यात्रा वृतांत
..सुनील सौरभ

आदि काल से लेकर आज तक भगवान श्रीराम के चरित्र को दिग-दिगन्त तक फैलाने वाले महान ऋषि हैं महर्षि वाल्मीकि। महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में रामायण की रचना की थी, जिसे वाल्मीकि रामायण के रूप में जाना जाता है। ‘हिन्दुस्तान’ अखबार की नौकरी करने के दौरान जब मेरा तबादला पश्चिम चंपारण के बगहा में हुआ था, तो कुछ अटपटा-सा लगा था। लेकिन, मन निश्चिंत था कि चलो महात्मा गाँधी की कर्मभूमि और महर्षि वाल्मीकि की भूमि को देखने और समझने का अवसर तो मिलेगा। बगहा में रहते हुए डेढ़ दशक पूर्व सपरिवार वाल्मीकि आश्रम गया था, तब बहुत कुछ लिख-पढ़ नही पाया था। ऐसे तो, बीच में कई बार बगहा गया, लेकिन वाल्मीकि आश्रम जा नहीं पाया था।

पत्रकार मित्रों के बीच अक्सर चर्चा करता था वाल्मीकि आश्रम की। सब कहते कि चला जायेगा वाल्मीकि आश्रम और वाल्मीकिनगर। अंत में, मैं और पत्रकार मित्र राजकिशोर सिंह निकल पड़े वाल्मीकि आश्रम के लिए।

सुबह मैं, राजकिशोर सिंह, बगहा के वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द नाथ तिवारी, नवोदित पत्रकार दिवाकर के साथ वाल्मीकिनगर के लिए बगहा से चल पड़े। साढ़े 11 बजे हम सभी वाल्मीकिनगर पहुँचें।यहाँ से एक और पत्रकार मित्र के साथ करीब छह किलोमीटर दूर जंगल के रास्ते गंडक नदी के किनारे भारत-नेपाल बॉर्डर पर गाड़ी से हम सभी पहुँच गए। यहाँ से गंडक नदी के दूसरे किनारे नेपाल की सीमा में वाल्मीकि आश्रम दिखाई पड़ रहा था।

एस. एस.बी. के जवानों ने पहले सीमा पार गाड़ी ले जाने से रोका, जब हमने बताया कि पत्रकार हैं, तब एस.एस.बी. के जवानों ने गाड़ी ले जाने की अनुमति दी। गंडक नदी के बालू में गाड़ी के फँसने के डर से भारत की सीमा में ही गाड़ी को छोड़ कर हम सभी पत्रकार पैदल चल पड़े। दोपहर में सूरज की रोशनी से चाँदी सी चमकती गीले सूखे सफेद बालुका राशि से होकर नेपाल की सीमा में नदी किनारे पहुँचे, तो नदी में घुटने भर पानी था। हम सभी ने चप्पल-जूते हाथ में ले और पैंट-पैजामे को घुटने के ऊपर उठा नदी पार कर पहुँच गये महर्षि वाल्मीकि के प्रवेश द्वार पर।

घने जंगलों के बीच अजीब सी शांति थी। मन में कुछ अद्भुत सा महसूस हो रहा था। मैं त्रेतायुग युग में खो गया, तभी वाल्मीकिनगर के एक पत्रकार मित्र ने कहा प्रवेश द्वार पर खड़े हो जाइए, एक फोटो ले लेते हैं, तब मेरी तन्द्रा टूटी। करीब सौ कदम चलने के बाद हम सभी पहुँच गए उस स्थान पर जिसकी चर्चा हम बचपन से सुनते और पढ़ते आ रहे हैं। मैं दूसरी बार वाल्मीकि आश्रम गया था, इसलिए कुछ जानकारी पहले से थी। मेरे मित्र राजकिशोर सिंह पहली बार यहाँ आए थे,वो हमसे ज्यादा अभिभूत थे, भारतीय पौराणिक और धार्मिक कथाओं में वर्णित स्थलों से रूबरू होकर।

हम सभी सबसे पहले उस मंदिर में गये, जहाँ के बारे में कहा जाता है कि माता सीता के आह्वान पर धरती फटी और माता सीता उसमें समा कर पाताललोक चली गयी थी। बाद में, माता का पूरा स्वरूप उसी स्थान पर पत्थर में तब्दील हो गया था, वह स्वरूप आज भी जस का तस विद्यमान है। उस स्थान को मंदिर बना दिया गया है। महर्षि वाल्मीकि जिस पेड़ के नीचे बैठ कर अपने शिष्यों को शास्त्र-शस्त्र की शिक्षा दिया करते थे, वह प्राचीन पेड़ तो अब नहीं है, लेकिन उसी पेड़ के वंशज आज भी हैं।

भगवान श्री राम के जुड़वाँ बच्चों यथा लव-कुश ने जिस खूँटे में भगवान श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को पकड़ कर बाँध दिया था, कहा जाता है कि वही खूँटा आज तक बरकरार है। महर्षि वाल्मीकि यज्ञशाला, माता जिस सिलौट पर मशाला पिसती थी, वह भी है। सिलौट की लंबाई तीन फीट से कुछ ज्यादा ही है, लोढ़ी भी सामान्य से ज्यादा है। पानी के लिए कुआं भी प्राचीन काल का ही है। माता की रसोई का स्थान को देखकर पुनः एक बार मैं त्रेतायुग में चला गया। घनघोर जंगल में वाल्मीकि आश्रम में करीब घंटे भर रहने पर हम सभी ने कहा अद्भुत।

नेपाल के चितवन जिले के अंतर्गत गंडक नदी के किनारे त्रेतायुग की उस पहचान को बचा कर रखने में एक -दो नेपाली हिन्दू परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी लगे हुए हैं। लेकिन, कभी दुनिया का एकमात् हिन्दू राष्ट्र कहा जाने वाला नेपाल में अंतरराष्ट्रीय महत्व के इस ऐतिहासिक-पौराणिक-धार्मिक स्थल की उपेक्षा देखकर कुछ अजीब सा लगा। जबकि, भारत ने इस सीमा से लगे भैंसा लोटन नामक जगह को वाल्मीकि आश्रम के साथ जोड़ते हुए वाल्मीकिनगर कर दिया है।

नेपाली पुलिस का एक छोटा सा पोस्ट नजर आया, जहाँ दो-तीन जवान सुरक्षा ड्यूटी पर तैनात दिखे। फ़ोटो-पूजा सामग्री की दो- तीन दुकानें लगी थी। कुल मिलाकर, दर्जन भर लोग की स्थायी आबादी देखने को मिली।मित्र राजकिशोर सिंह ने कहा- बगहा आना सार्थक हो गया।

वाल्मीकि आश्रम से हम सभी को लौटने का मन नहीं कर रहा था, लेकिन लौटना हम सभी की लाचारी थी, सो बुझे मन से लौट पड़े। पर, मन त्रेतायुग में ही था, नदी पार करते जब गाड़ी के ड्राइवर ने कहा कि चप्पल हाथ में ले लें सर, आगे पानी है, तब, वर्तमान में लौटा।

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