पटना हाईकोर्ट फेल,जदयू सांसद के बेटे को फिर मिला 1600 करोड़ का ठेका,भाजपा ने कहा-जाँच हो
दिसंबर 2022 में पटना हाईकोर्ट ने टेंडर की प्रक्रिया पर आपत्ति जताई थी। कोर्ट ने अगले आदेश तक इसे रोकने को कहा था, लेकिन बिहार सरकार ने नुकसान का बहाना बनाते हुए कॉन्ट्रैक्ट सांसद के रिश्तेदारों को दे दिया।
बिहार में भ्रष्टाचार का एक और मामला सामने आया है। आरोप है कि नियमों की अनदेखी कर कंट्रेक्ट दिया गया है। पटना उच्च न्यायालय के आदेश को किनारे रख कर बिहार सरकार ने एक बार फिर से राज्य में एम्बुलेंस का 1600 करोड़ रुपए का ठेका सत्ताधारी जदयू सांसद के रिश्तेदारों द्वारा संचालित कंपनी को दे दिया है। जानकारी के अनुसार बिहार के जहानाबाद से जेडीयू एमपी चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी के बेटे की कंपनी को कथित रूप से 1600 करोड़ रुपये के एंबुलेंस कंट्रेक्ट दिये जाने पर विवाद हो गया है।
जानिए पूरे मामले को:
‘डायल 102 इमरजेंसी सेवा’ के अंतर्गत बिहार में 2125 एम्बुलेंस हैं। इनके प्रबंधन का कार्य पटना स्थित ‘पशुपतिनाथ डिस्ट्रीब्यूटर्स प्राइवेट लिमिटेड (PDPL)’ को दे दिया गया है। इस कंपनी को जहानाबाद के सांसद चंदेश्वर सिंह चंद्रवंशी के रिश्तेदार चलाते हैं। इस सेवा के तहत एम्बुलेंस मरीजों को अस्पताल ले जाते और ले आते हैं। गर्भवती महिलाओं और बच्चों से लेकर गंभीर रूप से बीमार मरीजों को मुफ्त में सरकार ये सेवा देती है। PDPL के निदेशकों में जदयू सांसद के बेटे सुनील कुमार भी हैं। सुनील कुमार की पत्नी नेहा रानी, सांसद के दूसरे बेटे जितेंद्र कुमार की पत्नी मोनालिसा सहित सांसद के साले भी कंपनी के संचालकों में शामिल हैं। 2017 में भी इसी कंपनी और ‘सम्मान फाउंडेशन’ को 650 एम्बुलेंसों के प्रबंधन के लिए 400 करोड़ रुपए का करार मिला था।
पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा नेता रविशंकर ने जाँच की माँग की
उक्त मामले में भाजपा ने बिहार की नीतीश सरकार पर हमला बोला है। पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं पटना साहिब के सांसद रविशंकर प्रसाद ने मामले की जांच की माँग की है।उन्होंने कहा कि 102 एम्बुलेंस सेवा गर्भवती महिलाओं, शिशुओं और गंभीर रोगियों के लिए है और सरकार इसकी गुणवत्ता से समझौता नहीं कर सकती है। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि आपात एम्बुलेंस चलाने के लिए ऐसी कंपनी को कंट्रेक्ट दे दिया गया है, जिसपर कई आरोप लगे हैं और ग़लतियाँ पाई गई हैं।
उन्होंने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि महिलाओं-नवजात के स्वास्थ्य से जुड़े मामले में नियमों की अनदेखी करना ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि इस पर रोक लगाते हुए जांच कराई जानी चाहिए कि गर्भवती महिलाओं और बच्चों के जीवन के साथ खिलवाड़ तो नहीं हो रहा है। बीजेपी सांसद ने कहा कि इस कंपनी को कंट्रेक्ट दिया जाना नीतीश सरकार की ओर से पक्षपात का कार्य है। PDPL को 31 मई को राज्य भर में 2,125 एम्बुलेंस चलाने के लिए 1,600 करोड़ रुपये का कंट्रेक्ट दिया गया था, जबकि मामला हाई कोर्ट के समक्ष लंबित था। PDPL और सम्मान फाउंडेशन के एक कंसोर्टियम के खिलाफ कई प्रतिकूल ऑडिट रिपोर्टें थीं।
राजद ने दी सफ़ाई
राजद विधायक भाई वीरेंद्र ने कहा कि उस समय उन्हें गड़बड़ी लगी थी तो उन्होंने शिकायत की थी, लेकिन अब एक नेता के रूप में उनके कुछ सीमित दायरे हैं।
कंपनी में मेरी कोई हिस्सेदारी नहीं- जदयू सांसद
जदयू सांसद चंदेश्वर कह रहे हैं कि इस कंपनी में व्यक्तिगत रूप से उनका कोई हिस्सा नहीं है, ये कंपनी उनके रिश्तेदारों की है।
पटना हाईकोर्ट के आदेश को दरकिनार किया
दिसंबर 2022 में पटना हाईकोर्ट ने टेंडर की प्रक्रिया पर आपत्ति जताई थी। कोर्ट ने अगले आदेश तक इसे रोकने को कहा था, लेकिन बिहार सरकार ने नुकसान का बहाना बनाते हुए कॉन्ट्रैक्ट सांसद के रिश्तेदारों को दे दिया।
नियम क्या कहता है ?
नियम ये है कि इस करार के लिए वही कंपनी दावा कर सकती है, जिसके पास 750 एम्बुलेंस के संचालन का अनुभव हो और इनमें 50 एडवांस लाइफ सपोर्ट एम्बुलेंस होने चाहिए। बाद में नियमों में बदलाव कर के क्वालिटी और कोस्ट सेलेक्शन में से क्वालिटी वाली शर्त हटा दी गई। राजद के ही 3 विधायकों ने बिहार के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय को पत्र लिख कर गड़बड़ी की शिकायत की थी। राजद-जदयू की गठबंधन सरकार बनते ही ये शिकायत ठंडे बस्ते में चली गई।
अंग्रेजी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्ट में क्या है ?
इंडियन एक्सप्रेस ने अपने रिपोर्ट में बताया है कि पटना हाई कोर्ट के आदेश को दरकिनार रखकर, ऑडिट्स अनियमितताओं के सामने आने और कई दस्तावेजों के लीक होने के बावजूद बिहार सरकार ने फिर से एबुलेंस का 1600 करोड़ रुपये का कंट्रेक्ट जेडीयू एमपी के रिश्तेदारों द्वारा संचालित कंपनी को दे दिया है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत CARE के एक विंग स्टेट रिसोर्स यूनिट (SRU) द्वारा तैयार किए गए ऑडिट रिपोर्ट्स के कुछ अंश :
- 4 अक्टूबर, 2019: भागलपुर और मुंगेर जिलों में निरीक्षण किए गए सात एंबुलेंस में, माइक्रो-ड्रिप सेट सहित एक्सपायर्ड वस्तुएं पाई गईं (कोई संख्या नहीं बताई गई)। मुंगेर के जमालपुर में किसी भी एंबुलेंस में ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं मिला था।
- 13 फरवरी, 2020: वैशाली और मुजफ्फरपुर में जांच की गई सात एंबुलेंस में, “कुछ एंबुलेंस” में एक्सपायर्ड दवाएं पाई गईं, लगभग सभी एंबुलेंस में एयर कंडीशनिंग काम नहीं कर रही थी और निर्धारित दवाओं का न्यूनतम सेट किसी भी एम्बुलेंस में नहीं रखा गया था।
- 24 फरवरी, 2020: नालंदा और नवादा में चार में से दो एंबुलेंस के निरीक्षण में एक्सपायर्ड दवाएं मिलीं, जांच की गई किसी भी एंबुलेंस में दवाओं की न्यूनतम मात्रा नहीं रखी गई। चार में से दो एम्बुलेंस में एसी काम नहीं कर रहा था और किसी भी एम्बुलेंस में मानक स्वच्छता का पालन नहीं किया गया था।
- 24 फरवरी, 2020: सुपौल, समस्तीपुर और दरभंगा में निरीक्षण की गई नौ एंबुलेंस में से पांच में एक्सपायरी दवाएं मिलीं। चार वाहनों में एयर कंडीशनर काम नहीं कर रहे थे और सभी एंबुलेंस में न्यूनतम दवाओं की अनुपलब्धता थी।
- 6 जुलाई, 2020: वैशाली, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, सुपौल और दरभंगा जिलों में 14 एंबुलेंस का निरीक्षण करने पर ऑडिट में 4 में एक्सपायर्ड दवाएं और 3 में खाली ऑक्सीजन सिलेंडर मिले।
- 15 दिसंबर 2020: अरवल, भोजपुर और बक्सर में निरीक्षण की गई 5 एंबुलेंस में से 3 में एक्सपायरी दवाइयां और 2 एंबुलेंस में ऑक्सीजन सिलेंडर गायब थे।
- 10 फरवरी, 2021: जहानाबाद, शिवहर, पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण में जिन 11 एंबुलेंसों का निरीक्षण किया गया, उनमें से 5 में एक्सपायर्ड दवाएं मिलीं, 1 एंबुलेंस में एक खाली ऑक्सीजन सिलेंडर और 8 एंबुलेंसों में ब्लड प्रेशर चेक करने वाली मशीनें काम नहीं कर रही थीं।
- कोविड के दौरान डायल 102 एंबुलेंस सेवाओं के प्रदर्शन का एक और उदाहरण स्टेट हेल्थ सोसाइटी ऑफ़ बिहार (SHSB) द्वारा लिखा गया एक पत्र था, जो डायल 102 सेवा की निगरानी करने वाली राज्य एजेंसी है, पीडीपीएल और सम्मान फाउंडेशन के कंसोर्टियम को 24 सितंबर, 2020 को गरीबों पर लिखा गया था। तत्कालीन डेडिकेटेड कोविड अस्पताल, नालंदा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, पटना से जुड़ी पांच एंबुलेंस की सेवाएं।