6 मई तक विस्तृत सुनने के लिए समय भी निर्धारित किया। वहीं दूसरी ओर डॉ राजकुमार ने हाई कोर्ट के उक्त 6 मई तक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने के पूर्व ही आनन फानन में 29 अप्रैल को दोबारा से रिम्स निदेशक का पदभार ग्रहण कर लिया। उन्हें इतनी हड़बड़ी करने की क्या जरूरत थी? क्या वे 6 मई तक इंतजार नहीं कर सकते थे ? ऐसा कर डॉ राजकुमार क्या स्थापित करना चाहते हैं ? डॉ राजकुमार को यह समझना चाहिए कि वे कार्यपालिका के एक हिस्सा है । उन्हें न्यायपालिका और विधायिका जिसके मातहत काम करते हैं,उन दोनों का सम्मान करना चाहिए। ऐसा न कर उन्होंने राज्य में लाल फीता शाही और अफसरशाही को बढ़ावा देने का काम किया है।
रिम्स के निदेशक डॉ राजकुमार को 6 मई को हाई कोर्ट में विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद ही हाई कोर्ट का जो निर्देश होता, उस आलोक में कार्रवाई करते, जो विधि सम्मत होता। ऐसा न कर उन्होंने न्यायपालिका और विधायिका के निर्देशों का उल्लंघन करने जैसा कार्य किया है। इसके साथ ही डॉ राजकुमार ने रिम्स फैकल्टी के लंबित 81 चिकित्सा शिक्षकों के पदोन्नति की सूची जारी कर दिया। आगे उन्होंने सीटी स्कैन मशीन खरीद का भी पत्र जारी कर दिया । इसके साथ ही उन्होंने रिम्स का एक रास्ता को खुलवा दिया । अब सवाल यह उठता है कि डॉ राजकुमार बिना 6 मई का इंतजार किए इतने बड़े फैसले स्वयं क्यों ले लिए ? उनके इन फैसलों के पीछे मनसा क्या है ? इतनी हड़बड़ी क्यों है ? 6 मई के बाद भी ये फैसले लिए जा सकते थे।
रिम्स के निदेशक डॉ राजकुमार के 29 अप्रैल को दोबारा निदेशक का पदभार ग्रहण करने के बाद जो उन्होंने आदेश जारी किया, उस आलोक में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री डॉ इरफान अंसारी ने कहा कि जब कोर्ट ने अगले 6 मई को सुनवाई की तारीख रखी है, तब उन्हें इंतजार करना चाहिए था । मैं न्यायालय के हर फैसले का सम्मान करता हूं । वहीं दूसरी ओर राज्य के अपर मुख्य निदेशक,स्वास्थ्य, अजय कुमार सिंह ने कहा कि जब रिम्स के एसोसिएट और असिस्टेंट प्रोफेसर की पदोन्नति का मामला रिम्स शासी परिषद की बैठक में पास ही नहीं हुआ तो फिर रिम्स निदेशक ने कैसे यह फैसला ले लिया ? अपर मुख्य सचिव ने यह भी कहा कि पिछले कुछ दिनों से रिम्स निदेशक डॉ राजकुमार मीडिया में आकर बयान बाजी कर रहे हैं यह ठीक नहीं है। आगे प्रांत के स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी ने कहा कि अब जो भी गलती करेगा, वह बख्शा नहीं जाएगा। चाहे वह किसी भी पद पर हो। मैं मंत्री बनने नहीं, काम करने आया हूं। जो अच्छा करेगा, उसे इनाम मिलेगा। लेकिन जो विभाग को अंधेरे में रखेगा, ऐसे अधिकारियों की अब खैर नहीं। सीधा एक्शन लिया जाएगा। साफ कर देता हूं, सिस्टम सुधारना है तो ढील नहीं चलेगी।